मंदिर में घंटा क्यों बजाते हैं?

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शंका

हम घंटा क्यों बजाते हैं?

समाधान

घंटा बजाते हैं अपने मन को जागृत करने के लिए। अवेयरनेस (awareness) का द्योतक होता है, रेलवे के प्लेटफार्म में घंटी बजती है, फर्स्ट बेल (first bell) हो गई, सेकंड बेल (second bell) हो गई, थर्ड बेल (third bell) हो गई यानि अब ट्रेन आनी ही है। इसका मतलब क्या? यह इस बात को इंडिकेट करता है कि बस ट्रेन आने वाली है अपना लगेज संभालो और सावधान हो जाओ। जब हम मन्दिर जाते हैं, भगवान के आगे घंटा बजाते हैं, इसलिए बजाते हैं, घंटा बज गया, घंटा का नाद हो गया, ‘ऐ मन! अब सावधान हो जा, हम त्रिलोकीनाथ भगवान के दरबार में जा रहे हैं।’ घंटे के नाद से, जब घंटा बजाते हैं, घंटा का ऐसा शेप होता है जब घंटे को बजाते हैं तो उससे जो ध्वनि की तरंगे निकलती हैं, तरंगें (waves) निकलती है, हमारे सिर पर गिरती है, तो ध्वनि की जो तरंगे गिरती हैं, हमारे माथे पर पड़ती हैं, हमारे मस्तिष्क में अल्फा तरंगों को क्रिएट कर देती हैं, अल्फा वेव्स जो हमें एक अलग प्रकार के आनन्द की अनुभूति कराती है। 

घंटा बजाते हो, आनन्द का अनुभव होता है लेकिन ये तब होगा जब आप घंटा बजाओ और उसके नीचे कुछ क्षण खड़े रहो। लोग झटके में घंटा को बजाते हैं और जब तक घंटा बजता है तब तक तो आगे बढ़ जाते हैं। वहाँ घंटा बजाओ, उसके बाद दोनों हाथ जोड़ो, भगवान की मुद्रा को देखो और अपने आप को बहुत प्रसन्नता से भरो, अपने आप को भाग्यशाली मानो- ‘कैसा भाग्यवान मैं हूँ, कैसी धन्य घड़ी है कि आज मैं भगवान के दर्शन के लिए आ रहा हूँ और अपने मन को, रोम-रोम को प्रसन्नता से भर दो, रोमांचित कर दो, ‘ओम जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु करके णमो अरिहंताणं पूरा मन्त्र पढ़ते हुए भगवान की वेदी तक पहुंचें। 

रात में घंटा न बजाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि रात्रि में जितने भी पक्षी हैं अपने घोसलों में होते हैं और सो जाते हैं, आप घंटा जोर से बजाते हैं तो उनकी नींद ब्रेक हो जाती है, उनको डर भी लगता है इसलिए रात में घंटा नहीं बजाते। देखो जैन धर्म की महिमा, एकमात्र जैन धर्म है जो आपने अलावा सब प्राणियों की हितों की रक्षा की बात करता है। इसलिए कभी रात्रि में भी घंटा नहीं बजाते।

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