जीवन में सबसे अधिक महत्त्व मस्तिष्क का है, फिर भी हमारे देश में मस्तिष्क के बजाय पैरों को ही क्यों प्रणाम किया जाता है? पैर छूना मात्र परम्परा है या इसमें कोई वैज्ञानिक तत्त्व है?
ये भारत है, और भारत में हमेशा चरित्र की पूजा की गई। आचार को धर्म कहा और चरित्र को पूजा। हम अपने पूरे शरीर के अंगों को देखें तो मस्तिष्क को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। देश में ज्ञानियों को ही सम्मान नहीं मिला, हमारे देश में साधु-सन्तों, ऋषि-मुनियों, तपस्वियों-त्यागियों को सम्मान मिला-क्योंकि ज्ञान तो कोई भी पा सकता है पर चरित्र का धन कोई विरला ही पाता है और चरित्र ही जीवन का सच्चा धन है। चरण, आचरण का द्योतक है इसलिए हमारे देश में चरण पूजा जाता है।
इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। हमारे शरीर से जो भी ऊर्जा उत्पन्न होती है, उस ऊर्जा का प्रवाह होता है और ऊर्जा हमारे शरीर के नाखूनों से बाहर जाती है, उसमें भी पाँव के नाखून से ज्यादा। तो किसी महापुरुष, सत्पुरुष के चरण का आप स्पर्श करते हैं तो उनकी साधना की उर्जा उनके चरण रज लेने से आपको प्राप्त हो सकती है। ये इसका वैज्ञानिक कारण है।
पर बन्धुओं में आपसे ये कहना चाहता हूँ केवल चरण पूजने से कोई फायदा नही! मज़ा तो तब है जब आचरण को छूने का प्रयास करो। लोग चरण छूने के लिए आज बहुत उत्कंठित होतें हैं। ऐसे उत्कंठित होते हैं, कि हमलोग निकलें तो बस चरण छूना है, भले ही महाराज गिर जाएं, उसकी परवाह नहीं। ऐसी दीवानगी ठीक नहीं भाई। दूर से भी प्रणाम करके बहुत कुछ पा सकते हो। आचरण का जो स्पर्श करते हैं वो पूज्य बन जाते हैं और चरण को जो छूते हैं वे केवल चरण चंचलिक बन करके रहते हैं। हमारा अभ्यास आचरण छूने का होना चाहिए।
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