साधारण व्यक्ति का अगर हम थोड़ा गुणगान, मनुहार करते हैं, तो वह प्रसन्न हो कर कुछ दे देता है। हमने सिद्ध परमात्मा की आठ दिन तक ऐसी मनुहार की, क्या वीतराग परमात्मा से हमें कुछ नहीं मिलेगा?
जिसके पास माँगने से मिलता है, वह बहुत स्वल्प होता है; और जो बिना मांगे देता है, वह छप्पर फाड़ के देता है। सुदामा श्रीकृष्ण के पास गए थे, अपेक्षा ले कर गए थे कि ‘मांग लूँगा बहुत कुछ’, पर श्रीकृष्ण ने अवसर ही नहीं दिया, बल्कि गाँठ का चावल और खा लिया। सुदामा बड़े मायूस हो कर लौटे थे लेकिन घर आने के बाद उन्हें मालूम पड़ा कि हमें क्या मिला।
दूसरी बात, पेड़ के नीचे जाने के बाद (सघन छायादार बड़ का पेड़ हो), छाया माँगने की जरुरत होती है क्या? छाया तो अपने आप बरसती है। वहाँ जो मिला है, वह कहीं नहीं मिल सकता, जो अहोभाव, जो विशुद्धि, जो आनन्द है, वह जीवन की सबसे बड़ी निधि है, उपलब्धि है। इसको आप जड़ उपलब्धियों से जोड़ कर मत देखिये, सब कुछ मिलता है, अगर हम ठीक मन से करें तो।
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