क्यों मंदिर दर्शन में शिखरजी वंदना जैसी आनंद की अनुभूति नहीं होती?

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शंका

जैसा आनन्द शिखरजी की वन्दना करने में आता है वैसा आनन्द हमें मन्दिर जी में रोज क्यों नहीं आता है?

समाधान

अगर शिखरजी का आनन्द आपके घर में ही आने लगे तो इतनी दूर से चलके शिखरजी का टिकट खर्च कर के क्यों आओगे? 

क्षेत्र का प्रभाव पड़ता है। मन्दिर केवल मन्दिर है और शिखरजी सिद्ध-निषीधकाय है। कण-कण पूज्य, अनादि से, अनन्त सिद्धों की निर्वाण स्थली! इस वर्तमान चौबीसी में २०-२० तीर्थंकरों ने जहाँ से निर्वाण को प्राप्त किया उनकी ये पवित्र रज है! यहाँ का cosmic power (ब्रह्माण्डी शक्ति) इतनी प्रगाढ़ है कि इतने परिश्रम के बाद भी सारी थकान खत्म होती है और मन का उत्साह बरकरार रहता है। ये शिखरजी तो शिखरजी है! इस शिखरजी में आने के बाद ये सोचो कि ‘हे भगवन! मैं शिखरजी बार-बार आऊँ! जब भी शिखरजी आओ तो रिटर्न टिकट बनाकर न लाओ; खूब वन्दना करो और जब जी भर जाए, घर की याद सताने लगे, तब टिकट बनाओ। समझ गए तब मजा है और तब आनन्द है।

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