मन को इंद्री क्यों नहीं माना गया है?
पांच इंद्रियों के साथ मन सबका संचालक है, लेकिन मन को इंद्रिय इसलिए नहीं कहा क्योंकि मन इंद्रियों का मालिक है। हर इंद्रिय के अपने विषय निश्चित हैं और हर इंद्रिय का अपना स्थान निश्चित है। मन का ना तो विषय ही निश्चित है और ना ही स्थान निश्चित है। आँखें केवल देख सकती हैं; सुन नहीं सकतीं, चख नहीं सकतीं, गंध नहीं ले सकतीं! कान से केवल सुना जाता है, और काम नहीं किया जा सकता। इसी तरह नाक एवं स्पर्श इंद्रिय से भी केवल अपना अपना काम किया जा सकता है, किंतु मन से आप देख भी सकते हैं, सुन भी सकते हैं, गंध भी ले सकते हैं और किसी वस्तु का स्पर्श भी कर सकते हैं। तो मन का विषय सब कुछ है।
आँख का स्थान, कान का स्थान, नाक का स्थान, जिव्हा का स्थान नियत है, सब इंद्रियों के स्थान नियत है, किंतु मन का कोई स्थान नियत नहीं है। इसलिए मन को इंद्रिय न कहकर अनिंद्रिय कहा है।
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