तीर्थंकर भगवान का सर्वांग रक्त श्वेत क्यों होता है?
यह उनका जन्मगत अतिशय है। यह सवाल लोग पूछते हैं, मेरी धारणा है कि यह तीर्थंकर जैसे महान आत्माओं के लिए सहज सम्भव है। एक बार आचार्य गुरुदेव के चरणों में एक बौद्ध भिक्षु आया। १९८७ की बात है, मैं उन दिनों थूबोन जी में ऐलक अवस्था में था। उस बौद्ध भिक्षु ने गुरुदेव से तीर्थंकरों के सन्दर्भ में प्रश्न किये- “महाराज जी एक बात समझ में नहीं आती कि जैन तीर्थंकरों का रक्त श्वेत होता है जबकि मेडिकली यह सिद्ध नहीं।” गुरुदेव ने जो जवाब दिया वह मैं आप सब को बताना चाहता हूँ। उन्होंने कहा “ये बताओ एक माँ जब किसी बच्चे को जन्म देती है, तो उसके पेट में दूध कैसे आता है?” बोला- “क्योंकि उसकी बच्चे के प्रति ममता है।” “जिस माँ के मन में एक बच्चे के प्रति ममता होती है, तो उसके आँचल में दूध उमड़ आता है। तीर्थंकर जैसे महापुरुष के मन में जगत के प्रत्येक प्राणी के प्रति संवेदना और ममता होती है, इसलिए उनका जर्रा जर्रा दुग्ध रूप हो जाता है, इसमें आश्चर्य की बात क्या है?” यही कारण है कि चन्द्र कौशिक सर्प के डंस के बाद भी भगवान् महावीर के शरीर से रक्त की जगह दुग्ध की धार बही।
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