बेटी अपने माता-पिता व सास-ससुर में भेदभाव क्यों करती है?

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शंका

एक लड़की अपने माता-पिता से कितना प्यार करती है! पर जब उसकी शादी हो जाती है, तो वो वही प्यार अपने सास-ससुर से क्यों नहीं करती है, वो भी तो एक माता-पिता हैं ना?

समाधान

यह प्रश्न हर बेटी के मन में होना चाहिए। कारण मुझे एक ही समझ में आता है कि उसको माता-पिता अपने माता-पिता दिखते हैं और सास-ससुर, उसे अपने पति के माता-पिता दिखते हैं खुद के नहीं दिखते हैं। 

एक दिन एक couple (नव दम्पत्ति) मेरे पास आया उनके साथ उनके माँ- बाप भी आये, दोनों पक्ष के। मैंने यूँ ही पूछा कि ये कौन हैं? तो लड़की कहती है कि ‘ये इनके पापा हैं और ये इनकी माँ हैं।’ तो शुरू से ऐसी मानसिकता है कि ‘सास- ससुर मेरे माता पिता नहीं, मेरे पति के माता-पिता हैं’, तो कहाँ से प्यार होगा? उसे सोचना चाहिए कि ‘मैं अब इस घर में आ गयी, यही मेरा घर है और इनके माँ-बाप ही मेरे माँ-बाप हैं। सास-ससुर, सास-ससुर नहीं मेरे माता-पिता हैं।’ यदि घर में आने वाली बहू के मन में ये भाव आ गया कि सास-ससुर, सास-ससुर की जगह माँ-बाप हैं, तो निश्चित रूप से उसका उनके प्रति समर्पण होगा। 

लेकिन ये एक तरफा नहीं होना चाहिए। सास-ससुर को भी चाहिए कि घर में आयी हुई बहू तुम्हारी बहू नहीं, तुम्हारी बेटी हो। एक बात बताऊँ, जरूरत पड़ने पर पास में रहने वाली ये बहू ही तुम्हें पानी पिलाएगी, दूर रहने वाली बेटी नहीं पहुँच पाएगी। लेकिन होता उल्टा है, सास-ससुर को दूर बैठी बेटी याद आती है, पास में रहती बहू याद नहीं आती है और बहू को भी दूर बैठे माँ-बाप दिखाई पड़ते हैं, सामने रहने वाले सास-ससुर नहीं, तो ये सब उल्टा-पुल्टा हो जाता है। इसलिए दोनों तरफ से तालमेल बनाकर के चलना चाहिए। ऐसे समय पर दिखाना चाहिए कि मेरे माँ-बाप अब यहीं हैं और उस बहू को भी घर में बेटी जैसा सम्मान मिलना चाहिए, उसे पराया कहीं से नहीं लगना चाहिए। उसने सब कुछ छोड़ा है एक पति को पाने के लिए। अपना परिवार छोड़ा, माँ-बाप छोड़ा, घर छोड़ा सब कुछ छोड़ा और यहाँ आने के बाद उसे अच्छे तरीके से अपनाया नहीं जाये तो मामला गड़बड़ होगा। मैं तो एक लाइन में इतना ही कहता हूँ कि सास-ससुर अपनी बहू को इतना प्यार दें-इतना प्यार दें, इतना बहुमान्य दें कि वे अपनी बेटी का पता ही भूल जाएँ। कितना मजा आयेगा और यही जीवन का रस है? ताल-मेल इसी में होना चाहिए। 

एक प्रसंग मुझे याद आ गया, क्या दृष्टिकोण होना चाहिए सास का बहू के प्रति और बहू का सास के प्रति? एक बड़े घराने की बहू साड़ी खरीदने के लिए दुकान पर गयी। दुकानदार ने घर के स्टेटस को देखते हुए ऊँचे दाम की साड़ियाँ दिखायी। बहू ने वो साड़ियाँ देखीं तो कहा कि मुझे ये साड़ियाँ नहीं थोड़े कम दाम की साड़ियाँ चाहिए। दुकानदार उनको जानता था और बड़ा अनुभवी था, तो उसने कहा कि ‘बहन जी ऐसा कीजिए कि कल हमारे यहाँ नया स्टॉक आने वाला है आप कल आना और अपनी सासु माँ को साथ लेकर आना।’ ठीक, वो दूसरे दिन गयी, सास बहू दोनों दुकान में गये और दुकानदार से साड़ी दिखाने के लिए कहा। दुकानदार ने साड़ी दिखायी और जैसे ही साड़ी दिखायी तो सास ने कहा कि और इससे ऊँचे दाम की साड़ी नहीं है क्या? ऊँचे दाम की दिखाओ। बहू ने कहा कि माँ ये बहुत मँहगी साड़ी है, हमें ये नहीं चाहिए। हमें तो घर में पहनने के लिए साड़ी चाहिए। सास ने कहा कि ‘मैं कह रही हूँ न, दुकानदार की तरफ इशारा किया और दुकानदार ने ऊँचे दाम की साड़ी दिखाईं।’ बहू को सात सौ रुपये की साड़ियाँ मँहगी पड़ रही थीं और सास ने २३ सौ रुपये की ५ साड़ियाँ पैक करायीं। बहू ने कहा कि ‘माँ जी ये क्या कर रही हो? ये फालतू की बर्बादी करने से क्या फायदा होगा? हमें तो घर में पहनने के लिए ऐसी साड़ी चाहिए।’ तो सास ने जो शब्द कहे वो बहुत ध्यान देने योग्य हैं। सास ने कहा कि ‘बेटी मैं चाहती हूँ कि तू घर में भी अच्छी साड़ी पहने और जब तू अच्छी साड़ी पहनती है, तो तेरे ऊपर बहुत खिलती है, तो मुझे लगता है कि मेरी बेटी कितनी सुंदर लग रही है। तू वैसी साड़ी पहन, और बेटी तू परवाह क्यों करती है, मेरा बेटा कमाता है तेरी गाँठ से क्या जाता है? वो कमाकर लाकर देता है, तो उसका उपयोग अपने लिए न करें तो किस के लिए करें?’ ये है सास का एक बहू के प्रति दृष्टिकोण और बहू ने जब कहा कि ‘मम्मी आप बहुत महान हो!’ तो सास ने दोहराया कि ‘बेटी तेरे मुँह से जब मम्मी शब्द सुनती हूँ तो मेरा आनन्द अनन्त गुना बढ़ जाता है।’ बस यही तालमेल होना चाहिए सास और बहू का। जिस घर में ऐसा सामंजस्य है उस घर में स्वर्ग बसता है ऐसा समझकर चलना चाहिए।

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