अभिषेक के लिए प्रासुक जल जिनेन्द्र सिद्धान्त कोश में मात्र उसके रंग परिवर्तन जैसे चन्दन या लवंग मिला कर माना गया, तो फिर कुँए के जल को उत्तम और बोरिंग के जल को हेय क्यों माना गया?
शास्त्रों में प्रासुक जल के लिए दो विधि बताई, एक तो उसे अच्छे से गरम करना और दूसरी विधि बताई कि उसका स्पर्श, रंग, गन्ध, वर्ण सब बदल देना। केवल चन्दन डाल देने से नहीं होगा, उसमें घुल मिल जाना चाहिए। आपने दो लवंग डाल दी, थोडा सा चन्दन डाल दिया, वह ठीक नहीं इसलिए प्रमाद छोड़कर उस पानी की ठंडाई को बदल दें। उसको प्रासुक करने के लिए आपको जल को गरम करना ही सबसे उचित है।
कुँए के जल और बोरिंग के जल में, बोरिंग के जल की प्रासुकता की बात नहीं कहीं जा रही। कुँए के जल में आप जलगालन की विधि सम्पन्न कर सकते हैं जबकि बोरिंग के जल में पानी छानने की विधि पूरी नहीं होती। जल गालन एक श्रावक का मूलगुण है, तो जिसकी मूलगुण की पूर्ति नहीं हो वह आगे क्या करेगा? भगवान का अभिषेक, व्रत का पालन कुएँ के पानी से ही होना चाहिए। आजकल तो अपने को सबसे अच्छा विकल्प मिल गया है अहिंसा जिवाणी यन्त्र, जिसके माध्यम से मूलगुणों का पालन आसानी से होता है। अभिषेक एवं साधु सन्तों की चर्या हेतु निर्दोष रीति से कार्य करना चाहिए।
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