इस भव का ज्ञान अगले भव में साथ क्यों नहीं जाता?

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शंका

इस भव में हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह अपने अगले भव में क्यों नहीं साथ जाता?

समाधान

जाता है, लेकिन व्यवस्था हो तब। आप तो बुजुर्ग हैं, कोई युवा ये सवाल करता तो ज़्यादा अच्छे से समझाया जाता। 

आज कंप्यूटर का जमाना है, इतना परिचय तो आपको भी होगा। कंप्यूटर में जो भी काम होता है उसको कौन करता है? कम्प्यूटर में दो चीजें होती हैं- हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर। जो आपके सामने रखा हुआ हार्डवेयर है उसके अन्दर का जो फंक्शन पूरा संचालित होता है वह सॉफ्टवेयर से होता है। एक हार्डवेयर का सॉफ्टवेयर अगर सेफ है उसको आप दूसरे हार्डवेयर में सेट करें तो काम होता है कि नहीं होता? काम होता है। जब हार्डवेयर सलामत हो और सॉफ्टवेयर को क्षति पहुँचे तो नहीं होता। ये हमारा शरीर हार्डवेयर है और इसके भीतर हमारा जो ज्ञान है वह सॉफ्टवेयर है। अब हमारे लिए यह सॉफ्टवेयर काम तब करेगा जब हमारा हार्डवेयर फिट हो। तब मरणोपरान्त हमारा ये हार्डवेयर तो चला गया, अब यह सॉफ्टवेयर है हमारे पास, पर इसके मेल का हार्डवेयर जहाँ मिलेगा वहाँ काम कर जायेगा और मेल का नहीं है, तो काम नहीं होगा। कई बार बोलते हैं ‘डिस्क खुल नहीं रही, क्यों नहीं खुल रही? कनेक्टिविटी नहीं हो रही। कनेक्टिविटी क्यों नहीं मिल रही है? क्योंकि फ्रीक्वेंसी नहीं मिल रही। फ्रीक्वेंसी क्यों नहीं मिल रही- सॉफ्टवेयर-हार्डवेयर में तालमेल नहीं हो रहा है। ऐसे ही होता हैं न भैया। 

हमारे अन्दर ज्ञान अनन्त है और इस ज्ञान के संस्कार भवान्तरों तक चलते भी हैं। पर किसी किसी का ज्ञान प्रकट हो जाता है और किसी का अप्रकट हो जाता है। हमारे यहाँ ऐसा लिखा है एक औत्पत्तकि प्रज्ञा है जो बिना अध्ययन के अपने आप प्रकट हो जाये, शास्त्र को पढ़े बिना भी जो अपने आप से प्रकट हो जाए उस प्रज्ञा को औत्पत्तकि प्रज्ञा कहा गया है। तो ये क्या है, तालमेल बनाइए। हम लोगों का सिस्टम ही खराब है इसमें क्या कहें!

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