माता-पिता बेटियों को पैर क्यों नहीं छूने देते?
माता-पिता अपनी बेटियों से पैर नहीं छुवाते, यह भारत की एक प्राचीन परम्परा है। मुझे कहीं गलत नहीं दिखता, मुझे इसके पीछे एक विशेष वजह दिखती है। वह यह है कि हमारे यहाँ कुँवारी कन्या को मंगल माना जाता है, तो माँ-बाप अपने घर में मंगल स्वरूप स्थित कन्या से पैर छवाने में शायद संकोच करते होंगे – ‘यह हमारे घर में मंगल है इससे क्यों पैर छुआयें।’ कोई रूढ़ि नहीं, इस दृष्टिकोण से अगर माँ-बाप बेटी से पैर छुआने से रोकते हैं तो यह बेटी के गौरव की बात है ग्लानि की नहीं।
हाँ, यदि यह दृष्टिकोण हो कि यह तुच्छ है, तू मेरे पाँव छूने लायक भी नहीं हो तो बात चिन्तन की है। भारत की संस्कृति में कन्या को उभयकुलविवर्धनी की संज्ञा दी गई है, उसे मंगल माना गया है इसलिए ये दृष्टिकोण तो शायद कहीं से नहीं ही है। माँ-बाप बेटी से पैर नहीं छूआते हैं, उसके पीछे एक दूसरी वजह भी मुझे अभी समझ में आ रही है, वह यह है कि यह बेटी कल दूसरे कुल में जाएगी, मेरा गौरव बढ़ाएगी, जो मेरा गौरव बढ़ाएगी उससे हम क्या पैर छुआयें इसलिए शायद उससे पैर न छूआते हो और विवाह के बाद भी अपनी बेटी से पैर शायद इसलिए नहीं छुआते कि ‘मेरा बेटा तो एक ही कुल का गौरव बढ़ाया है, यह जा रही है, तो उस कुल में भी मेरा गौरव बढ़ा रही है इससे मैं क्या पैर छुआऊँ।’ माँ-बाप अपनी बेटी को पैर छूने से मना करे तो कोई गलत नहीं है, हमें बातों को सिरे से खारिज नहीं करना चाहिए, उसकी तह में जाने की कोशिश करनी चाहिये।
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