क्या भाव लिंगी मुनि पंचम काल के अंत तक होंगे?

150 150 admin
शंका

आगम में आया है कि पंचमकाल के अन्त तक भाव लिंगी मुनि होंगे लेकिन एक मत ऐसा है जो कहते हैं कि मुनि होते ही नहीं है, तो फिर उनकी ऐसी मान्यता क्यों है?

समाधान

उनको मुनि बनना नहीं है और मुनि को मानना नहीं है। इसलिए ऐसी मान्यता बनानी ही पड़ेगी। यदि मान लेंगे तो मुनियों को मानना पड़ेगा या बनना पड़ेगा। उनको तो आचार्य कुन्द कुन्द से मिलाना पड़ेगा। जिन आचार्य कुन्द कुन्द के नाम पर इस आध्यात्म के प्रवर्तन की बात वो करते हैं, वे आचार्य कुन्द कुन्द कहते हैं कि- 

अज्जवि तिरायण सुद्धा अप्पा झाएवि लहहि इंदत्त्तं

लोयंतिएदेवत्तं तत्थ चुआ णिव्वुदिं जंति।। मोक्ष प्राभृत ७७

अष्टपाहुड आज भी रत्नत्रय से शुद्ध है। मुनि जन अपनी आत्मा का ध्यान करके इन्द्रत्व को प्राप्त करते हैं। लौकान्तिक पने को प्राप्त करते हैं और वहाँ से च्युत होकर के मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसलिए इसमें कुछ सोचने की बात नहीं है। ये आगम है। आचार्य कुन्द कुन्द तो ये कहते हैं कि- 

भरहे दुस्सम काले धम्मझाणं हवेइ साहुस्स, 

तं अप्पसहावठिदे ण हु मण्णइ सो वि अण्णाणि ।।

इस भरत क्षेत्र में दुस्सम काल में साधु का धर्म ध्यान होता है, और जो यह नहीं मानता वह मिथ्यादृष्टि है। तो इससे स्पष्ट और बात क्या होगी, ये सब मन गढंत बातें है। इनको हमें कहीं से तवज्जो नहीं देना चाहिए।

Share

Leave a Reply