बाल अवस्था में धार्मिक और संस्कारित बच्चे, बड़े होकर धर्म से विमुख हो जाते हैं और धार्मिक क्रियाओं को भी कर्मकांड बताने लगते हैं तो उन्हें कैसे समझाएँ?
यह प्राय: सब लोगों की शिकायत होती है। बाल अवस्था में माँ-बाप कहते हैं तो बच्चे कर लेते हैं, थोड़ा बड़े होते हैं तो वह विद्रोही बन जाते हैं। उसके पीछे के कारण को समझिए। आपने छोटे बच्चों को धर्म तो सिखाया, धर्म का प्रयोजन और उसकी उपयोगिता -दोनों नहीं सिखाई। जब तक बच्चों को धर्म के प्रयोजन का बोध न हो और धर्म की उपयोगिता का बोध न हो और धर्म की उपयोगिता का भान न हो तो आगे चलकर के वह नहीं कर सकते।
माँ-बाप अपने बच्चों को प्रारम्भ से धर्म सिखाएँ और न केवल धर्म सिखाएँ, धर्म की उपयोगिता और धर्म के प्रयोजन को भी समझाएँ। बच्चों के दिल-दिमाग में यह बात अच्छी तरीके से बैठानी चाहिए कि “धर्म के बिना तुम अपना जीवन अच्छा नहीं बना सकते।” जैसे जीने के लिए रोटी- पानी और हवा की जरूरत है, उसके बिना मनुष्य जी नहीं सकता वैसे जीवन के लिए धर्म की आवश्यकता है। रोटी, पानी और हवा के बिना मनुष्य जी नहीं सकता तो धर्म के बिना अच्छे से जी नहीं सकता। बच्चों के मन-मस्तिष्क में यह बात बहुत गहरे से उतारना चाहिए कि धर्म ही एक ऐसा तत्त्व है जो हमारे जीवन के उतार-चढ़ाव में ठहराव लाता है। धर्म एक ऐसा तत्त्व है, माध्यम है जो हमारे भावों पर नियंत्रण लाने की क्षमता लाता है। धर्म ही एक ऐसा माध्यम है जिसके बल पर हम अपने जीवन में संयम और सन्तुलन घटित कर सकते हैं और धर्म ही वह ताकत है जिसके बल पर हम अपने आप को बुराइयों से बचा सकते हैं। वह हमारे जीवन का सुरक्षा कवच है, बच्चों के मन में यह बात बहुत मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाने की जरूरत है। जब बच्चे इन बातों को अच्छे से समझ लेते हैं तो फिर बड़े होने के बाद वह कभी धर्म से विमुख नहीं होते।
मेरा अनुभव यह बताता है कि माँ-बाप बच्चों को धर्म सिखाते कम हैं, थोपते ज़्यादा हैं। “मन्दिर जाओ, नहीं जाओगे तो खाना नहीं देंगे”, कितने दिन नहीं दोगे? जब जेब में पैसा आएगा तो वे बाहर खायेंगे। मन्दिर के प्रयोजन को, उसकी आवश्यकता को, धर्म की आवश्यकता को अच्छे तरीके से समझा दें, बच्चे कभी धर्म से विमुख नहीं हो सकते और जो बच्चे धर्म को कर्मकांड निरूपित करते हैं, बड़े होने के बाद उन्हें बहुत युक्ति पूर्ण तरीके से बात समझाएँ कि यह कर्मकांड नहीं है यह हमारे जीवन के रूपांतरण का एक बहुत बड़ा आधार है, तो बच्चों में बहुत व्यापक बदलाव आएगा। साधु-सन्तों से जुड़े रहने पर भी बच्चों में काफी बड़ा परिवर्तन घटित होता है।
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