दशहरे पर रावण दहन क्यों नहीं देखना चाहिए?
रावण दहन क्यों नहीं देखना चाहिए, यह सारे बच्चों का और बड़ों का भी प्रश्न हैं। रावण दहन करने का मतलब है किसी रावण नाम के व्यक्ति को संकल्प पूर्वक मारना। एक रावण हुआ और उसका अंत हो गया। वह तो उस समय की घटना थी, आज तो कोई रावण नाम का व्यक्ति हमारे पास है ही नहीं तो हम उसको मारने का भाव क्यों रखे? हम उसे जलाने का भाव क्यों रखें?
तो उसे जलाने और मारने का यह भाव करना एक प्रकार की संकल्पी हिंसा है। इस हिंसा और पाप से बचना चाहिए। वस्तुतः बाहर के रावण को जलाने से कुछ नहीं होगा, हमारे भीतर की बुराइयों का रावण है, उसे जलाएंगे तो हमारे जीवन का कल्याण होगा।
इसका उल्टा हम लोग देखते हैं कि लोग राम की बात करते हैं और हर साल रावण का कद बढ़ता हुआ दिखता है। पिछले साल अगर 40 फुट का रावण था तो इस वर्ष 50 फुट का रावण होगा। तो जब तक रावण का कद बढ़ता रहेगा तब तक जीवन का उद्धार नहीं हो सकेगा। इसलिए मैं कहता हूँ- ना रावण दहन करिये और न ही रावण दहन के कार्यक्रम की अनुमोदना कीजिए। यह संकलपी हिंसा का कारण है। सच्चे अर्थों में अपने अंदर के रावण को जलाने की कोशिश कीजिए और वो रावण तभी जलेगा, जब भीतर का राम भाव प्रकट होगा।
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