उत्तम शौच से अभिप्राय :-
उत्तम शौच का अर्थ है पवित्रता। आचरण में नम्रता, विचारों में निर्मलता लाना ही शौच धर्म है। बाहर की पवित्रता का ध्यान तो हर कोई रखता है लेकिन यहां आंतरिक पवित्रता की बात है। आंतरिक पवित्रता तभी घटित होती है जब मनुष्य लोभ से मुक्त होता है।
उत्तम शौच धर्म क्या बताता है ?
शौच धर्म कहता है कि आवश्यक्ता, आकांक्षा, आसक्ति और अतृप्ति के बीच को समझकर चलना होगा क्योंकि जो अपनी आवश्यक्ताओं को सामने रखकर चलता है वह कभी दुखी नहीं होता और जिसके मन में आकांक्षाएं हावी हो जाती हैं वह कभी सुखी नहीं होता। हावी होती हुई आकांक्षाएं आसक्ति(संग्रह के भाव) की ओर ले जाती है और आसक्ति पर अंकुश न लगाने पर अतृप्ति जन्म लेती है, अंततः प्यास, पीड़ा आतुरता और परेशानी बढ़ती है ।
उत्तम शौच को आचरण में कैसे लाए:-
धर्म पथ पर चलते हुए मन में, विचारों में और आचरण में शुद्वता लानी होगी। कषाय को, लोभ को और मलिनता को कम करना होगा। धनाकांक्षा,भोगाकांक्षा, दुराकांक्षा और महत्वाकांक्षा इनकी तीव्रता से अपने आप को बचाकर ही उत्तम शौच धर्म को अपने आचरण में लाया जा सकता है।
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