संसार में दुःख-सुख दोनों है फिर इस सृष्टि की रचना क्यों हुई?

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शंका

संसार में दुःख-सुख दोनों है फिर इस सृष्टि की रचना क्यों हुई?

समाधान

कोई खेल होता है और उस खेल में केवल जीत हो तो मज़ा आयेगा? खेल का मज़ा कब है? जब जीत के साथ हार हो! संसार में केवल सुख-सुख होता तो संसार नीरस हो जाता। संसार का मज़ा ही तब है जब सुख के साथ दुःख है। 

हम बगीचे में जाते हैं, गुलाब के पौधे को देखते हैं, बहुत आकर्षक लगता है। लेकिन उस पौधे का मज़ा तब ही है जब फूल के साथ काँटे हों। केवल फूल ही फूल हों तो मज़ा नहीं है। ये प्रकृति है। दिन का उजाला हमें बहुत अच्छा लगता है, रात हमें बहुत अच्छी नहीं लगती लेकिन थोड़ी देर के लिए कल्पना करो कि इस प्रकृति में केवल दिन होता, रात नहीं होती तो हमारा क्या हाल होता?

 ये नियम है, सृष्टि का आनन्द ही तभी है जब सुख और दुःख दोनों हों। तो ध्यान रखो और “सुख-दुःख के योग का नाम संसार है” और संसार के सुख का मज़ा वही ले सकते हैं जो सुख में ज्यादा फूलें नहीं और दुःख में ज्यादा कूलें नहीं! अपने जीवन का रस लें अपने जीवन का आनन्द लें।

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