मुनिश्री को नमोस्तु और माताजी को वन्दामि क्यों कहते हैं?
हमको नमोस्तु इसलिए कहते हैं क्योंकि यह प्रोटोकॉल है, नमस्कार हो। नमोस्तु का मतलब भी वही होता है जो वन्दामि का होता है और नमस्ते का मतलब भी एक ही होता है।
एक बार एक बच्चे ने प्रश्न किया, “महाराज जी! नमोस्तु कहो, वन्दामि कहो, नमस्ते कहो, प्रणाम कहो; सब का तो एक ही मतलब है। फिर आपको नमोस्तु और माताजी को वन्दामि और आम लोगों को नमस्ते क्यों कहते हैं?” हमने कहा-’शब्द के अर्थ एक हो कोई बात नहीं लेकिन शब्द जिस संदर्भ में प्रयोग में लिया जाता है उससे उसका अर्थ बदल जाता है, भाव बदल जाता है। जैसे भगवान की जय बोलते हो, मुनि महाराज की जय बोलते हो और राजा महाराजा की भी जय बोलते हो। क्या तीनों जगह जय का एक सा भाव होता है?’ मैंने उससे कहा कि तुम अपनी माँ को माँ कहते हो और तुम्हारे माँ की उम्र के बराबर की दूसरी औरत को भी तुम माँ कहते हो लेकिन माँ को माँ कहते समय और दूसरी औरत को माँ कहते समय, क्या एक सा भाव होता है? नहीं होता! इसी तरह मुनि महाराज को नमोस्तु करते समय और औरों को नमस्ते करते समय एक सा भाव नहीं होता। जिसके लायक जो भाव है उसी अनुरूप शब्द का प्रयोग लेना चाहिए।
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