प्र.१. हम उपवास क्यों करते हैं, कर्म की निर्जरा के लिए या पुण्य कर्म बाँधने के लिए?
प्र.२. आपने कहा था कि प्रायश्चित्त अन्तरंग तप है, तो प्रायश्चित्त कैसे करना चाहिए?
समाधान १: शास्त्रों के अनुसार उपवास को कर्मों की निर्जरा का मुख्य हेतु व पुण्य के बन्ध का कारण बताया है। उद्देश्य हमारा यह होना चाहिए -जीवन की पवित्रता, जिससे कर्मों की निर्जरा व सातिशय पुण्य का बन्ध, दोनों जुड़ा हुआ हो। लोग भौतिक आकांक्षाओं से ग्रसित होकर के व्रत-उपवास करते हैं। उन्हें उपवास का फल तो मिलता है लेकिन जैसा मिलना चाहिए वैसा नहीं मिल पाता। इसलिए आप जब कभी भी कोई उपवास करें तो अपनी आत्मा की विशुद्धि का लक्ष्य लेकर ही करें, तभी आपका उपवास करना सार्थक होगा।
समाधान २: प्रायश्चित्त में गुरुओं के समक्ष जाकर अपने दोषों की आलोचना की जाती है फिर उनके द्वारा बताए गए मार्ग के अनुरूप प्रायश्चित्त किया जाता है।
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