एक ही भगवान को अलग-अलग पूजने की क्या जरूरत?

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शंका

जब बच्चों के साथ तीर्थ यात्रा पर जाते हैं तो बच्चे पूछते हैं कि ‘एक ही भगवान बहुत हैं, दस जगह चक्कर लगाने की क्या जरूरत है, आप पूजा-पाठ, माला एक ही जगह कर लीजिए न, इधर से उधर, उधर से इधर क्यों कर रहें है।’ महाराज जी बच्चों को क्या जवाब देना चाहिए?

समाधान

एक दिन यही सवाल एक बार एक किशोर लड़के ने मुझसे किया। मुझसे पूछा ‘महाराज जी एक ही भगवान बहुत है, दस जगह चक्कर लगाने की क्या जरूरत है।’  मैंने पूछा ‘तेरी कोई फ्रेंड है, उसकी कितनी फोटो तेरे पास होंगी?’ उसने कहा ‘जितनी मिल जाएँ’ ‘पर फोटो तो सब एक की ही हैं।’ ‘एक की है लेकिन अलग-अलग में भी अच्छी लगती है।’ ‘जब तुझे गर्लफ्रेंड की अलग-अलग फोटो पसन्द है, तो भगवान की अलग-अलग मूर्ति पसन्द क्यों नहीं है।’ अरे जिससे प्रेम हो, जिससे लगाव हो, जिसके प्रति श्रद्धा हो, जिसके प्रति भक्ति हो, उसके तो हर रूप को देखने की इच्छा होती है। इसलिए अधिक से अधिक वन्दन करो, यह मौका है। एक में जाओ, फिर दूसरे में जाओ, फिर तीसरे में जाओ, देखो ‘यह भगवान हैं’, अगर भगवान का एहसास होने लगे तो यह दुविधा कभी नहीं होगी।

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