जब नारी एक बेटी होती है अपने माता-पिता की बहुत सेवा करती है, बहुत प्यार करती है। जब उसकी शादी हो जाती है, तो उसकी वही सेवा भावना सास-ससुर के प्रति थोड़ी कम हो जाती है, अधिकांशत: यही देखने में आता है। फिर जब वह सास बनती है, तो अपनी बहू और बेटी में भी फर्क करती है, सदियों से ऐसा ही होता है या आजकल होने लगा है?
ये मानवीय वृत्ति है और ये मूल रूप से एक सी ही रहती है। देशकाल की परिस्थिति के अनुरूप उसमें हीनाधिकता हो सकती है। जैसा माहौल होता है वैसा उभार अधिक, उतार अधिक लेकिन ऐसा मत समझना कि चौथे काल में भी सास बहू में झगड़ा नहीं होता था, होता था। चौथे काल में भाई-भाई में झगड़ा हुआ, तीर्थंकरों के वंश में हुआ। तीसरे काल में बाहुबली और भरत में, चौथे काल में सौतिया डाह हुआ, चौथे काल में अपहरण हुआ, चौथे काल में परस्त्री गमन हुआ, चौथे काल में व्यभिचार हुआ, चौथे काल में व्यसनलिप्तता हुई, चारूदत्ता और अंजन चोर चौथे काल में ही पैदा हुए। केतुमति, अंजना की सास जो बड़ी खतरनाक थी। सोमा सती की सास ने अपनी बहु को मारने के लिए षड्यंत्र रचा था, जिसमें नाग का हार बन गया। हर काल में यह संस्करण उपलब्ध रहता है, ये मानवीय दुर्बलता है।
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