स्वाध्याय में प्रकरण आता है कि भोजन के समय मौन रखना चाहिए, तो क्या वह मौन श्रुत की विनय का कारण बन सकता है?और क्या मौन को रखने से वाणी सिद्ध होती है?
मौन से भोजन करने की बड़ी महिमा है। शास्त्रों में बात आती है कि भोजन के समय मौन रखने से स्वाभिमान की रक्षा होती है, श्रुत की विनय होती है और वाक्शुद्धि होती है। यह तीनों ही बहुत महत्त्वपूर्ण है, स्वाभिमान की रक्षा यानी जो मौन से खाता है वह कभी भिखारी नहीं बनता, मौन से खाने वाले को लोग मनुहार से खिलाते हैं- ‘मौन से खा रहे हैं, कहीं कोई चीज की कमी न हो’- आप के प्रति लोग विशेष रूप से अटेंशन देंगे और अगर आप बोलकर खाते हैं तो कोई विशेष ध्यान नहीं देगा। क्योंकि कुछ कमी भी होगी तो आप स्वयं ही मॉंग लेंगे। ध्यान रखिये! माँगने वाला भिखारी होता है। तो अगर अपने स्वाभिमान की रक्षा करना है, तो भोजन मौन से करें।
दूसरा श्रुत की विनय, जो बहुत गम्भीर बात है, भोजन करते समय आप जो भी बोलते हैं वह शब्द है, और शब्द वांग्मय है, वांग्मय जिनवाणी है, तो उस समय आप झूठे मुँह बोलते है, जिससे जिनवाणी का अविनय होता है, श्रुत का अविनय होता है, इसलिए झूठे मुँह न बोले।
तीसरी बात यह कही गयी है कि जो भोजन के समय मौन रखता है, उसकी वाणी सिद्ध हो जाती है।उसकी जिह्वा में सरस्वती का वास हो जाता है, ज्ञान की विनय करोगे तो ज्ञान की कृपा अवश्य बरसेगी। इसलिए भोजन हमेशा मौन से ही लेना चाहिए।
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