एक व्यक्ति जो पूरा जीवन अपने धर्म के लिए समर्पित है, जो अपना पूरा जीवन सदाचार से और बहुत अच्छे से व्यतीत करता है लेकिन उसका अन्त समय बहुत ही विकट निकलता है। बड़ी-बड़ी बीमारियाँ पैरालिसिस, पार्किंसन आदि आती हैं… जो मेरी सासु माँ के साथ भी हुआ था। और एक व्यक्ति जो अनैतिक काम करता है लेकिन उसका अन्त समय बहुत ठीक निकलता है। ऐसा क्यों?
अगर कोई व्यक्ति धर्म करता है और उसके जीवन में विपत्ति आती है, तो स्वाभाविक है यह नहीं सोचना चाहिए कि इसने धर्म किया इसलिए विपत्ति आयी। विपत्ति तो आती है पर धर्म से विपत्ति नहीं टलती। मैं कई बार बोलता हूँ कि धर्म हमारे विपत्तियों को टालता नहीं, वो हमें विपत्तियों में संभालता है।
सच्चाई यह है कि धर्मियों पर जितनी विपत्ति आती है, उतनी अधर्मी पर नहीं आती। तीर्थंकरों पर भी विपत्ति आयी तो उनसे बड़ा धर्मी और कौन होगा? हम आप तो सामान्य लोग है। आपने देखा कि अनैतिक कार्यों को करने वाले फलते-फूलते दिखते हैं और उनका फलना फूलना ऊपर से दिखता है पर उनके अन्दर की त्रासदी को देखोगे तो रूह काँप जायेगी।
एक धर्मी व्यक्ति के जीवन में विपत्ति है लेकिन उसे तत्वज्ञान है, तो वह उस विषम परिस्थिति में भी अपने अन्दर की समता को बनाए रखता है, उसके मुख से कराह नहीं होती। और एक व्यक्ति जिसके पास सब प्रकार की अनुकूलता है पर अनुकूलता होने के बाद भी नींद की गोलियाँ खाये बिना नींद नहीं आती और २४ घंटे मन में भय के भाव बने रहते हैं। तो अधर्म अधर्म है और धर्म धर्म है।
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