जन्म के साथ मृत्यु निश्चित है, फिर भी किसी अपने की मृत्यु होने पर जीव को इतना दुःख क्यों होता है उसे भूल ही नहीं पाते। जो जीव मृत्यु के नजदीक है, उसे अपनों की उस समय सबसे ज़्यादा आवश्यकता होती है लेकिन वो ही उनके पास नहीं होते हैं। और मरणोपरांत, समाज को दिखाने के लिए सब इकट्ठे हो जाते हैं, तो ये कहाँ तक उचित है?
इसी का नाम मोह है। मोह हमें वस्तु के स्वरूप को जानने नहीं देता, जानने के बाद भी अनजान बना देता है। हम जानते हैं कि जन्म के बाद मृत्यु सुनिश्चित है लेकिन वो हमें स्वीकारने नहीं देता कि मृत्यु सुनिश्चित है, पर मेरी मृत्यु का नंबर अभी नहीं, अपनों की मृत्यु का नंबर अभी नहीं। ये क्यों हो गया? जो वस्तु के स्वरूप को जानता है, जिसका मोह शान्त हो गया, वो उसका ह्रदय कभी विचलित नहीं होता, वो उसे सहज भाव से स्वीकार कर लेता है। तो हमें मोह को जीतने की कोशिश करनी चाहिए।
अपनी मृत्यु जब नजदीक आती है, तो औरों की ज़्यादा याद क्यों आती है? ये मोह के कारण आती है। मोही जीव अपने परिजनों को याद करता है और जो ज्ञानी जीव होता है वह अन्तिम क्षणों में अपनी आत्मा की शरण में जाता है, अपनी आत्मा को सुधारने और सवारने का प्रयत्न करता है।
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