अपने मन्दिरों में राम की मूर्ति क्यों नहीं रखी जाती? वे भी तो मोक्षगामी जीव हैं?
हमारे यहाँ २४ तीर्थंकरों को ही आराध्य बताया गया है; वे ही धर्मतीर्थ के प्रवर्तक होते हैं। इसलिए हम तीर्थंकर की पूजा करते हैं। किसी की भी पूजा करें, नाम उसका कुछ भी नाम रखें पर वीतरागता होनी चाहिए। जैन धर्म में राम को मोक्षगामी बताया गया है, लेकिन राम के दो रूप हैं एक ‘राजा राम’ और एक ‘मुनि राम’! एक तीसरा रूप ‘भगवान राम’ है। तो जैन धर्म के अनुसार राजा रामचंद्र जी जब तक राजा की अवस्था में रहे, उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम की भूमिका निभाई, और उसके बाद उन्होंने दीक्षा ली तो एक योग्य मुनि बने, और आत्मश्रद्धा में निमग्न होकर मोक्ष गये तो वे भगवान राम बन गये। मोक्षगामी केवल ‘भगवान राम’ को कहा है।
अब रहा सवाल कि मन्दिर में विराजमान करने का। तो किसको-किसको विराजें? ऐसे तो अनन्त आत्माएँ मोक्ष गयी। सब की मूर्ति बनायेंगे तो मामला गड़बड़ हो जायेगा। इसलिए हमारे यहाँ बताया कि एक uniform (एक समान) व्यवस्था लेकर के चलोI २४ तीर्थंकर हमारे मूल आराध्य हैं। इनको ही विराजमान करो तो तुम कभी भटकोगे नहीं। रूप तो ऊपर का है, अन्दर का तत्त्व तो एक ही है। दीपक अलग-अलग है ज्योति एक होती है। दीपक मिट्टी का हो सकता है, पीतल का हो सकता है, सोने का हो सकता है लेकिन ज्योति केवल ज्योति होती है। हम जिन भगवान को पूजते हैं, वो ज्योति स्वरूप होते हैं, और जो वीतराग हैं जिनके लिए हम लोग बोलते हैं –
जिसने राग, द्वेष, कामादिक जीते, सब जग जान लिया।
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का, निष्प्रह हो उपदेश दिया।
बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो।
भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो।
हम भक्तामर में पढ़ते हैं कि,
‘बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित पादपीठ’
हम बोलते हैं कि ये एक ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश का रूप भगवान आदिनाथ में भी आ जाता है। तो वीतरागता जहाँ आ जाये, वहाँ सब समाहित हो जाते हैं।
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