कवि अपनी रचनाओं में अपने नाम प्रविष्ट क्यों करते हैं?

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शंका

मेरा प्रश्न भारत के कई कवियों के ओर से है- जैसे ध्यानतराय जी, दौलतराम जी, पुज्य मानतुंग महाराज, पूर्णमति माताजी आदि सभी अपनी रचनाओं में अपनी कृति में अपना नाम नीचे प्रविष्ट करते हैं। इसी प्रकार यदि हम छोटे-मोटे कवि भी अगर अपनी रचनाओं में नीचे नाम दें तो उससे क्या लाभ क्या हानि?

समाधान

अपनी पहचान बनाने के लिए लोग नाम देते हैं, नाम देने में हानि नहीं है। प्राचीन काल में भी अनेक आचार्यों ने अपने रचनाओं में नाम का उल्लेख किसी न किसी रूप में किया है। लेकिन ऐसा कोई जरूरी नहीं है, नाम की अपेक्षा निर्णाम ज़्यादा अच्छा होता है। रचना को चोरी से बचाने के लिए आजकल नाम लिख कर पेटैन्ट करा लेते हैं लेकिन चुराने वाले भी बहुत होशियार होते हैं, उनको भी बदल कर लाइनें ले लेते हैं।

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