अंतरंग में जो विचार आते हैं वह मन से आते हैं। तो मन तो सम्यक्त्व की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है तो फिर वह अलग या भिन्न भिन्न क्यों है?
आपने बोला है ‘मन सर्वश्रेष्ठ है’ यह भ्रम है। मन सर्वश्रेष्ठ नहीं है। मन ही सबसे खतरनाक है। विचार उत्पन्न होता मन से, मन अच्छा भी है, मन बुरा भी है। समझ गए?
मनायै बन्धाय विषयासक्ततम, मुक्तिये निर्विषयम मनः।
मनायो मनुष्याणं कारणम बंध मोक्षयोः।।
विषयासक्त मन बंध का कारण है। और विषयातीत मन मुक्ति का कारण है। मन ही संसार प्राणियों के बंधन व मुक्ति का आधार है। इसलिए मन जब नीचे भागता है वह हमारा पतन करा देता है और मन जब स्वरूप निष्ठ होता है हमारा उत्थान करता है। तो मन में विचार आते हैं, विचार अच्छे भी होते है बुरे भी होते हैं। अच्छे विचार से उन्नति और बुरे विचार से अवनति पतन! इसलिए हमारी साधना का लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम बुरे से अपने आप को बचाएँ और अच्छे का यथासंभव अनुपालन करें।
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