सोला करने वालों को क्रोध क्यों आता है?
सोला करने वालों को क्रोध नहीं आता, सोला बनने वालों को क्रोध आता है। शोला का मतलब होता है अंगार! जो अंगार बनेंगे, वे जलेंगे। जो सोला करता है, उसमें सोला का मतलब है, सात्विकता, शुद्धता। जिसके अन्तःकरण में शुद्धता है, सात्विकता है उनको क्रोध नहीं आता। लोग कहते हैं कि-“महाराज जी! जो जितना सोला करता है, उतना क्रोध करता है।” किन्तु ऐसी बात नहीं है। इसमें एकांगी दृष्टि नहीं होनी चाहिए।
सोला रखना बहुत अच्छी चीज है, मन-वचन-काय से सोला का पालन होना चाहिए। अब किसी को क्रोध आता है, तो क्यों आता है? इसे समझिए, उसके कारण में भी जाइए। कोई व्यक्ति जो सोला करता है, तो वह उस व्रत को अपने जीवन की अमूल्य निधि मान करके चलता है। वह चाहता है कि उसकी किसी क्रिया में किसी प्रकार का दोष न हो, क्योंकि अशुद्धि होने से जीव हिंसा की सम्भावना होती है। जीव हिंसा से बचने के लिए ही सोला किया जाता है। उसे अशुद्धि से बचना और जीव हिंसा होने से उसका व्रत खंडित हो रहा है। व्रत उसके जीवन की निधि है।
मैं आपसे पूछता हूँ कोई आप के घर आए और आपके घर की निधियों को लूटने लगे, तो आप क्या उसका स्वागत करोगे? आपकी निधि को कोई लूटता है, तो आपके मन में स्वाभाविक रूप से क्षोभ होता है। अगर आपकी निधि को लूटेगा तो आपके मन में स्वाभाविक क्षोभ होता है। उसी प्रकार यदि ऐसे व्रती की नि:वृत्तरूपी निधि लुटती दिखती है, तो उसका क्रोध स्वाभाविक है। इसमें हमें कुछ सोचना नहीं चाहिए। व्रतीक्रोध ज्यादा करता है, यह कहने की जगह व्रती को हम क्रोध न दिलाएँ, ऐसी सावधानी रखनी चाहिए और इसका सकारात्मक प्रयोग होना चाहिए।
नमोस्तु महाराज जी
मेरी शंका है की अगर किसी कुआ में कोई छोटा बच्चा अज्ञान वश बाथरूम कर लेता है तब हमे क्या करना चाहिए और कैसे हम कुआ की शुद्धि कर सकते है।