धार्मिक आयोजन और अनुष्ठान होने के बाद भी समाज में परिवर्तन क्यों नहीं दिखता?
ऐसा होता है, सघन चट्टान घन के एक प्रहार से नहीं टूटती। सघन चट्टान होती है ना उसके लिए क्या करना पड़ता? लगातार हैमरिंग (Hammering) करनी पड़ती। घन पर घन, घन पर घन मारना पड़ता है। और सघन चट्टान पर बार-बार हैंमरिंग करते हैं न तो लगता कुछ नहीं हो रहा है, लेकिन कभी भी हेमरिंग व्यर्थ नही जाती। बार बार हैमरिंग करते करते एक बार उस चट्टान को टुटना ही पड़ता है।
तो मैं आपसे कहता हूँ यह बात सच है कि धर्म और धार्मिक आयोजनों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या तो निरंतर बढ़ रही है। लेकिन इस के बाद भी उनके जीवन में जो बदलाव घटित होना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है। पर मेरा ऐसा मानना है कि यह बात भी एकान्त तक ठीक नहीं। लोगों में बदलाव हो रहा है। जिनकी चट्टान थोड़ी ढीली है वो टूट रही है और जो चट्टाने ज्यादा सघन है उन पर हैमरिंग की जरूरत है। अगर परिवर्तन आएगा तो किस से आएगा? चट्टान को तोड़ना है, तोड़ना है तो कैसे तोड़ोगे? चट्टान को तोड़ने के लिए आपको हैमरिंग करना ही पड़ेगा। परिवर्तन नहीं आ रहा है या वह चट्टान टूट नहीं रही है ऐसा सोचकर तुम उस पर घन मारना बंद करदोगे चट्टान तीन काल में नहीं टूटेगी। समाज में परिवर्तन नहीं आ रहा यह सोचकर और धार्मिक समागम बंद करदोगे समाज में कोई बदलाव नहीं होगा। बल्कि यह धार्मिक आयोजन और धार्मिक समागमों का प्रभाव है कि समाज थोड़ी संभली भी है नहीं तो समाज बराबर हो जाती। छोड़ने की बात मत सोचो। घन हम लोग मारते हैं, मारना हमारा काम है।
हमारे गुरु ने हम पर घन प्रहार कर के हमारे भीतर से आनंद का स्रोत प्रकट किया और हमसे यही उपदेश दिया जो आए सबके भीतर वह अमृत का सागर है, आनंद का सागर है, अज्ञान की चट्टान उस पर है, तो हैमरिंग करो, उसे छोड़ो मत। जो आए उसे करुणा बुद्धि से दया बुद्धि से उसके हित की इच्छा से यह प्रहार करते जाओ करते जाओ करते जाओ एक न एक दिन वह चट्टान टूटेगी और उसके भीतर से अमृत छलकेगा।
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