जैन धर्म में बताई गई बातों का लोग पालन क्यों नहीं करते?
यह तो जैनियों से पूछने की बात है, महाराज से क्यों पूछ रहे हो। ऐसा होता है कई तरह के लोग हैं, कुछ लोग होते हैं जो डॉक्टर से appointment लेते हैं, fees चुकाते हैं, prescription लिखवा कर लाते हैं और दवाई खाते हैं, ठीक हो जाते हैं। पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमेशा रोगी ही बने रहना चाहते हैं; डॉक्टर को दिखा लेते हैं, prescription लिखवा लेते हैं, पर दवाई खाने की मशक्कत नहीं करते, क्योंकि उनको रोगी बने रहने का अभ्यास है। वे सोचते हैं -‘रोगी बने रहेंगे तो हमको लोगों की sympathy मिलती रहेगी।’ और ऐसी sympathy gain करने वाले लोग ज्यादा हैं कि-“हम संसार में दुखी होते रहें ताकि हम पर गुरूओ की कृपा बरसती रहे। क्योंकि संतों के विषय में कहा गया कि संत हमेशा करुणानिधान होते हैं, दीन-वत्सल होते हैं, दीन दुखी जीवो के प्रति उनके मन में करूणा होती है। इसलिए हम लोग दुखी रहेंगे तो संतों की करूणा बनी रहेगी।” शायद इसी कारण लोग संतों के संपर्क में आने के बाद भी सुधरना नहीं चाहते।
ऐसे करोगे तो सुधार नहीं होगा। ध्यान रखो! अपना उद्धार करना चाहते हो तो तुम्हारा उद्धार किसी की कृपा से नहीं स्वयं के पुरुषार्थ से होगा। केवल धर्म को जानने से तुम्हारा कल्याण नहीं होगा, धर्म को मानने से, अंतरंग में स्थापित करने से तुम्हारा कल्याण होगा। इसलिए धर्म को जानिए और उसे अंतरंग में स्थापित करने की चेष्टा कीजिए तभी कल्याण हो सकेगा।
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