साधु संतों के सानिध्य में रहकर भी वैराग्य क्यों नहीं हो पाता?

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शंका

साधु संतों के सानिध्य में रहकर भी वैराग्य क्यों नहीं हो पाता?

समाधान

इसलिए नहीं हुआ क्योंकि आप लोग एकदम SOUNDPROOF (ध्वनिरोधक) हैं। SOUNDPROOF का मतलब समझते हो? सुनते हो, लेकिन सोचते हो कि – “अभी हम वैराग्य ले लेंगे तो महाराज की सेवा कौन करेगा?” वैराग्य एक बहुत दुर्लभ घटना है, हर किसी के मन में नहीं होता। जिसका भवितप अच्छा होता है वही वैराग्य ले पाते हैं। फिर भी मैं उन लोगों को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ, जिनके ह्रदय में वैराग्य भले न हुआ हो पर वैरागियों से अनुराग हो जाता है। कन्हैया लाल जी! इस जीवन में वैरागियों से अनुराग हुआ, इस अनुराग का फल अपने जीवन के आखिरी समय में पा लेना कि – “मेरा अंत अस्पताल में न हो, गुरु चरणों में णमोकार जपते हुए हो, समाधि करते हुए हो।” ये फल प्राप्त कर लोगे और ऐसा पुण्य संचित करोगे की अगले भव में न केवल वैराग्य को पाओगे, अपितु वैराग्य के फल स्वरूप कैवल्य को भी प्राप्त कर सकोगे।

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