आज अधिकांश परिवारों में, समृद्ध परिवारों में बच्चों का लालन पालन “आया” द्वारा किया जाता है और खुद लोग जानवरों की, पशु-पक्षियों की देख-रेख करते हैं। ऐसा क्यों?
यह एक विडम्बना है। कुत्तों के साथ तो अपनों जैसा व्यवहार और अपने बच्चों और माँ बाप के साथ दुर्व्यवहार। यह एक बहुत विकृत परिणति है। आयाओं के भरोसे आप अपने बच्चे छोड़ोगे तो तय मानकर के चलना कि “आपका बुढ़ापा भी वृद्धा आश्रम में ही गुजरेगा, घर में नहीं”। माँ बाप ने अगर बच्चों को जन्म दिया है, तो यह उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपने बच्चों का पालन पोषण करें। बच्चे को अपने हृदय से लगाएँ। तब कहीं जाके आप अपना काम कर सकते हैं, लाभ ले सकते हैं। जानवरों के प्रति जो रुझान बढ़ रहा है यह भी एक विकृति है और जानवरों के प्रति भी तो किसके प्रति; कुत्तों के प्रति। मुझसे एक बार एक व्यक्ति ने पूछा, “महाराजश्री! आजकल लोगों का रुझान कुत्ते की तरफ क्यों बढ़ रहा है, क्या आप बता सकेंगे”? मैंने पूछा क्यों? वह बोला, “महाराज जी मेरा एक चिन्तन है”। मैंने बोला “क्या चिन्तन है”? वह बोला कि, “महाराज जी आजकल हर आदमी एक दूसरे के साथ कुत्तों जैसा व्यवहार करता इसलिए मरकर के कुत्ता बन जाता है और वही कुत्ते से एक दूसरे को प्यार हो जाता है। एक वर्तमान का है और एक पहले का। मैं यह नहीं कहता कि कुत्ते को पालने वाले कुत्ते बन जाते हैं। पर मैं यह मानता हूँ कि जिनके घर कुत्ता पाला जाता है उनके दरवाज़े पर आने वाला व्यक्ति भी कुत्ते से भी ज़्यादा गया बीता बन जाता है। ऐसे घर का मतलब क्या? पहले ज़माने में दरवाजे पर लिखा जाता था, “स्वागतम सुस्वागतम अतिथि देवो भव:” और अब लिखा जाता है, “सावधान अन्दर कुत्ते हैं”। विडम्बना है। गौ पालन करो, अगर तुम्हें ज़्यादा जानवरों से प्रेम है तो। वो सकारत्मक ऊर्जा छोड़ती है, गाय वात्सल्य का प्रतीक है और कुत्ता क्रूरता का प्रतीक है। यह कुत्ता पालन यहाँ का कल्चर नहीं है, यह बाहर से आया है। हमारे आगम के अनुसार कुत्ता, बिल्ली आदि पालने से नर्क आयु का बन्ध होता है। कभी मत पालना और जिसके घर कुत्ते हैं वहाँ कभी चौका मत लगाना। हम लोग आहार नहीं लेते, उसका घर शुद्ध ही नहीं है क्योंकि वह हर जगह घूमता – फिरता रहता है। इसलिए ऐसा कभी भी न करें और शुद्धता का पालन करें।
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