हम कोई भी शुभ कार्य करने से पहले शुभ-लाभ लिखते हैं और स्वास्तिक बनाते हैं। हिटलर, जो एक हिंदू नहीं था, पर उसकी टोपी पर हमेशा स्वस्तिक बना रहता था, ऐसा क्यों?
जर्मनी का आज राष्ट्रीय चिन्ह है पीस क्रॉस- स्वस्तिक। हिटलर के लिए वह एक धारणा थी, कि मैं जो चाहूं सो कर सकता हूँI वस्तुतः जो स्वस्तिक के प्रतीक को अपने हृदय में अंकित करता है, उसके अन्दर अपने कार्य क्षेत्र में आत्मविश्वास बढ़ता है और उसकी सकारात्मकता बढ़ती हैI हिटलर जिस भी वजह से उस स्वस्तिक का प्रयोग करता हो, पर उसकी ‘हिटलरी’ ठीक नहीं थीI पर हम भारतीय परम्परा से जब बात करते हैं, तो स्वस्तिक सबके कल्याण के प्रतीक के रूप में देखा जाता हैI जो सबके कल्याण का कारण हो वो स्वस्तिक हैI और हमारे यहाँ शुभ और लाभ ये दो बड़ी सशक्त अभिव्यक्तियाँ हैंI हमारे यहाँ केवल लाभ को अच्छा नहीं माना गया, हमारे यहाँ उसे ही लाभ माना गया, जो शुभ है, शुभ मंगल, कल्याण और क्षेम का प्रतीक हैI तो हमने अशुभ को कभी लाभ नहीं माना, हमने सदैव शुभ को लाभ मानाI तो ये भारत की विशेषता है, कि भारत में सदैव अध्यात्म को उच्च स्थान दिया गयाI इसलिए जीवन में जब भी लाभ हो, देखो इसके साथ शुभ जुड़ा है या नहीं। अगर शुभ जुड़ा है, तभी वो हमारे जीवन के उत्कर्ष का आधार होगाI
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