क्षमावाणी पर्व क्यों मानते हैं और उस दिन होने वाले प्रीतिभोज का क्या प्रयोजन है?
क्षमावाणी पर्व का भाव है कि ‘दस दिन हमने धर्म आराधना की और अपने परिणामों को निर्मल कर लिया, अब हम अपने जीवन की नई शुरुआत करें। इसके लिए, यदि किसी से साल भर में खटपट हुई तो उसका हिसाब-किताब खत्म करें, हृदय से क्षमा माँगें, क्षमा करें और जीवन की एक नई शुरुआत करें’, ताकि अतीत काल की बातों को भुलाकर अपने भविष्य को संभाला जा सके; क्षमावाणी का मुख्य प्रयोजन यही है।
अब इसके साथ जलसा, दावत आदि करना, और यह सब रात्रि में करना कतई उचित नहीं है। दिन में करना चाहिए ताकि, जीव हिंसा न हो। प्रीतिभोज की परम्परा क्षमावाणी के दिन की है। उसके पीछे यह भाव है कि सब एक-दूसरे से जुड़ते हैं, सबका हृदय एक-दूसरे से मिलता है। पर ये सारे कार्यक्रम दिन में संपादित होने चाहिए, रात्रि में नहीं।
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