हम जानते हैं कि रोज हजारों लोगों की मृत्यु होती है उसके बावजूद हम अनन्त काल तक जीवित रहना क्यों चाहते हैं? क्या यह मृत्यु का भय होता है या जीवन के प्रति हमारी लालसा? यदि मृत्यु का भय होता है, तो वह कैसे दूर हो और यदि जीवन के प्रति हमारा मोह हो तो वो मोह कैसे दूर हो?
अन्दर की बढ़ती हुई जीवेषणा ही मनुष्य की लंबे समय तक जीने की मानसिकता तैयार करती है। मृत्यु का भय, मृत्यु से आदमी खौफ खाता है, लम्बा जीवन जीना चाहता है। जीवन के भय से मुक्त होने के लिए हमें ययाति की कथा को याद करनी होगी। ययाति की लम्बी उम्र हुई और उसने चाहा कि मेरी आयु बढ़ जाए- इस कथा को रूपक रूप में लेना क्योंकि जिस तरह से कथा है प्रैक्टिकली वैसा सम्भव नहीं है। ययाति के लिए कहा गया है कि उनके सब पुत्रों की आयु उनको दे दी जाए। एक पुत्र, दो पुत्र, तीन पुत्र, चार पुत्र, सब पुत्रों की आयु दी जाने की बात जब आने लगी तो आखरी पुत्र ने उनसे एक ही बात कही “हम आपको अपनी आयु देते हैं लेकिन इतनी आयु जी कर आप क्या करोगे? एक समय ऐसा होगा जब आने वाली सन्तति आपको पहचान ही नहीं पाएगी, हमारे और आपके बीच में इतना बड़ा फाँसला हो जाएगा, तब आप कहाँ रहोगे?” तब उसे समझ आया कि जीवन का एक सत्य मृत्यु भी है, उसके अन्दर के जीवन का मोह खत्म हुआ। तब उसने कहा कि “अब मैं मृत्यु से डरूँगा नहीं, मृत्युंजय बनने के रास्ते पर चलूँगा।” इस कथा को याद करना चाहिए।
Leave a Reply