त्यौहारों पर बड़े-बुजुर्ग कहते हैं “नारियल बधार लो, पहले कौर को अग्नि में समर्पित कर दो” और यदि हम नहीं करते हैं तो मुँह बनाते हैं, खुशी के ऐसे माहौल में हमें क्या करना चाहिये?
नारियल बधारने में कोई दोष नहीं है, बधारोगे नहीं तो खाओगे कैसे? उसको चूल्हें में डालना रूढ़ि है, ये रूढ़ि करने से कोई मतलब नहीं है। आपने कहा कि पहले कौर को आपने अग्नि में समर्पित कर दिया, यह जैन धर्म की दृष्टि से उचित नहीं है। नारियल फोड़ना कोई गलत नहीं है, बिना फोड़े नारियल खाते नहीं पर इष्ट बुद्धि से, किसी को पूजने की बुद्धि से कहें तो देखना किसके सामने फोड़ रहे हैं, ऐसा तो नहीं है जिसके पास आप नारियल फोड़ रहे हैं कल आपका सिर फोड़ दे, उसे देख करके समझना चाहिये।
हमारे यहाँ नारियल चढ़ाने की परम्परा है, फोड़ने की नही, भगवान के चरणों में श्रीफल चढ़ाओ, फोड़ो मत। आजकल कुछ लोगों ने रूढ़ि अपना ली है जो आज भगवान के पास भी नारियल फोड़ते है। एक बार हमारे नगर प्रवेश के दौरान एक भाई ने नारियल झटके से हमारे पाँव के पास ही पटक दिया। मैंने पूछा कि “कर क्या रहे हो?” बोला “किसी ने कहा कि महाराज के चरणों में नारियल फोड़ दो, तुम्हारी किस्मत जाग जाएगी।” उसकी किस्मत जागती या नहीं, पता नहीं, पर यदि मैं सावधान नहीं होता तो मेरा पाँव तो टूट ही हाय था। ये विचार और विवेक की बात है, कहाँ क्या करना है, हमको बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। रूढ़ि पूर्वक कोई क्रिया नहीं करनी चाहिए लेकिन जहाँ तक एक कौर अग्नि में डालने की बात है, उसको वो किसी धर्म बुद्धि से नहीं कर रहे हैं, यदि उसको देख करके माँ-बाप प्रसन्न होते हैं तो उस लौकिक क्रिया में कोई दोष नहीं है। इसमें आपका सम्यक् दर्शन नहीं छूटेगा। ये सोच कर डाल दो कि “हम अग्नि की आँच नापने के लिए डाल रहें है”, दृष्टिकोण बदल दो। कई बार हलवाई कढ़ाई चढ़ाते हैं तो वो कढ़ाई से तेल निकाल कर आग में डालते है, भभका उठता है। आपका intention (प्रयोजन) क्या है? सब कुछ उस पर depend (निर्भर) करता है।
उनके कहे अनुसार आपने थोड़ा सा डाल दिया तो दिन भर की माथा फोड़ी से बच गए, नहीं तो अभी आप अनाज जला रहे थे, वो दिन भर आपको जलाएँगे। इसलिए इस समय इन सब चीजों में माथापच्ची नहीं करना हालाँकि, यह विशुद्धतया रूढ़ि है। धर्म की दृष्टि से ऐसा कृत्य कभी मत करना, लोक रीति से करो तो ये अज्ञानता है, थोड़े दिन बाद जब आप का शासन आएगा इसको बंद कर देना।
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