मन्दिर में मूलनायक महावीर भगवान के सामने लम्बी सी लाइन लगी होती है। जबकि आस-पास की बाक़ी वेदियाँ खाली होती हैं। ऐसा क्यों? वहाँ भी महावीर भगवान विराजमान हैं, पर पूजा उन्हीं भगवान के सामने करना है। ऐसा क्यों?
जिनके प्रताप से ये फैला है लोग उन्हीं के छाँव में तो आएँगे। आप औरों की बात करते हो, मैं खुद इसमें शामिल हूँ। मैं किसकी बात करूँ। कल से आज तक दो दिन हो गए, अभी तक मैंने मन्दिर की संरचना नहीं देखी, देखने का भाव ही नहीं हुआ। भगवान को देखता हूँ और बस मन वहीं रम जाता है और कुछ नहीं खलता, तो अब क्या करें।
ऐसा क्यों? ये प्रश्न तो भगवान से ही पूछना पड़ेगा कि भगवान आखिर ऐसा क्यों? इतना आकर्षण है कि लोग खिंचे चले आते हैं। और यही इस क्षेत्र की गरिमा है, यही इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा है और यही इस क्षेत्र का अतिशय है। हालाँकि, हमें दर्शन-वंदन सब के करने चाहिए, लेकिन आप इसे रोक नहीं सकते।
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