नारियाँ भगवान का कलश क्यों नहीं कर सकती हैं?

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शंका

गोमटेश बाहुबली जी का प्रथम कलश गुल्लिका जी ने किया था। वो एक नारी थी, फिर भी उसने कलश किया तो आजकल की नारियाँ भगवान का कलश क्यों नहीं कर सकती हैं?

समाधान

ये बड़ा विवादास्पद विषय है और इसको लेकर के समाज में काफी उहापोह हुई है। मैं तो सिर्फ इतना कहूंगा कि गुल्लिका जी के रूप में जो कलश किया गया वो एक प्रतीकात्मक परिणाम था। भक्ति के प्रतीक स्वरूप दैवीय शक्तियों के द्वारा किया गया और चामुण्डराय के मान को गलाने के लिए किया गया। इसको आधार बनाकर के इस बात को बहुत आगे बढ़ाना मेरे विचार से बहुत अच्छी बात नहीं है। यदि किसी की अभिरुचि है करने की तो जहाँ होती है वहाँ करें। मैं आपसे इतना कहता हूँ, अपने चिंतन के लिए तीन-चार बातों को हर व्यक्ति को ध्यान में रखना चाहिए। 

  1. आचार्य पूज्यपाद ने भगवान का जन्माभिषेक करते हुए इन्द्र के द्वारा भगवान का अभिषेक करने का विधान किया। इन्द्राणियों को केवल कहकर ऐसा क्यों कहा?

मङ्गल-पात्राणि पुनस्तद्-देव्यो बिभ्रतिस्म शुभ्र-गुणाढ्याः।

अप्सरसो नर्तक्यः, शेष-सुरास्तत्र लोकनाव्यग्रधियः।।

  1. त्रिलोयपण्णन्ति आदि ग्रंथों में देवों के द्वारा भगवान के अभिषेक का वर्णन मिलता है, देवियों के द्वारा भगवान के अभिषेक का वर्णन क्यों नहीं? 
  2. आदि पुराण और उत्तर पुराण में भी भगवान के जन्माभिषेक के विषय में देवों के द्वारा भगवान का अभिषेक या अन्य अभिषेको में भी देवों के द्वारा अभिषेक का विधान मिला, देवियों के द्वारा भगवान के अभिषेक का विधान क्यों नहीं मिलता है, ये विचारणीय है। 
  3. आचार्य पूज्यपाद ने नंदीश्वर द्वीप के वर्णन में भी देवों के द्वारा भेदन वर्णनाकार-

भेदेन वर्णना का, सौधर्मः स्नपन-कर्तृता मापन्नः । 

परिचारक-भावमिताः शेषेन्द्रा-रुन्द्र-चंद्रनिर्मल यशसः।।

की युक्ति रखकर अन्यों के द्वारा अभिषेक करने का विधान क्यों नहीं किया? देवियों के द्वारा विधान क्यों नहीं किया? 

इसलिए मैं कहूँगा कि इस तरह के विवादास्पद प्रसंगों को इस शंका समाधान में रखना ही नहीं चाहिए। मैंने कई बार बोल दिया। कई-कई तरीके के लोग होते हैं जिनका उद्देश्य समाज में खींचातानी करना है। जहाँ जो परिपाटी है वही करो। 

आज एक महानुभाव मेरे पास आये मैं अकेले बैठा था। मुझसे बोला कि ‘चतुर्थ गुणस्थानवर्ति मुनिराज प्रमाण सागर जी महाराज को जय जिनेन्द्र।’ हमने कहा कि ये आदमी ज्यादा कुछ पढ़ लिख गया है और वो ऐसी पंथवादी बातें कर रहा था, मुझसे बहस करने के मूड से आया था। मैंने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को समय देना अपने समय की बर्बादी करना है। 

मैं समाज से ये कहना चाहता हूँ जितने भी लोग मुझे सुनते हैं, समाज को इस विष से मुक्त करो। पंथ को नहीं पथ को देखें। पंथों के विषय में जिसकी जैसी अवधारणा है करने दो। एक दूसरे पर थोपने की कोशिश मत करो। हमारी पूजा-आराधना ही धर्म नहीं मूल तत्व ज्ञान ही धर्म है। उस तत्वज्ञान का आश्रय लेकर चलोगे तो तुम्हारी भी उन्नति होगी और समाज का भी भला होगा और छोटी-छोटी बातों पर लड़ते उलझते रहोगे तो सारी जिंदगी ऐसे ही निकल जायेगी, हाथ में कुछ भी हासिल नहीं होगा। इसलिए ऐसे प्रश्नों को महत्व ही नहीं देना चाहिए।

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