आज हम रथयात्रा में ऐसा महसूस करते हैं मानो भगवान स्वयं हमारे साथ चल रहे हैं। गजरथ में ऐसा क्या होता है कि सब लोग इतने भाव विभोर हो जाते हैं?
बस यही भक्ति का चमत्कार है। रामचरित मानस पर आधारित घटना है लेकिन बहुत प्रासंगिक है। विवाह पंचमी का उत्सव संपन्न हो गया था, उसके बाद एक माली ने अपना अलग से मढ़वा (मंढा) रचा। विवाह पंचमी में जो- जो उत्सव किए गए उस पूरे के पूरे घटनाक्रम का एक छोटा सा रीमेक उसने रचा, लेकिन बहुत छोटा सा। उससे किसी ने पूछा कि “भाई! इतना बड़ा उत्सव हो गया और तुम ये छोटा सा उत्सव कर रहे हो, इसकी क्या जरूरत?” उसने जो बात कही, बहुत ध्यान देने योग्य है। उसने कहा- “रहा होगा बहुत बड़ा उत्सव पर उसमें एक बहुत बड़ी कमी थी।” सब आश्चर्यचकित कि “क्या कमी थी?” उसने कहा “उसमें सब कुछ था पर मैं नहीं था, यह बहुत बड़ी कमी थी।”
“भगवान के समवसरण में रहे होंगे ठाट, लेकिन उसमें एक कमी थी। क्या कमी थी? मैं नहीं था और आज जो मज़ा है वह इसलिए है क्योंकि मैं भी हूँ!” बस यही सोचते चलो, जीवन में आनन्द आएगा।
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