भगवान के आगे १००८, मुनि के आगे १०८ तथा माताजी के आगे १०५ क्यों लगाया जाता है?
विधान जैन
पुराने जमाने में श्री लिखने की परिपाटी थी। किस व्यक्ति के साथ कितनी बार श्री लिखा जाए, इस के लिए एक दोहा मुझे सुनाया था –
“श्री लिखिए श्री गुरु को षट, रिपु का पुनि चार। दोय मित्र और भृत्य को, पंच पुत्र और नार”।
सामान्य लौकिक गुरु के लिए 6 बार श्री लिखो, 4 बार श्री श्री श्री श्री लिख दिया तो समझ लो दुश्मन है। श्री श्री दो बार मित्र को, नौकर-चाकर को लिखो और पाँच बार अपने पुत्र और पत्नी के लिए लिखा जाता था। ये एक परम्परा थी।
भगवान के लिए 1008 बार श्री लिखते थे क्योंकि उनके 1008 नाम होते हैं। भगवान के शरीर में 900 व्यंजन और 108 लक्षण श्रीवत्स आदि होते हैं इसलिए भगवान के नाम के साथ 1008, मुनियों के 108 गुण होते हैं; मैंने 105 को ब्रह्म का प्रतीक भी बताया, ऐलक, क्षुल्लक एवं आर्यिका जी के 105 गुण होते हैं इसलिए उनके नाम के आगे 105 बार श्री लगाया जाता है।
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