ऐसा विज्ञान जो पल में दुःख को भगा दे
एक बार एक युवक ने सवाल किया कि क्या धर्म हमारी समस्याओं का समाधान कर सकता है? क्या धर्म हमारी समस्याओं का समाधान कर सकता है? तो मैंने उससे उसी की बात को उल्टा करके पूछा कि धर्म के अलावा ऐसा क्या है जिससे हमारी समस्याओं का समाधान हो? उसने कहा कि महाराज हमारी रोजी-रोटी की व्यवस्था धर्म के माध्यम से हो सकती है?
मैंने उससे कहा की समस्या को पहचानो केवल रोजी-रोटी ही तुम्हारी समस्या है या समस्या कुछ और भी है? अगर सिर्फ रोजी-रोटी की समस्या होती तो जिन्हें रोजी-रोटी मिल गयी है, उनके पास कोई समस्या होनी ही नही चाहिए पर देखने मे आता है कि जिनके पास रोजी-रोटी की व्यवस्था नहीं है उनकी समस्याएं सीमित है, और जिनके पास रोजी-रोटी बड़े पैमाने पर है उनकी समस्याएं उतनी ही बड़ी हो गयी है| समझना है समस्या क्या है? और इसका समाधान कहां है? इसमे धर्म की क्या भूमिका है? प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उसकी अपनी अपनी निजी समस्याएं होती हैं और उन सारी समस्याओं को यदि हम एक नजर में देखें, तो मुझे वह समस्या नहीं दिखती जिसे प्रायः लोग समस्या मानते हैं| यह तो बाहर की समस्या है, असली समस्या तो भीतर दिखाई पड़ती है और उन्हीं समस्याओ के कारण व्यक्ति दुःखी होता ह वह समस्या चार प्रकार की है जिनके कारण मनुष्य के अंदर से दुःखी होता है| आपके सारे दुःखों को अगर एक इकट्ठा में लिखा जाए तो चार प्रकार का ही दुःख दिखाई देगा, पांचवा तो कोई दुःख है ही नहीं|
पहला कल्पनाजन्य दुःख , दूसरा वियोगजन्य दुःख ,तीसरा अभावजन्य दुःख, चौथा परिस्थितिजन्य दुःख
इन चार प्रकार के दुःख में संसार का सारा दुःख समाहित हो जाता है| या तो मनुष्य अपने मन की कल्पनाओं के कारण दुःखी होता है या किसी वियोग में उलझ कर दुःखी होता है| वियोग से व्यथित होकर दु:खी होता है या अपने अभावों के कारण परेशान होता है या वह परिस्थितियो से दुःखी रहता है| यह दुःख है और इन दुःखों का निदान तुम्हारे पैसों के पास नहीं है | इन दुःखों का निदान मनुष्य के पास पर्याप्त साधन में नहीं है | इन दुःखों का निदान सुख सुविधाओं से नहीं है| इन दुःखों का निदान तुम्हारे अंदर है, जो धर्म से प्राप्त होता है
यदि हम गहराई में जाएं तो हमे अज्ञान से दुःख है और विज्ञान से सुख है| वर्णमाला के क्रम में आज ‘व’ का प्रसंग है और आज मैं आपसे विज्ञान की बात कर रहा हूं| वर्तमान युग विज्ञान का युग है और अब तो विज्ञान से भी आगे बढ़ कर के तकनीकी युग में हम प्रवेश कर गए है। विज्ञान से टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ गए है और विज्ञान हमारे लिए एक बहुत अच्छे माध्यम के रूप में हमें प्राप्त हुआ है, जिसे आज हम भौतिक विज्ञान कहते हैं|विज्ञानिको ने बहुत सी खोज करके हमारी बहुत सारी दुविधाओं को दूर करने में हमारी मदद की है, विज्ञान ने हमें संसाधन दिए और टेक्नोलॉजी ने हमें बाहर से समर्थ बना दिया, लेकिन मैं आपसे उस विज्ञान की बात नहीं कर रहा, उस टेक्नोलॉजी की बात नहीं कर रहा क्योंकी उस विज्ञान ने जहां एक और विकास किया वही दूसरी ओर उसकी आड में हमें महाविनाश भी दिखाई दे रहा है| वर्तमान युग विज्ञान और टेक्नोलॉजी का युग है और आज जितनी उपलब्धियां मनुष्य ने अर्जित की है आज से 50 बरस पहले वह सारी उपलब्धियां मनुष्य के पास नहीं थी लेकिन दूसरी तरफ हम देखते हैं कि आज से 50 वर्ष पहले मनुष्य जितना सुखी था आज इतना सुखी नहीं है| आखिर क्यों? विज्ञान ने मनुष्य को बाहर से समर्थ बनाया और वह अंदर से कमजोर हो गया, अंदर से वह खाली हो गया, संत कहते हैं “इस विज्ञान के प्रवाह में जो बहेंगे वो अंदर से मजबूत नहीं हो पाएंगे और जो भीतर से मजबूत नहीं होता वह अपने जीवन में उत्पन्न समस्याओं का सही समाधान नही पा सकता”। जीवन की समस्याओं का सही समाधान चाहिए तो इस विज्ञान को नहीं वीतराग विज्ञान को जानने की आवश्यकता है| जीवन के असली विज्ञान को समझने की आवश्यकता है, मनुष्य अगर जीवन के विज्ञान को समझ ले, तो उसके जीवन की समस्याओं का समाधान वह आसानी से पा सकता है। आपके जीवन का विज्ञान क्या है? पता है? आपके पास कोई भी यंत्र होता है आप उसके पूरे सिस्टम को अच्छी तरीके से जानते हो और यह जानते है किस यंत्र को किस तरीके से व्यवस्थित करके संचालित किया जाता है | इस यंत्र का पूरा सिस्टम क्या है? इसका फंक्शन क्या है? उसके अनुसार उस यंत्र को आप अच्छे तरीके से संचालित कर लेते हैं। जिस जीव को इसकी जानकारी होती है वह इसमें विशेष रूप से सक्षम होता है, और जिसे जानकारी नहीं होती वह उसे चला भी नहीं सकता। आज टेक्नोलॉजी का युग है आप सबके हाथ में गैजेट्स है| एक से गैजेट्स है और एक-एक गैजेट्स में कितने-कितने फंक्शन्स है? अनगिनत फंक्शन्स है। लेकिन इन फंक्शन्स का लाभ कौन ले पाता है? जो इस टेक्नोलॉजी को जानता है। एक सज्जन थे उनकी उम्र 72 साल की थी, उनके पास iPhone था तो किसी ने कहा दादाजी इससे थोड़ा एक WhatsApp भेज दीजिए, उन्होंने कहा बेटा मैं तो केवल लाल बटन और हरा बटन जानता हूं इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता| लाल बटन और हरा बटन जानता हूं इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता| वही उनके पोते की उम्र का बच्चा था उसने कहा दादा जी मुझे दीजिए मैं कर देता हूं मैं WhatsApp फंक्शन जानता हूं सवाल गैजेट्स का नहीं है, सवाल उसके ज्ञान का है| जिसे उसके सिस्टम का पता है वो उसे अच्छे से चला सकता है परंतु जिसे चलाना नही आता उसके लिए तो वह किसी काम का नही| जैसे गैजेट्स का सिस्टम है और उस को सही तरीके से संचालित करो तो उसके सारे ऍप्लिकेशन्स अपने-अपने तरीके से काम करते हैं | वैसे ही हमारे जीवन का एक सिस्टम है और जीवन के सारे ऍप्लिकेशन्स अपने अपने तरीके से काम करते हैं| जो इसे जानता है वो इस जीवन का पूरा आनंद लेता है और जो नहीं जान पाता उस के लिए जीवन केवल एक बोझ बना रह जाता है| मैं आपसे पूछता हूं जब आपके हाथ के इस मोबाइल का फंक्शन ठीक तरीके से काम नहीं करता तो उस समय आपके मन में क्या चलता है? झनझनाहट होती है कि नहीं होती? अरे महाराज! दिमाग खराब हो जाता है और उस समय तो और ज्यादा जब कोई जरूरी काम हो। लेकिन यदि आपको पता हो कि यह सब फंक्शन होता कैसे हैं तो आने वाली रुकावट में आपको कोई परेशानी होगी? आप कहोगे कोई बात नहीं अभी इसे ठीक करता हूं और जहां फॉल्ट हो आप उसे ठीक कर देंगे| आपका जो गैजेट है फिर से ठीक ढंग से काम करने लगता है वापस हो जाता है| मैं आपसे यही कहता हूं इस जीवन के साथ भी ऐसा है कदम कदम पर बहुत सारी रुकावटें आती है और जितनी भी रुकावटें है बाधाएं है वह कम समय के लिए होती है और वो जीवन एक अंग है इसे जो जानता है, वो उसे ठीक कर लेता है और आगे बढ़ जाता है और जो इसे नहीं जान पाता वह जिंदगी भर रोता रहता है| जीवन का विज्ञान जानिए आज मैं वही पाठ पढ़ाने जा रहा हूं| पहले अपने दुःखों का विश्लेषण कीजिए और फिर देखिएगा कि जीवन के विज्ञान से हम अपने दुःखों को कैसे दूर कर सकते हैं|
कल्पनाजन्य दुःख
कल्पनाजन्य दुःख दो तरीके से होता है या तो हम अपने भूतकाल की यादो में खोते हैं, या हम भविष्य के खयालो में उलझते है| भूतकाल की यादों में जब हम खोते हैं और वह बातें हमारे ऊपर हावी हो जाती है तो हमारे दिमाग में अनेक प्रकार का तनाव उत्पन्न होने लगता है हमारे अंदर की सहजता खण्डित होने लगती है| 20 बरस पहले किसी ने हमसे कुछ गलत बोला, उसकी शक्ल हमने देख ली और खून खौल उठा, असहज हो गए। एक बार एक सज्जन आए भगवान के मंदिर से निकले तो मैंने देखा एकदम चेहरा तमतमाया हुआ है, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ मंदिर से बाहर निकल रहा है चेहरा तमतमाया हुआ है मैंने लोगों से पूछा क्यों भाई अंदर कोई झगड़ा हो गया क्या? बोले नहीं! सब कुछ सामान्य लेकिन इस आदमी का चेहरा तमतमाया हुआ क्यों? परिचित था मैंने उससे पूछा भैया तुम्हारा चेहरा तमतमाया हुआ क्यों है? इतना ज्यादा तुम गर्म क्यों हो? बोले महाराज! हमारा एक दुश्मन दिख गया 20 बरस पुराना दुश्मन दिख जाए तो भी तुम्हें उसकी स्मृति खा जाती है और तुम्हारा चित्त खौल उठता है तुम्हारे जीवन की सहजता को खा जाता है| जीवन में मनुष्य के साथ अतीत में अनेक घटनाएं घटी है आप की, हमारी सब की जिंदगी की कहानी यही है| यदि हम अपने अतीत को पलट कर के देखें तो सब का अतीत अच्छा नही है | सब का इतिहास गंदा है, काला है लेकिन उन स्मृतियों को हम पकड़ कर के बैठेंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे| अतीत एक भोगा हुआ यथार्थ है उसे भुला देने में ही सार है| अतीत से हम शीख ले और वर्तमान में उसको सुधार ले तो हमारा भविष्य उज्जवल बन सकता है| अतीत में वही उलझते हैं जिन्हें वर्तमान का बोध नहीं होता| धर्म हमें एक कला सिखाता है, एक विज्ञान बताता है की भूत की बात को भूल जाओ जो बीत गई सो बात गई बीती ताहि इशार दे। यह समझ जिसके भीतर विकसित हो जाएं वह अतीत की बातों में उलझता नही। लेकिन आप अपने मन को देखें मन कितना अतीत में उलझता है उसी में उलझ कर अपने वर्तमान को खो देते हो दुःखी होते हो|
दूसरा है भविष्य की कल्पना करना| मुझे यह करना, मुझे वह करना मनुष्य के मन की जो प्लानिंग है ना उस प्लानिंग के आगे तो प्लानिंग कमीशन भी फेल है! कितनी प्लानिंग चलती है, कितनी योजना बनती है मुझे यह करना है, मुझे वह करना मैं यह करूंगा, मैं वह करूंगा अपनी चित्त वृत्ति को पलट कर देखो या तो तुम्हारा चित्त ‘गा’ पर होगा या ‘था’ पर होगा| ‘है’ पर है ही नहीं और यही ‘गा’ और ‘था’ तुम्हारे दुःखो की गाथा है, ‘गा’,’था’,’है’| है को देखो गाथा बदल जाएगी| धर्म हमें एक विज्ञान बताता है वर्तमान में जीना सीखो| अतीत व्यतीत हो चुका है वह भोगा हुआ यथार्थ है उससे शीख लो, नसीहत लो वर्तमान को सुधारो तुम्हारा भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल हो जाएगा लेकिन जो आने वाले कल की चिंता में अपने आज को खो देते हैं उनका कल कभी सफल नहीं होता, हमारे हाथ में वर्तमान हैं| जीवन का पहला विज्ञान वर्तमान में जीना सीखो, धर्म कहता है कि जीवन में जो भी संयोग है वियोग है वो हमारे अधीन नहीं है, कर्म के अधीन है| संसार के सारे संयोग अकर्मायत्त हैं। कर्म की अनुकूलता में तुम्हारी सारी अनुकूलताएँ बनती है और कर्म की प्रतिकूलता में प्रतिकूलताएँ आती है| अनुकूल-प्रतिकूल संयोग-वियोग लगे हैं| अतीत में जो गया वह भी तुम्हारा कर्म था, भविष्य में जो आएगा वह भी तुम्हारा कर्म है| तो तुम्हारा यह धर्म है कि वर्तमान में सजगता के साथ जिओ ताकि तुम कर्म को भोग न सको कर्म को काटने में समर्थ हो सको| जो इस सत्य को जानता है वो अतीत में उलझता नहीं और भविष्य में खोता नहीं| वर्तमान का उपयोग करता है कभी दुःखी नहीं होता| में आपसे पूछता हूं क्या वर्तमान में जीने वाला दुःखी है? बोलो, पता है सबको वर्तमान में जिओगे तो दुःखी होओगे? कभी नहीं होगे| सुखी होने का मंत्र है वर्तमान में जीना पर लोग है वर्तमान में जीना ही पसंद नहीं करते यह अज्ञान है। एक बार एक व्यक्ति ने कहा महाराज! थोड़ी दूरदर्शी(दूर का देखने वाला) तो होना चाहिए दूरदर्शी तो रहना चाहिए| मैंने कहा हा बिल्कुल दूरदर्शी बनना पर दुःखदर्शी मत बन जाना| दूरदर्शिता और दुःखदर्शीता में अंतर है आने वाले कल के प्रबंध की चेष्टा दूरदर्शिता है पर आने वाले कल की चिंता दुःखदर्शीता है| तुम अपने भीतर झांक कर देखो तुम्हारे अंदर चेष्टा है या चिंता? आजकल लोग प्रयास कम करते है परेशान ज्यादा होते हैं, प्रयास कम करते है परेशान ज्यादा होते हैं और यही परेशानी मनुष्य के जीवन के संतुलन को बिगाड़ देती है, संत कहते हैं ‘वर्तमान में जीना सीखिए कल्पनाजन्य कोई दु:ख नहीं फिर तुम्हारे अंदर दु:ख की कल्पना ही नहीं होगी’| ध्यान रखना एक बात मैं आप सब से कहता हूं सुख तो फिर भी किसी और के निमित्त से मिलता है, दु:ख तो मनुष्य का खुद का अपना ही सर्जन है| तुमने उसे खुद ने सजाया है क्योंकि तुम जीवन की वास्तविकता को नकारते हो और जो जो जीवन की वास्तविकता को नकारते हैं उनका जीवन इसी भांति दु:खी हो जाता है|
वियोगजन्य दुःख
संसार में जहां संयोग है वहां वियोग होता है, संयोग के साथ वियोग और वियोग के साथ संयोग लगा हुआ है| संयोग-वियोग को कोई रोक नहीं सकता यह तो चलता ही रहता है| जहां संयोग है वहां वियोग होगा लेकिन यह सच है जो संयोग में खुश होगा वह वियोग में दु:खी होगा| आज तक इस संसार में ऐसा कहीं नहीं हुआ कि जहां केवल संयोग हुआ है और वियोग नहीं हो| हमारे पहले जितने पूर्वज आए उनका वियोग हुआ तो हमारा संयोग हो पाया और हम जगह खाली करके जाएंगे तो आने वाली जनरेशन आ पाएगी| थोड़ी देर के लिए कल्पना करो कि केवल प्रोडक्शन ही जारी रहता और जाने की बारी नहीं होती तो हमें तुम्हें यहां जगह मिल पाती क्या? आभार मानो उनका जिन्होंने हमारे लिए जगह खाली की तो हमारा भी कर्तव्य है की यहां से जगह खाली करके जाने के लिए तैयार रहें और कोई जगह खाली करके जा रहा है तो उसको भी स्वीकार करें| यह संयोग है, जिसका जितने दिन का संयोग है वह उतने दिन ही रहेगा| लेकिन जब भी कभी किसी के साथ कोई वियोग घटता है तुम्हारा मन उसे स्वीकार नहीं कर पाता इसलिए दु:खी होता है| संत कहते है-
‘इस वियोग को कोई रोक नहीं सकता है ये तो सिस्टम है’, दिया तभी तक जलेगा जब तक उसमें तेल है| तुम्हारे हाथ के दीए में तो तेल डालकर उसका समय बढ़ाया जा सकता है लेकिन जीवन के दीए में ऊपर से कोई तेल डालने की व्यवस्था नहीं है वह तो जितना तेल है उतना ही जलेगा, बीच में बुझ सकता है ज्यादा नहीं तो जब कभी कोई दीप जले ज्यादा हर्षित मत हो और कोई दीप बुझ जाए तो उसे निसर्ग का नियम मानकर स्वीकार कर लो| अपने भीतर विज्ञान का एक ऐसा दीप जलाओ जो कभी न बुझे, तो मन कभी दु:खी नहीं होगा इसे स्वीकार करना हमारा धर्म है| अभी5-6 दिन पहले नांदेड के विजय भाई का 25 साल का बेटा हृदयाघात(हार्टअटैक) से चला गया| एन. एल. जैन और एन. सी. जैन उनके यहां हो के आये, वे गुणायतन के शिरोमणि संरक्षक है और युवा लड़का जिसका अभी 2 माह पूर्व ही विवाह हुआ वो चला गया लेकिन अभी जब वहां से लौटने के बाद एन. एल. जैन साहब ने मुझे बताया तो मुझे बहुत अच्छा लगा कि यह वास्तविक श्रावक है श्रोता है श्रद्धालु है जिसने न केवल धर्म को सुना है अपितु धर्म को आत्मसात भी किया| इन्होंने कहा महाराज! विजय भाई की ढृढ़ता हमारे देखने लायक थी उसने कहा अगर हम ही टूट जाएंगे तो घर को कैसे संभालेंगे? यह समझदारी है| धर्म तुम्हारी विपत्ति को टालता नहीं धर्म में ये ताकत नहीं है कि तुम्हारी विपत्ति को टाल दे धर्म तुम्हारी विपत्ति को टाल नहीं सकता पर एकमात्र धर्म ही ऐसा तत्व है जो हमें विपत्ति में संभाल सकता है| विपत्ति अटल है, वियोग अटल है, बीमारी अटल है लेकिन धर्म एक ऐसा तत्व है जो हमें उस घड़ी से विचलित नहीं होने देगा| जीवन के इस विज्ञान को समझने वाला “हां ठीक है मेरा उसका संयोग इतने ही दिन का था”, इतनी सी समझ तुम्हारे भीतर आ जाए तो तुम्हारा मन कभी दु:खी नही होगा| महाराज! जब दूसरों पर विपत्ति आती है तब तो हमारे अंदर समझ होती है लेकिन खुद पर आती है तो पता नहीं ज्ञान कहां चला जाता है? संत कहते है – ’इसी क्षण विपत्ति में ही हमारे ज्ञान की परीक्षा होती है उस क्षण उन बातों को याद करो तत्त्वज्ञान का इस्तेमाल करो और जीवन को सही दिशा में आगे बढ़ाने का पुरषार्थ करो तब हम अपने जीवन का लाभ ले सकेंगे’| संयोग-वियोग तो लगे हुए है इसे कोई नहीं रोक सकता ये तो चक्र है जीवन का जो चलता रहेगा|
विकसते मुरझाने को फूल, उदित होता छिपने को चंद|
बरस जाने को भरते में, एक दीप जलता होने को मंद||
छलकती जाती है दिन रैन, लबालब तेरी प्याली में मौन होता जाता संगीत
क्षणिक है मतवाले जीवन!,
क्षणिक है मतवाले जीवन!!,
क्षणिक है मतवाले जीवन!!!
सर्वे संयोगः विप्रयोगान्ता:|
जितने भी संयोग है वह वियोगमय है| सूरज ऊगा है तो उसका अस्त होना भी सुनिश्चित है, अगर हम उगते सूरज का स्वागत करते हैं तो डूबते हुए सूरज से भी हमें घबराना नहीं चाहिए और इस विश्वास के साथ जीना चाहिए कि सूरज डूबेगा तभी तो उगेगा अगर डूबता नहीं तो उगता क्या? वियोग होगा तो संयोग होगा, संयोग होगा तो वियोग होगा|एक बार गुरुदेव का विहार ललितपुर से जबलपुर की ओर हुआ। और जब जबलपुर प्रवेश हुआ तो उन्होंने अपने पहले प्रवचन में कहा।
यहां मिलन गा रहा है उधर विरह रो रहा है, यहां मिलन गा रहा है उधर विरह रो रहा है|
आवागमन का यह क्रम यह पूछ रहा है ,हे मानव तू किधर जा रहा है||
अपने आप को पूछो यह तो चक्र है चलेगा| संयोग वियोग के इस वास्तविकता का विज्ञान रखने वाला व्यक्ति न तो संयोग में हर्षित होता है न वियोग में व्यतीत होता है| अपने आप को मजबूत बनाओ यही तत्वज्ञान एक आलंबन है| मेरे संपर्क में एक बहन जी है जिसने 27 वर्ष की उम्र में अपने पति को खो दिया था, 6 महीने का दूध पीता बच्चा जिसके गोद में है आप सोच सकते हैं कि उसके ऊपर कितनी बड़ी विपदा आयी होगी? लेकिन धन्य है वह बहन जिसने न केवल धर्म को समझा अपितु आत्मसात भी किया| विपत्ति की इस घड़ी में उसने अपने आप को संभाले रखा और अपने परिजनों से कहा जो होना था सो हो गया अब मेरे पति चले गए वह लौट कर के तो आने वाले नहीं शोकमग्न होने से क्या होगा? मैं यह नहीं देखती कि मेरे पति चले गए, मेरा पहले मन शील के मार्ग में निकलने का था| मैं अपनी दुर्बलता और परिवार के दबाव के कारण नहीं निकल पाई, चलो पति चले गए तो चले गए अब मेरा सौभाग्य है मैं पूरा जीवन शील संयम के साथ बिताउंगी| यह बच्चा नहीं होता तो में दीक्षा ले लेती पर अब मैं दोहरी जिम्मेदारी निभाऊंगी, इस बच्चे को मां के साथ पिता का प्यार भी दूंगी, यह समझदारी है| यह समझ जिसके अंदर हो क्या वो कभी दु:खी होगा? लोगों ने उससे कहा कि तुम दूसरा विवाह कर लो उसने कहा ऐसा नाम भी मत लेना यह पाप का काम मैं अपने जीवन में नहीं करूंगी| में कमजोर नहीं हु, मेरे अंदर दृढ़ता है, मजबूती है| मै शील संयम और सदाचार का मार्ग अपनाकर स्व-पर का कल्याण करूंगी, मुझमें वह ताकत है| ये है धर्म का चमत्कार, दु:ख निवारण की टेक्निक| वियोग हो तो अपने अंदर स्थिरता लाने का यह तरीका है| आप ये तरीका अपने भीतर विकसित कर सकते हैं अंदर से जागिए तो देखिए जीवन में कितना बड़ा चमत्कार घटित होता है|
नंबर-3 : अभावजन्य दुःख
प्रायः लोगों से पूछो भैया क्या तकलीफ है? मुझे यह तकलीफ है, मेरे पास इस चीज की कमी है, मेरे मुझे इसका अभाव है, मुझे उसका अभाव है यह एक बड़ी दुविधा है| लोग कभी भी बोलो तो अपने अभावों का रोना रोते है| इस सभा में इतने सारे लोग बैठे है अभी हम पूछे तो सब कोई ना कोई चीज का अभाव बताएंगे| बताएंगे कि नहीं बताएंगे? और पूछो तो बोले बस बाकी सब कुछ तो ठीक है पर इसकी कमी है बाकी सब कुछ तो ठीक है पर.. आगे नहीं बोलो तो यह डैश डैश डैश ही बता रहा है कि वह पर क्या है | और उसी पर के पीछे सारी जिंदगी तत्पर रहने के बाद भी मनुष्य उसे हासिल नहीं कर पाता जो उसे चाहिए| ध्यान रखने की बात केवल यह है की गंभीरता से विचार करो कि क्या तुम्हारे जीवन का अभाव और अल्पता तुम्हारे दु:ख का कारण है? यदि तुम किसी चीज के अभाव से अपने आप को दु:खी महसूस कर रहे हो, मान लीजिए तुम्हें लग रहा है कि मेरे पास धन नहीं है इसलिए मैं दु:खी हूं| तो जो धनी है क्या वह सुखी है? तुम्हें दिखता है मेरी संतान नहीं है, तो मैं दु:खी हूं तो उन्हें देखो जिनकी संतान है क्या वह सुखी हैं? तुम्हें लगता है मेरा विवाह नहीं हुआ, इसलिए मैं दु:खी हूं तो उन्हें देखो जिनका विवाह हो गया क्या वह सुखी है? क्या हो गया? बता रही हकीकत कौन सुखी है ? तुम जिस बात के अभाव में अपने आप को दु:खी महसूस करते हो थोड़ा उनके निकट जाकर देखो जिनके पास वह सब चीजें हैं तुम धन के कारण, तुम प्रतिष्ठा के अभाव में, तुम संसाधनों के अभाव में, तुम सुविधा के अभाव में, तुम संतान के अभाव में, तुम संतति के अभाव में, तुम संपत्ति के अभाव में, तुम सामग्री के अभाव में दु:खी हो रहे हो तो जिनके पास यह सब उपलब्ध है क्या वे सुखी है? थोड़ी नजर दौड़ा कर देखो क्या उत्तर आ रहा है| मेरे पास जिस चीज की कमी है वह चीज जिसके पास है क्या वह सुखी है? क्या जवाब है बोलो एक स्वर में तो फिर कैसे कहते हो कि ये अभाव मेरे लिए दु:ख का कारण है| ठीक, और एक दूसरी बात कहता हूं जो लोग यह सोचते है की अभाव के कारण मैं दुखी हूं तो जिसके पास सद्भाव है उसको सुखी होना चाहिए, और अभाव के कारण दुःख है तो सबसे ज्यादा दु:खी हमें होना। पर ऐसा है क्या? नही! बोलो मेरे से ज्यादा अभाव आप मे से किसी को है क्या? मेरे पास क्या है बोलो कुछ है? क्या है बोलो? आ ..आ.. सब कुछ है, सब कुछ है तो एक काम करो मेरा सब कुछ ले लो और अपना सब कुछ छोड़ दो| क्या हो गया कह रहे हो सब कुछ है तुम्हारे पास कुछ है मेरे पास सब कुछ है, तो मेरा सब कुछ ले लो अपना कुछ दे दो। क्यों नहीं? बोलो इमानदारी से बोलो जिन चीजों में तुम सुख मानते हो उनमें से मेरे पास क्या है? बोलो कुछ है? धन है? संपत्ति है? संतान है? कपड़े लत्ते भी नहीं है, कुछ है क्या? हमारी तो रोटी की भी व्यवस्था हमारे हाथ में नहीं है , बोलो है अभाव है ना? जिनके पीछे तुम भागते हो, जिनमें तुम सुख मानते हो जिसे तुम खोजते हो और जिसके अभाव में दु:खी होते हो मेरे पास उसमें से कुछ भी नहीं है| है क्या? नहीं है ना? तो तुमसे बड़ा अभाव हमारे पास है कि नहीं? बोलो उसमें क्या बाधा है ? है सो है| मेरे पास है ना मेरा बैंक बैलेंस है, ना मेरे पास कोई प्रॉपर्टी है, ना मेरे पास कोई लेन-देन है, ना मेरे पास कोई सुख साधन है| कुछ भी तो नहीं है, तो फिर मुझे तो दु:खी होना चाहिए ना| मानने को राजी हो मुझे दु:खी होना चाहिए? क्यों नहीं? विचार करो तुम सब कुछ जोड़ कर के भी दु:खी हो और हम सब कुछ छोड़ कर के भी सुखी हैं कारण क्या है? सब जोड़ने के बाद भी तुम्हारा दु:ख नहीं मिटा और मेने सब छोड़ दिया तो भी मेरे पास दु:ख नहीं क्यों? बोलो यही तो समझने की बात है इसी विज्ञान को पहचानो, ध्यान से सुनने की बात है अभाव दु:ख का कारण नहीं अभाव की अनुभूति दु:ख का कारण है| यदि मैं अभाव महसूस करने लगूँ मेरे पास तो कुछ है ही नहीं मैं दु:खी हो जाऊंगा| छोड़ो धन-संपत्ति तो साधु त्याग दे त्याग ही देता है तब साधु बनता है पर साधु यही सोचे कि लोग ही नहीं आते तो दु:खी हो जाएगा| अभाव की अनुभूति जहां हुई वहां दु:ख आया| तो तुम्हें एक विज्ञान देता हूं सुखी होने का मंत्र है जीवन में जब कभी अभाव और अल्पता हो उसे पूर्ण करने की चेष्टा करना लेकिन कभी अपने जीवन में अभाव की अनुभूति मत करना धर्म यही सिखाता है| कैसा भी अभाव हो, अभाव का अनुभव मत करो और अभाव का अनुभव करने से बचने का उपाय क्या है? जिसके पास सब कुछ है उसका मूल्याकंन करो और जो तुम्हारे पास है उसे देखो और जो औरों के पास उसे देखना बंद कर दो| कभी दु:ख नहीं होगा लेकिन क्या करते हो जो तुम्हारे पास है वह तुम्हें दिखता नहीं है, जो औरों के पास है उसमें आंखें गड़ाए रखते हो इसलिए दु:खी हो| किसने दु:खी किया? संत कहते हैं- ‘तुम सड़क पर चलते हो और कदाचित नंगे पाँव चल रहे हो और कोई जूता पहनकर गुजरे तो उसके जूते को देखने की जगह अपने पाँव को देखने की कोशिश करो और अपने आप को भाग्यशाली समझो कि मैं कितना भाग्यशाली हूं कम से कम मेरे पास पैर तो है दुनिया में ऐसे भी कई लोग हैं के जिनके पास पैर भी नहीं है ‘| पर तुम्हारी नजर अपने पैरों पर कम सामने वालों की जूते पर ज्यादा जाती है, इसलिए दुःख के जूते खाते रहते हो| क्यों दूसरे के जूते को देखते हो? वह जूता तुम्हारे काम का है कि तुम्हारे पैर तुम्हारे काम के है? क्या तुम्हारे काम का है? कितने समझदार हो आप लोग अगर यहाँ बिठाल दू ना तो मुझसे अच्छा प्रवचन आप लोग कर दोगे| “काश जो बातें हम जानते हैं उसे मानना शुरू कर दे तो जीवन बदल जाएगा”, अपने जीवन को सुखमय बनाने का रास्ता हमें खुद तय करना होगा, हमें खुद बनाना होगा और जब हम उस रास्ते पर चलेंगे तभी अपने जीवन को आगे बढ़ाने में समर्थ हो सकेंगे| तो कल्पनाजन्य,वियोगजन्य,अभावजन्य और
चौथा परिस्थितिजन्य दुःख
हर मनुष्य अपनी परिस्थितियों का रोना रोता है किसी भी व्यक्ति से बात कर रहा है जी क्या बताएं जी परिस्थिति ही मेरे अनुकूल नहीं है| ठीक है संसार है परिस्थितियां बनती और बदलती है जब तुम्हारे सामने कोई प्रतिकूलता आए पहला प्रयास तुम यह करो कि उसे बदलने की कोशिश करो| परिस्थिति को बदलने की कोशिश करो लेकिन जब परिस्थिति बदलने लायक ना हो और उसी परिस्थिति में जीना तुम्हारी मजबूरी दिखे तो तुम परिस्थिति के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल लो| परिस्थिति को बदलना हमारे हाथ में नहीं है पर परिस्थिति के अनुकूल स्वयं को ढालना हमारे हाथ में है। बस यह मंत्र अपने मन मे उतार लो की परिस्थिति नहीं मनस्थिति बदलनी चाहिए| मनस्थिति बदलते ही परिस्थिति बदल जाती है| कितनी भी विषम परिस्थिति हो अगर हम उसे स्वीकार कर ले तो हमारे लिए अनुकूल बन जाती है और जब हम उसे स्वीकार नहीं करते तो हमारे लिए प्रतिकूल परीलक्षित(परछाई की तरह साथ रहती है) होती है| स्वीकार करना सीखें देखें अब महाराज! यह तो बताओ कि परिस्थिति के अनुकूल अपने मनस्थिति को कैसे डालें महाराज जी! जब परिस्थिति बिगड़ती है तो हमारी भावना पर कंट्रोल नहीं रहता कैसे परिस्थिति और मनस्थिति में तालमेल बनाए? एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल है आज के पूरे प्रवचन के सार के रूप में 4 बातें आपसे बता रहा हूं, यह चार बातें याद रखना आपके जीवन में कभी दु:खी नहीं होगा| जब भी आपके सामने कोई विपरीत परिस्थिति हो चाहे विपत्तिजन्य हो या बीमारीजन्य हो या वियोगजन्य हो या और कोई विसंगति हो परिस्थिति विपरीत हो तो पहली बात यह मान करके चलो यह थोड़ी देर की बात है। क्या मानो थोड़ी देर की बात है सब ठीक हो जाएगा, थोड़ी देर की बात है बीत जाएगा, निकल जाएगा, कितनी देर की बात है थोड़ी देर की बात है। थोड़ी देर की बात मन में आते ही मन में धीरज उत्पन्न हो जाता है और यह ह्रदय हमें उन परिस्थितियों से लड़ने की ताकत देता है| आपको कभी ट्रेन में यात्रा करनी हो और टिकट ना मिली हो रिजर्वेशन ना हो तो यहां(रतलाम) से उज्जैन जाना हो या इंदौर जाना हो कोई बात नहीं घंटे दो-घंटे की बात है खड़े-खड़े चले जाएंगे समायोजित(adjust) हो जाओगे। लेकिन यदि यहां से आपको दिल्ली जानी हो और टिकट न मिल रही हो तो भैया पूरी रात का सफर है कैसे जाएंगे? क्या हुआ? दो-घंटे की यात्रा को आपने खड़े खड़े कर लिया कोई तकलीफ नहीं हुई समायोजित कर लिया और दस-घंटे की यात्रा में आपको तकलीफ हो रही है| बस मैं आपसे यही कहता हूं जीवन में कैसी भी कठिनाई का दौर क्यों ना हो मन में एक गांठ लगा लो थोड़ी देर की बात है सब ठीक हो जाएगा, थोड़ी देर की बात है सब कुछ ठीक हो जाएगा और जीवन में है क्या? दो दिन की जिंदगी में एक मौत का दिन है| एक ही तो दिन है तुम्हारे हाथ में, दो दिन की जिंदगी है, एक दिन मौत है तो हाथ में क्या है? थोड़ी देर की बात है कैसा भी कष्ट, कैसी भी परेशानी, कैसी भी मुसीबत, कैसी भी कठिनाई, थोड़ी देर की बात है| दूसरी बात, जो भी कष्ट परेशानी आए उसके प्रति अपना दृष्टिकोण सकारात्मक(positive) रखो उसे सकारात्मक दृष्टि से देखने की कोशिश करो| जब आपकी दृष्टि में सकारात्मकता आएगी आप दु:ख में सुख खोजने लगोगे, बुराई में अच्छाई दिखने लगेगी, प्रतिकूल भी अनुकूल दिखने लगेगा, “सकारात्मक देखना चाहिए”। सोच हमारी बदलनी चाहिए, इसे बड़ी आसानी से बदला जा सकता है| एक बहनजी एक बार मेरे पास आयी बहुत दु:खी थी बोली महाराज! जी कुछ उपाय बताइए बहुत तकलीफ है| बोली महाराज! क्या बताए हमारे ‘ये'(पति) है ना महाराज! बड़े गड़बड़ है, क्या बताए कभी मंदिर नहीं आते महाराज! घोर नास्तिक है पता नहीं कहा जाएंगे? महाराज! बहुत दु:ख होता है कैसे भी इनको पार लगाएं सबके पति आते हैं, हमारे ‘ये’ नहीं आते महाराज! बहुत तकलीफ होती है हम कहां फंस गए? मेने पूछा तुम्हारे पति क्या करते है? बोले, बिजनेस करते है| बोले, काम धाम बहुत अच्छा है? बोले, महाराज! बहुत टॉप का काम है। कोई व्यसन बुराई तो नहीं? बोले, नहीं महाराज कोई व्यसन बुराई नहीं है। तुम्हे रोकते टोकते तो नहीं? बोले, नहीं महाराज! मेरे लिए तो खुली छूट इस मामले में तो इतने सीधे है की, में शंका समाधान में आती हूँ तो चुप चाप रोटी निकाल कर खा लेते हैं। मुझे कभी परेशान नहीं करते, बहुत अच्छे है। तुम्हारी जरूरत की पूर्ति करते है? बोले, महाराज! एक से बढ़कर एक में पानी मांगती हूं तो दूध देते हैं। बहोत अच्छी बात है, और कोई कमी? बोले नहीं महाराज! बाकी मामले में तो बड़े देवता है लेकिन यह जो मंदिर नहीं जाते बड़ा कष्ट होता है महाराज! कोई उपाय बताइए बहुत दु:ख है| और वाकई में उसके चेहरे से दु:ख के भाव दिख रहे थे जब उसने पूरी बात करी तो हमने कहा बहन जी भगवान के चरणों में जाकर एक श्रीफल चढ़ाओ और भगवान से प्रार्थना करो की भगवान बड़े पुण्य के उदय से ऐसा पति मिला है। बोले, महाराज! आप तो मज़ाक कर रहे हो। में बोला, मज़ाक नहीं कर रहा हूँ तुम्हे यथार्थ का बोध करा रहा हूँ। यह बताओ तुम्हारा पति अधर्मी होने के साथ-साथ यदि तुम्हें धर्म से रोकता होता तो क्या होता? तुम्हारा पति यदि शराबी और व्यभिचारी होता तो क्या होता? तुम्हारा पति अगर तुम्हें रोज मारता, ठोकता, पीटता तो तुम्हारा क्या होता? तुम्हारा पति यदि कमाऊ नहीं होता तो क्या होता? तुम्हारा पति तुम्हारी भावनाओं की कद्र नहीं करता तो क्या होता? तुम्हारा पति तुम्हारी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता तो क्या होता? दुनिया में बहुत सारे पति ऐसे हैं जो अपनी पत्नियों के साथ इस तरह का उल्टा, उल्टा व्यवहार करते हैं। तुम कितनी भाग्यशाली हो मैं तो कहता हूं महान पुण्यात्मा को ऐसा पति मिलता है जाओ भगवान के चरणों में श्रीफल चढ़ाओ। उसके चेहरे की भंगिमा बदल गई बोली महाराज! इस दृष्टी से तो हमने कभी देखा ही नहीं। मैंने कहा देखने की कोशिश करो अब मैंने उससे पूछा यह बताओ तुम इतनी दु:खी हो अपना पति बदलने का इरादा है क्या? बोले, नहीं महाराज! कैसी बात करते हो? हमने कहा जब पति बदलना नहीं उसी पति के साथ रहना है, तो पति के प्रति अपना नजरिया बदल लो मामला अपने आप ठीक हो जाएगा। बस इसे बदलिए और नंबर चार बात कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखिए कर्मकांडी मत बनिए कर्म सिद्धांत के विश्वासी बनिए। जीवन में सुख-दु:ख, संयोग-वियोग, हानि-लाभ, जन्म-मरण सब करमायत्त है, कर्म के अधीन है, बनते है। इनमें मुझे उलझना नहीं है यह भावना आपके भीतर विकसित होगी तो नियमतः आपके जीवन का सारा दु:ख दूर होगा| तो ये विज्ञान है जिसे हम अपनाए और अपने जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश करें| हमारी कोशिश केवल यही होती है कि हम जीवन और जीवन के विज्ञान को पहचानकर अपने जीवन के क्रम को आगे बढ़ाने का प्रयास करें। यह हमें आगे बढ़ाते रहना चाहिए।
हम सब का उद्देश्य अपने जीवन को शिखर पर पहुंचाने का होना चाहिए| शिखरजी तो केवल एक निमित्त है पर एक शिखरजी हमारे भीतर है हम उस शिखरजी को पहचाने और अपने जीवन का गुणात्मक परिवर्तन करते हुए वहां पहुंचने का उपक्रम करे यह प्रयास हम सब का होना चाहिए| अभी जो एक पक्षियों के लिए चुग्गा पात्र(जिसमे पक्षियों के लिए दाना पानी रखते है) आप सबको यहां दिखाया गया, यह चुग्गा पात्र हर घर में होना चाहिए ये अभय दान का एक बहुत अच्छा उदहारण है| पिछले अजमेर चतुर्मास में हजारों लोगों के घरों में यह चुग्गा पात्र रखा और ये आपके जैन साहब जो एक बैंक के रिटायर अधिकारी है इन्होने नि:शुल्क वितरित करने का है प्रकल्प अपने हाथ में लिया है बहुत अच्छा है और लोग बताते हैं| ऐसा करने से तोते आते है चिड़िया आती है और वह दाना चुग करके, पानी पी कर के अपने आप को कृतार्थ करती है| यह आज सब की जिम्मेदारी है यह हमारा भी कर्तव्य होता है कि हम अपने साथ औरों के लिए भी जिए| हमने उनका बसेरा तो छीन ही लिया है लेकिन कम से कम हम जितना सहारा दे सके देने का प्रयास करना चाहिए| बोलिये परम पूज्य आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज की जय|