पूजा के उपकरणों में स्वस्तिक क्यों बनाते हैं और उसका विसर्जन कैसे करें? 

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शंका

पूजा के उपकरणों में स्वस्तिक क्यों बनाते हैं और उसका विसर्जन कैसे करें?

समाधान

स्वस्तिक भारतीय परंपरा में एक बड़ा मांगलिक प्रतीक है। ‘स्वस्ति’ का अर्थ होता है कल्याण और ‘क’ यानि कल्याण करने वाला- जो कल्याण कारक प्रतीक है, वह स्वस्तिक है। यह भारत में बहुत प्राचीन काल से प्रचलन में है। स्वस्तिक के कई रूप दिखते हैं – जैसे नंद्यावर्त स्वस्तिक और यह जो हम लोगों का प्रसिद्ध स्वस्तिक आकार है, जिसकी चारों भुजाएँ चार गतियों का प्रतीक हैं, ऊपर का चंद्र-बिंदु सिद्ध लोक का प्रतीक है। तो चतुर्गति के परिभ्रमण से मुक्त होकर हम सिद्धालय में पहुँचने की भावना से मांगलिक कार्यों में स्वस्तिक को अंकित करते हैं।

स्वस्तिक को भारत से बाहर भी मान्यता दी गई। यह जर्मनी के ध्वज के चिन्ह के रूप में भी आद्रित है। स्वस्तिक भारत में बहुत प्राचीन काल से प्रचलन में रहा है। कहते हैं, हड़प्पा मोहनजोदाड़ो के जो सिंधु घाटी की सभ्यता है वहाँ भी स्वस्तिक के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जर्मन में इसे पीस क्रॉस कहते हैं, जो शांति का प्रतीक है। तो यह शांति, सात्विकता, कल्याण का मांगलिक प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया है, जो चार गति के परिभ्रमण से मुक्ति का प्रतीक बना हुआ है। इसलिए पूजा आदि के मांगलिक क्रियाओं में स्वस्तिक बनाते हैं।

विसर्जन करते ही हमारा संकल्प पूर्ण होता है। तो उसे न मिटाने की जरूरत है, ना कुछ करने की जरूरत है। आप वैसे ही छोड़ दे, आप के बर्तन जब आप साफ करते हैं तो उसकी जो क्रिया होती है वह उसी में होती है।

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