जल छान कर क्यों पिया जाता है? आज के समय में धर्मशालाएँ या किसी भी धर्मस्थल क्षेत्रों में जो कपड़े बांटे जाते है उनका धोवन कब होता है? उनके जीवों व जीवाणी की सुरक्षा कब की जाती है?
जैन धर्म के अनुसार पानी छानने की जो भावना है वह जीव-दया की भावना है। जैन धर्म के अनुसार जल में त्रस जीव भी होते हैं। विज्ञान के अनुसार एक बूंद पानी में ३६,४५० जीवों की बात है, त्रस जीवों की संख्या तो बहुत ज़्यादा है। हमें पानी तो पीना ही है, पानी के बिना रहना सम्भव नहीं है। तो एक व्यवस्था बताई गयी कि जीव दया का पालन करने की भावना से आप जल के स्रोत से जल को निकालो। उसे गाढ़े छन्ने से छानो और बड़े इत्मिनान के साथ आप पानी की जीवाणी करो यानि वो पानी के छन्ने को छने पानी से धोकर वापस जलाशय में ले जाओ और उसे उडे़ल दो और इसके पीछे की जो भावना है वह है – जीव दया का अनुपालन! इस दृष्टि से सच्चे अर्थों में पानी छानने का लाभ उनको मिलता है जो कुँआ, नदी या ऐसे जलाशयों से जल लाते हैं, जहाँ ध्यानपूर्वक जीवाणी पहुँचाई जा सके।
आज के युग में अहिंसा जीवाणी यन्त्र, जो विदिशा वाले ऋषभ कुमार जैन ने विकसित किया है, ये भी एक बहुत अच्छा कार्य किया। आजकल कूप जल की उपलब्धता का अभाव है लेकिन जो उन्होंने कार्य किया उससे हर व्यक्ति के पानी छानने के नियम का अनुपालन उसके माध्यम से हो सकता है। अब रहा सवाल कि घरों में आप लोग नलों में छन्ना लगाते हैं तो नलों में छन्ना लगाने के माध्यम से जो हमारे जीव दया की पुनीत भावना है वो तो नहीं पलती लेकिन आपके जैन होने की पहचान प्रकट हो जाती है। क्योंकि पानी तो already फिल्टर होकर आता है, जीव हिंसा तो उसमें हो गयी। आप पानी छान रहे हैं तो उसकी जीवानी कहाँ डाले। वो छन्ना वहीं सूख जाता है, तो छानना न छानना एक बराबर। जैन होने का प्रमाण मिल जाता है। लेकिन कभी-कभी स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो जाता है।
सन् १९८५ के आसपास की बात है, डॉ. शंकर दयाल शर्मा जब भारत के उपराष्ट्रपति थे, भिलाई के एक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में एक मुख्य अतिथि की हैसियत से गये और वहाँ उन्होंने अपना एक उद्बबोधन व्यक्त किया। उसमें उन्होंने कहा कि ‘पानी छानने की जो क्रिया जैन धर्म में है, वह बहुत ही अनुकरणीय है और लाभप्रद है।’ उन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल का एक प्रसंग सुनाया। जब वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो इन्दौर की एक काॅलोनी में एक विशेष प्रकार का रोग फैला। रोग ऐसा कि पूरा का पूरा परिवार बिस्तर पकड़ लेता था। सबको बुखार आता और दस्त होते। एक कॉलोनी विशेष तक उस बीमारी के सीमित होने के कारण पूरा प्रशासन भी बड़ा चिंतित हुआ और सक्रिय हुआ। और देखा गया कि इस कॉलोनी में जितने भी लोग बीमार पड़ रहे है, उनमें से जैन परिवारों पर उसका लक्षण बहुत कम दिख रहा है। खोज करने के बाद पता लगा कि उस कॉलोनी का जो ओवर हेड टेंक था उसके अन्दर एक चिड़िया मरी पड़ी हुई थी। उसमें कीड़े पड़ गये थे। वही प्रदूषित पानी सब लोग पी रहे थे। जैनी इसलिए बचे हुए थे कि वो पानी छानकर पीते थे। तो पानी छानना वैसे भी लाभप्रद है। आजकल पानी की सप्लाई में कब नाली का पानी घुस जाए पता नहीं। इसलिए छानो।
अब तो लोग फिल्टर कर के पीना ज़्यादा पसन्द करते हैं। फिर भी उत्तम तो वही है जल गालन की जो मूल भावना है वो दूसरी है पर ऐसा आप करते हैं तो आप कहीं भी आएँ-जाएँ तो आप जैनी होने का प्रमाण तो प्रस्तुत कर ही देंगे।
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