एक ही समय में और एक ही स्थान पर जन्म लेने वाले बच्चों की जन्मपत्री में अन्तर क्यों देखा जाता है? क्या यह सही है, तो कैसे, और गलत है, तो क्यों?
वर्तमान व्यवस्था ने पूरे ज्योतिष को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया। आज के ज्योतिषी गणित के हिसाब से किसी की भी जन्मपत्री इष्टकाल के आधार पर बनती है। इष्ट काल, जन्म स्थान और जन्म समय पर निर्भर करता है। अब एक ही स्थान पर एक ही समय जन्म लेने वाले व्यक्ति की जन्मपत्री तो एक ही बनेगी। लेकिन मानता हूँ कि हर व्यक्ति का जीवन अलग अलग होता है, अन्तर होता ही है। हमारा शरीर ही अलग बना है। हर व्यक्ति की अपनी-अपनी जेनेटिक संरचना होती है, विचार अलग होता है। यहाँ पर आज के समय में ज्योतिष अप्रासंगिक जैसा बन जाता है। पुराने जमाने में नैसर्गिक रीति से जन्म होता था, तो लोगों की अपने अपने हिसाब से जन्मपत्री होती थी। अब तो सब का जन्म अस्पतालों में होता है। जन्मपत्री वहाँ के अक्षांश रेखांश के अनुसार बनेगी। तो सारी स्थितियाँ वैसे ही होंगी क्योंकि उनका इष्ट काल वैसा ही बनेगा। तो यहाँ पर बहुत कुछ सोचना पड़ता है।
वर्तमान में ज्योतिष में जो भी फलित ज्योतिष से जुड़े हुए लोग हैं, शत प्रतिशत सही बताने वाले लोग नहीं मिलते। अच्छे से अच्छा प्रेडिकशन करने वाले लोग भी 60-70% से आगे नहीं बढ़ पाते। और उनमें से कुछ बातें ऐसी होती है जो सब में अवसत होती है। मुझसे लोग जन्मपत्री की बात करते हैं, ज्योतिष की बात करते हैं, मैं कहता हूँ “भैया मैं इन चक्करों में ज़्यादा विश्वास नहीं करता। जन्मपत्री नहीं मिलाओ; मन मिला लो सब काम हो जाएगा।” क्योंकि अब जन्मपत्री जिस रूप में होनी चाहिए वैसे नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि मैं ज्योतिष को नहीं मानता। मेरा ज्योतिष पर पूरा विश्वास है, पर ज्योतिषियों पर नहीं। वह आज के हिसाब से चलते हैं। इसमें लकीर के फकीर नहीं बनना। तभी अपने जीवन को हम सही बना पाएँगे और हमारे जीवन की बेहतरी का आधार बनेगा।
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