शंका
ग़ालिब ने एक शेर कहा है –
“ ये सोचकर तोड़ दी मैंने माला
कि जो बेहिसाब देता है उसकी गिनती क्यों करूँ,”
तो गिनती करूँ कैसे और माला गिनूँ कैसे?
समाधान
बहुत सुंदर, प्रश्न है कि भगवान का नाम लेना है, तो गिन के क्या लेना है। लेते जाओ, मैं कहता हूँ दुनिया की चीजें जब तक गिन रहे हो तब तक भगवान का भी नाम गिनो, ताकि इस बात का आँकलन होता रहे कि दुनिया के लोगों के नाम ज़्यादा गिनते हो या भगवान का नाम ज़्यादा गिनते हो, पलड़ा बराबर बना रहे। इसलिए नहीं गिन रहे कि हम भगवान को बतायें कि भगवान हम आपका नाम गिन रहे। हम इसलिए गिन रहे हैं ताकि मुझे इस बात का पता लगे कि मेरी जबान पर भगवान ज़्यादा है या दुनिया के लोग ज़्यादा हैं। यह भाव होना चाहिए।
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