जैन आलू क्यों नही खाते?

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शंका

जैन आलू क्यों नही खाते?

समाधान

यह बात सही है की आलू भारत की मूल फसल नहीं है; भारत में आलू और टमाटर दोनों बहुत बाद में आए हैं। जैसा आपने कहा कि आलू शब्द का निषेध हमारे शास्त्रों में कहीं नहीं है लेकिन आलू जिस प्रजाति की फसल है उसका हमारे शास्त्रों में निषेध है। वह विधान है, जहाँ लिखा है- जमींकंद, जो अनंत कायिक है! आलू में वह सब बातें दृष्टिगोचर होती हैं। क्योंकि जमीकंद का निषेध किया, आलू भी कंद है भले ही बाद में आया हो किंतु है, तो जमीकंद ना। जब जमीकंद है, तो खाने योग्य कैसे होगा? वह कतई खाने योग्य नहीं। 

इस पर काफी माइक्रोस्कोपिक प्रयोग भी हुए हैं और उनमें यह पाया गया कि आलू के अंदर बहुत सूक्ष्म जीव होते हैं। मुझे किसी ने बताया था की एक लैबोरेट्री में इस पर काफी रिसर्च हुआ है। शायद आप लोगों को इंटरनेट में उपलब्ध भी हो जाए। तो यह बताया गया है कि आलू में बहुत जीव हैं। इसलिए आलू नहीं खाना चाहिए। अपने ज्ञान सागर जी महाराज के विषय में कहा कि ज्ञान सागर जी महाराज ने लिखा है कि आलू खाने में कोई दोष नहीं तो शायद यह आपने सुनी सुनाई बात की है; ज्ञान सागर जी महाराज ने कहीं ऐसा नहीं लिखा कि आलू खाने में कोई दोष नहीं है। वह आलू के त्याग के समर्थक थे। हाँ, हमारे १-२ विद्वान जो अपने जमाने के शीर्षस्थ विद्वान थे, वे आलू खाने के लिए तर्क दिया करते थे और उनकी दृष्टि में आलू अभक्ष्य नहीं था। पर समाज ने उनकी बात को स्वीकार नहीं किया और सिरे से खारिज कर दिया, इसलिए उनकी बात वहीं चली गई। इस तरह की बातों में मत उलझिए। जो त्याज्य है उसे त्यागिए! आलू जिमीकंद होने के नाते ही नहीं अपने सेहत के नाते भी त्याज्य है। हरी सब्जियाँ खाइए, जिंदगी को हरी-भरी रखिए, हल्की-फुल्की बनाइए। आलू खाएँगे आलू जैसे जाएँगे।

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