कायोत्सर्ग में णमोकार मन्त्र नौ बार ही क्यों?

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शंका

कायोत्सर्ग में णमोकार मन्त्र नौ बार ही क्यों पढ़ा जाता है? दस बार क्यों नहीं?

समाधान

हम लोग जब कायोत्सर्ग करते हैं तो ये सत्ताईस (२७) श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग होता है। श्वाँस लेने और छोड़ने की संपूर्ण प्रक्रिया २७ बार हो तो हमारा ये कायोत्सर्ग होता है। हम लोग णमोकार मन्त्र पढ़ते हैं। तो जब श्वाँस लेते हैं तो णमो अरिहंताणं, श्वाँस छोड़ने पर णमो सिद्धाणं, पुनः लेने पर णमो आयरियाणं, छोड़ने पर णमो उवज्झायाणं, फिर श्वाँस लेने पर णमो लोए और छोड़ने पर सव्वसाहूणं। इस प्रकार तीन बार श्वाँस लेने और छोड़ने में एक बार णमोकार होता है। हमको २७ बार करना है। २७ उच्छ्वास का जघन्य कायोत्सर्ग होता है, तो फिर नौ बार णमोकार मन्त्र अपने आप हो जाएँगे।

९ जो होता है वह बड़े मजे का अंक होता है वो कभी नष्ट नहीं होता है। नौ “अनश्वर” का प्रतीक है। जिस प्रकार ९ के पहाड़े का प्रत्येक अंक को जोड़कर ९ आता है, तो इस प्रकार ९ को पकड़े रहोगे तो मूल बनोगे। दूसरा और बता दूँ! ये ९ का पहाड़ा है धर्म का और एक दूसरा पहाड़ा है ८ का, जो पाप का पहाड़ा है। ८ के पहाड़े में उसके प्रत्येक अंक को जोड़ेंगे तो ८ से शुरू करेंगे और अन्त में १ पर आ जाते हैं। तो इस प्रकार जो घटाए वो ८ का पहाड़ा और जो टिकाए रखे वो ९ का पहाड़ा। धर्म के मार्ग पर चलना है, तो ९ का आश्रय लो। जीवन का कल्याण हो जाएगा।

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