व्यसनी धनवान और धर्मी निर्धन क्यों?

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शंका

जो सप्त व्यसन करता है, वह लाख रुपए रोज कमाता है और जो पूजन-पाठ करता है, उपवास करता है, उसकी दरिद्रता नहीं जाती है। इसका क्या कारण है और वह क्या करे ताकि उसका भाग्य चले?

समाधान

पैसा पुण्य से नहीं कमाया जाता, पाप करके ही कमाया जाता है। पुण्य के उदय में जब पाप करते है तब पैसा कमाया जाता है। एक वेश्या जितनी आसानी से पैसा कमा लेती है, एक साधारण व्यक्ति उतनी आसानी से पैसा नहीं कमा सकता है। यह बात दिमाग में अच्छे से बैठा कर रखिए कि पुण्य के उदय में पाप करने से पैसा कमाया जाता है। 

अब एक व्यसनी व्यक्ति है जो पाप कर रहा है फिर भी पैसा उसके पास आ रहा है इसका मतलब उसके पुराने पुण्य अच्छे हैं और एक धर्मी व्यक्ति है जो अपने जीवन में सात्विकता, सदाचार, संयम और धर्म ध्यान कर रहा है फिर भी उसमें विपन्नता है, दरिद्रता है इसका कारण यह है कि पुरुषार्थ भले ही वह पुण्य का कर रहा है लेकिन उसका पुराना पाप भारी है। इसलिए सब कुछ करने के बाद भी वह संपन्न नहीं हो रहा है। लेकिन यह एक दृष्टिकोण है, आप देखो की व्यसन- बुराई में फंसा व्यक्ति पैसा वाला भले हो जाए पर प्रसन्न आत्मा नहीं हो सकता और धर्मी व्यक्ति धनहीन ज़रूर हो लेकिन हर पल प्रसन्न बना रहता है, इसी से धर्म के मर्म को जानना चाहिए।

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