कैसे सीखे टूटकर भी टनाटन रहने की कला?
बारिश का मौसम और तेज बारिश के कारण नदी नालों में तेज तूफान है और कई जगह इस तूफान के परिणाम स्वरुप लोगों का संपर्क टूट गया। बीच में व्यवधान आने से टूटन होती है। आज ट की बात है, मैं टूटने की बात आप सब से करूंगा।
चार बातें हैं- टूटना, टूटा हुआ महसूस करना, टूट पड़ना और टनाटन रहना ।
मैं टूटने से टनाटन की यात्रा आप सबके बीच करना चाहता हूँ। टूटने का मतलब क्या होता है- किसी भी वस्तु का विनष्ट हो जाना, टूट जाना। कई चीजे टूटती है वस्तु भी टूटती है और व्यक्ति भी टूट जाता है। वस्तुएं जब टूटती है, खंडित होती है तो उन्हें थोड़े से प्रयासों से जोड़ा जा सकता है और यदि कदाचित् ना भी जुड़ें तो कोई भी टूटी हुई वस्तु का कोई ना कोई उपयोग परलक्षित हो जाता है। एक साबुत घड़ा हो तो उसका टुटा हुआ टुकड़ा भी खप्पर के काम आ जाता है। एक बड़ी लकड़ी हो उस लकड़ी की मेंज हो, उस मेज का भी बीच में टूट जाए तो भी उसका छोटा सा टुकड़ा भी कुछ नहीं हो तो जलावन के काम में आ जाता है। टूटी हुई वस्तु टूटने के बाद जुड़ भी जाती है और कदाचित न भी जुड़े तो उसकी उपयोगिता विनष्ट नहीं होती। पर टूटा हुआ व्यक्ति है जो एक बार टूट जाए तो उस को जोड़ना मुश्किल होता है और उसकी कोई उपयोगिता शेष नहीं होती। मैं आज आपसे कह रहा हूँ- जीवन में कभी टूटना मत, अपने आप को टूटने से बचाओ। अपने साथ अपना अटूट संबंध स्थापित करो। कंही से टुटो मत, कहीं से कमजोर मत बनो। अपने जीवन को सबल और समर्थ बनाने का कार्य करो। यह बात हमें धर्म सिखाता है जो मनुष्य को हर स्थिति में टूटने से रोकता है, बचाता है। आप देखिए कई स्तर पर आप टूटते हैं। चार स्तर पर टूटने की बात मैं आपसे कर रहा हूँ- सम्पर्क का टूटना, संबंध का टूटना, विश्वास टूटना, व्यक्ति का मन टूटना।
सबसे पहला-सम्पर्क का टूटना, संपर्क टूट गया फिर दूसरी बात संबंध टूटता है, तीसरी बात विश्वास टूटता है, चौथी बात व्यक्ति का मन टूट जाता है। यह टूटने की स्थिति है। अभी जैसे मैंने कहा देश के कई हिस्सों में बहुत तेज बारिश है, बारिश की अधिकता के कारण लोगों का सड़क संपर्क टूट गया। लोग आ नहीं रहे हैं, जा नहीं रहे है। सम्पर्क टूटता है लेकिन सम्पर्क बनने में देर नहीं लगती। आपके भी अनेक लोगों से संपर्क होते हैं। संपर्क होने के बाद कई बार ऐसा होता है कि कम्युनिकेशन गैप बनता है, एक दूसरे से दूरी बढ़ जाती है। एक दूसरे के साथ आपका कांटेक्ट नहीं बन पाता और संपर्क टूट जाता है। एक लंबे अंतराल तक संपर्क टूटता है लेकिन टूटा हुआ संपर्क परिस्थिति के जुड़ने पर वापस जुड़ भी जाता है। टूटने के बाद भी मतलब कॉन्टेक्ट टूट गया था अब हम फिर से जुड़ गए हैं। संपर्क टूटने से,टूटा हुआ संपर्क वापस स्थापित किया जाता है। जिनके साथ तुम्हारे संबंध है तुम्हारा उनके साथ संपर्क होना चाहिए। संपर्क टूट भी जाए तो वापस संपर्क को बनाने का प्रयास करना चाहिए। अगर संपर्क बनाओगे तो जीवन अच्छा होगा।
दूसरे क्रम में है- संबंध। संबंध बड़े मुश्किल से बनते हैं, जुड़ते हैं। जुड़े हुए संबंध को टूटने पर वापस जोड़ना बड़ा मुश्किल होता है, बहुत मुश्किल होता है। संबंध टूटते कैसे हैं? हम अपने संबंधो को अटूट कैसे बनाएं? कहा जाता है कि हमारे सारे संबंध काँच के समान होते हैं। एक बार टूट जाए तो जुड़ना बड़ा मुश्किल हो जाता है। मैं आपसे कहता हूँ, संबंध को काँच के समान ही क्यों बताया गया है? काँच की बड़ी उपयोगिता है। काँच पारदर्शिता रखता है इस पार से उस पार दिखाता है। यदि हमारे जीवन में भी पारदर्शिता हो तो हमारे संबंधों में कभी कोई खतरा नहीं होता। दूसरी बात काँच टूटता कब है? काँच कब टूटता है? काँच अपने आप नहीं टूटता। काँच दो ही कारणों से टूटता है। दो कारणों से काँच टूटता है- बाहरी आघात होता है तब या उसे गिरा दिया जाए तब। बस मैं आप से कहता हूँ कि अपने संबंधों की पड़ताल करो कि तुम्हारे संबंध कब टूटते हैं? जब तुम्हारे साथ बाहरी आघात जुड़ता है, बाहर का हस्तक्षेप होता है, बाहर का इंटरफेरेंस होता है, बाहरी शक्तियाँ हमारे संबंधों के बीच में आकर दरार डालना शुरु कर देती है तो वो हमारे संबंधों को बिगड़ती है। अपने संबंधो को बाहरी संपर्कों से अपने आपको दूर रखो। बाहरी आघात से अपने आपको बचाओ। उनसे अपनी सुरक्षित दूरी बनाकर रखो ताकि कोई तुम पर आँच ना आने दे। तुम्हारे संबंधों में रंचमात्र भी आँच ना आए, तुम इधर से उधर ना हो सके, यह प्रयास और पुरुषार्थ तुम्हारा होना चाहिए। दूसरा काँच को गिराने से काँच फूटता है। संबंधों में भी टूटन तब आती है जब तुम अपनों को गिराते हो यानी उनका तिरस्कार करते हो, उनकी उपेक्षा करते हो, उनका अनादर करते हो,जहाँ तिरस्कार, उपेक्षा,अनादर और अवमानना होंगी, वहाँ संबंध निश्चित रूप से टूटेगा। क्या चाहते हो आप? अपने संबंध को बरकरार रखना चाहते हो या संबंध को तोडना चाहते हो, क्या चाहते हो? बस दो बातें ध्यान रखो- मैं अपने संबंधो को टूटने नहीं दूंगा और जो भी टूटने वाले कारण है उनसे बचाकर रखूँगा। आजकल उल्टा हो रहा है। जिनसे बचना चाहिए उन्हें गले लगा रहे हो और जिनको गले लगाना चाहिए उनको धक्का दे रहे हो। जीवन का सारा संबंध इससे तार-तार होता है। लोगो के संबंधो में कंही माधुर्य नहीं दीखता। आखिर हमारे संबंधो में स्थिरता आएगी कैसे? अपने आप को मजबूत बनाने का उपक्रम हमारा होना चाहिए। उस तरफ हमारी दृढ दृष्टि होनी चाहिए। यदि यह दृष्टि अंदर में विकसित होगी तो जीवन में आमूलचूल परिवर्तन हो सकता है। तो ये दो बाते आपको मैंने कहा। संबंधो को टूटने से बचाना है। काँच की भाँति संबंध है, जैसे तुम काँच के प्रति सावधान रहते हो वैसे संबंधों के प्रति सावधान रहो। ध्यान रखना! टूटे हुए काँच को गला करके फिर वापस जमाया जा सकता है। टूटे हुए संबंधों को गलाना, जमाना वापिस बड़ा मुश्किल । क्योंकि काँच को तो 1600 डिग्री टेंपरेचर में तपाने के बाद वापस बना लिया जाता है लेकिन व्यक्ति के संबंध टूटते हैं तो उसे वापस गला पाना मुश्किल है। क्योंकि काँच गल जाता है, व्यक्ति का अहम गल नहीं पाता। जब तक हम नहीं गलेंगे तब तक दोबारा हमारे संबंध स्थापित नहीं होंगे। वह बहुत कठिन है, इसलिए अपने जीवन में एक संकल्प लो कि मैं अपने जीवन में जहाँ तक होगा अपने संबंधों को बनाए रखने की पुरजोर कोशिश करूँगा, उसे कंही से खंडित नहीं होने दूंगा, उसे कंही से प्रभावित नहीं होने दूंगा। आप चाहते हैं अपने संबंधों को अटूट बनाए रखे, चाहते है क्या?
मैं जब बचपन में पतंग उड़ाता था तो पतंग उड़ाते समय धागे में मंजा लगाते थे। मांजा क्यों लगते थे क्योंकि जितना अच्छा मांजा होगा हमारा धागा उतना अच्छा, अटूट होगा। फिर पतंग उड़ाए तो कई-कई बार मैंने ऐसे भी पतंग उड़ाई कि एक-एक दिन में 25-25 पेच लड़ाई और मेरी पतंग आखरी तक उड़ती रही, औरों की पेच कटती रही। मैंने भी पतंग उड़ाई है, लोग पतंग उड़ाते हैं। पतंग उड़ाने में धागे में मांजा लगाते हैं, मांजा सुतने से धागा मजबूत होता है। मैं तुम्हें तुम्हारे संबंधों के धागे के लिए एक मांजा बताता हूँ जो तुम्हे चाहिए कि उस मांजे को अपने संबंधों की डोर में लगा लोगे तो तुम्हारे संबंध अटूट बन जाएंगे।
चार बातों का मांजा लगाना है। सबसे पहली बात जिनके साथ तुम्हारा संबंध है तुम्हारे मन में उनके प्रति समादर का भाव हो। समादर! एक- दूसरे को आदर दो, समादर दो, एक-दूसरे को सम्मान दो। एक-दूसरे का सत्कार करोगे तो तुम्हारे संबंधों में अलग माधुर्य आएगा। एक-दूसरे की उपेक्षा करोगे, एक दूसरे का तिरस्कार करोगे तो सारे संबंध गड़बड़ा जाएंगे। तुम क्या करते हो? अपने जिससे तुम्हारा संबंध है। उनसे कैसे बातचीत होती है? उनके प्रति तुम्हारे मन में कैसी भावना होती है? बड़ा हो या छोटा, ऊँचा हो या नीचा, संपन्न हो या गरीब, व्यक्ति का सम्मान सुरक्षित होना, तभी संबंध हमारे मजबूत बनते हैं। उसका आदर करो, तिरस्कार मत करो, उपेक्षा मत करो, अवमानना मत करो। यदि ऐसा करोगे तो संबंध बिगड़ जाएंगे और सत्कार करोगे, सम्मान करोगे, संबंध मजबूत होंगे। समादर करने की प्रवृत्ति अपनाइए, छोटे-बड़े सबका समादार हो। आपकी वाणी में, आपकी प्रत्येक प्रवृति में एक दूसरे का आदर होना चाहिए। बोलते समय एक प्रयास कीजिए, आप आदर पूर्ण शब्दों का प्रयोग कीजिए, अनुरोध की भाषा का इस्तेमाल कीजिए। आदेश की भाषा से अपने आपको दूर रखें। अनुरोध हो, रिक्वेस्ट हो, ऑर्डर की भाषा ना हो। अगर आपसे कोई बोले- भाई साहब! यह काम कर लीजिए ना, आपको अच्छा लगेगा कि नहीं। महाराज! करने का मन नहीं भी होगा तो भी कर लेंगे। यह कह दिया कि ये काम करो! तो आप कहेंगे अपना रास्ता नापो, नौकर समझ रखा है क्या बाबूजी का? क्या हुआ? हम कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं? अगर हमें अपने संबंधों में स्थिरता लानी है तो हमें चाहिए कि हम-अपने एक-दूसरे के आदर का ध्यान रखें। मेरे संपर्क में कई लोग है, जो अपने घर में सब एक दूसरे का आदर रखते हैं। यहाँ तक कि नौकर-चाकर को भी जी लगाकर बोलते हैं। संबंध अच्छे होंगे कि नहीं, होंगे ही।
पहली बात-समादर, दूसरी बात-सहयोग, एक दूसरे का सहयोग। सहयोग देने की प्रवृत्ति जिनके मध्य होगी, उनके संबंध कभी बिगड़ नहीं सकते। तुम लोग देखो, तुम लोग एक दूसरे का सहयोग करते हो कि नहीं। क्या स्थिति है तुम्हारी? किसी के सहयोग का मौका आता है तो तुम कर पाते हो कि नहीं। कर पाते है तो भाई-भाई का सहयोग करता है या नहीं करता, पिता-पुत्र में सहयोग से संबंध है या नहीं। आप देखिए देवरानी-जेठानी में सहयोग के संबंध है या नहीं। आप अगर एक दूसरे का आदर करते हो और एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना हो तो संबंध कभी बिगड़ नहीं सकते। कैसा सहयोग है आपका? आप अपने संबंधों को बनाना चाहते हैं तो मैं एक सवाल करता हूँ। मान लो! तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ शादी हो और अगर वो तुमसे बर्तन माँगने आया तो गिनकर दोगे या बिना गिने? गिनोगे कि नहीं, बोलो? बगैर गिने नहीं दे सकते तुम क्या? क्या है मानसिकता? छोटे से ठीकरे हैं! पर उनके प्रति भी तुम्हारा इतना गाढ़ लगाव, आज व्यक्ति वस्तु से ज्यादा जुड़ता है। इससे से कम हमारा प्रेम भी पूरी तरह वस्तुनिष्ठ होता जा रहा है। जब हमारा प्रेम वस्तुनिष्ठ होगा तो हमारे संबंधों में स्थिरता आखिर आएगी, कैसे? मधुरता आएगी कैसे? सहयोग देने की भावना होनी चाहिए। एक दूसरे के लिए जब मौका आए दिल से सहयोग किया जाए। किसी भी प्रकार का कोई भी हो हमें सहयोग करना है। मौका आया है तो बिना बुलाए जाकर सहयोग करिए। देखिए! सहयोग कैसा होता है और सहयोग का परिणाम कैसा होता है? मैं दो घटना आप सबको बताना चाहता हूँ।
एक दूसरे को सहयोग करने का क्या परिणाम होता है और कैसा सहयोग किया जा सकता है? दो भाई अलग-अलग रहते थे, अलग-अलग शहर में रहते थे। दोनों का अपना-अपना अलग-अलग कारोबार था। सब अलग-अलग कोई लेना-देना नहीं। लेकिन बड़े भाई को मालूम पड़ता है कि मेरा छोटा भाई इन दिनों बहुत परेशान है। वह कुछ कर्जे मैं आ गया। उसने व्यापार में कुछ गलत निर्णय लिए तो उसे लंबा नुकसान हो गया। इसको लेकर वह बहुत विचलित है। बड़े भाई तक यह सूचना किसी के माध्यम से पहुँची। बड़े भाई ने अपनी धर्म पत्नी से कहा- देखो छोटे भाई ने कुछ गलतियाँ कर ली है, कुछ लम्बा नुकसान है और कुछ परेशान भी है। अब हमे क्या करना है? उसकी पत्नी ने कहा- भगवान की कृपा से आप समर्थ हैं, किसी चीज की कमी नहीं है। अरे! भैया के ऊपर कोई विपत्ति आई है तो उसे दूर करना आपका कर्तव्य है। आप समर्थ हो, आप जाइए और उनका जो कुछ भी हो सकता है, करिए। पत्नी प्रेरणा दे रही है कि अपने देवर के उपर आई विपत्ति के निवारण के लिए, सहयोग करने के लिए, बहुत कम होता है ऐसा। उल्टी प्रेरणा देने वाले ज्यादा मिलते है। अपने को क्या करना है, वह जाने, वह कर रहे हैं, अपने से जो करेगा सो भरेगा, अपने को तो कोई मतलब नहीं रखना और सावधान हो जाओ, पाँच पैसा भी मत देना। जो दिया उसको निकालने की व्यवस्था करो। ऐसे सीख देने वाले मिलते है। लेकिन ऐसे आदर्श देने वाले विरले ही होते हैं। पत्नी ने कहा- नहीं, हमको करना ही है। तो पति ने कहा-चलो! उससे, भाई से मिलने जाते हैं। बिना सूचना दिए पति-पत्नि दोनों छोटे भाई के घर गए। अचानक भैया और भाभी को घर आया देखकर वह भौचक्के रह गया। यह क्या इस तरह आना। विश्राम आदि से निवृत होने के बाद, नाश्ता-पानी करने के उपरांत बड़े भाई ने छोटे भाई को अपने कमरे में बुलाया, अलग कमरे में बुलाया। दोनो बैठे, उससे पूछा पहले तो छोटे भाई ने टालना चाहा। आप लोग छिपाने में बहुत होशियार है। टालने और टरकाने में तो माहिर है,तो छोटे भाई ने टालना चाहा। लेकिन बड़ा भाई ने कहा- टोल-मटोल करने से कोई फायदा नहीं है। देख! मैं यहाँ आया हूँ इसलिए नहीं कि तेरी बात सुनकर मैं वापस चले जाऊं। मैं केवल इसलिए आया हूँ कि तेरी समस्या का मुझे हल निकालना है। देख आज तेरे ऊपर जो समस्या है, तेरी समस्या है, वह केवल तेरी समस्या नहीं है। हमारे पूरे खानदान की समस्या है। इसका निवारण करना है, तू सच-सच बता। भाई के इस व्यवहार से कि तुझे बताना ही पड़ेगा। भाई के प्रति उसके मन में श्रृद्धा भी थी, आदर भी था, वह कुछ छुपा नहीं पाया, अपनी सारी हकीकत उसने बता दी। बहुत लंबा नुकसान, करोड़ों का नुकसान था। बड़े भाई ने छोटे को समझाया कि देख तूने इतनी बड़ी गलती कर दी। काश! कि तूने मुझे पहले बताया होता तो इतना नुकसान नहीं होने देता। पर जो हुआ सो हुआ भूल जा, इसका कोई अफ़सोस मत कर। मैं बैठा हूँ तो मैं इसका सोल्युशन भी निकाल लूँगा और अब तू नई गिनती शुरू करना। बड़े भाई ने लेनदारों को बुलाया, जिसकी जितनी लेनदारी थी सबको सामने रखा और सबसे कहा देखो आज के बाद यह सारी लेनदारी मेरी है। आप मुझसे मिलोगे इससे आपको कुछ नहीं बोलना, कोई तकादा नहीं करना और आपका पाई-पाई में समय पर चुका दूंगा। उसने महीने दो महीने का समय माँगा। तुम्हारा पूरा पैसा हम चुका देंगे। छोटे भाई को आपको कुछ बोलने की जरूरत नहीं है। सबने कहा- ठीक! इससे अच्छी बात क्या। उस व्यक्ति की गुडविल थी, रेपोटेशन थी। सभी ख़ुशी-खुशी चले गए, जाने के बाद उसने भाई से बोला- भाई! अब गलती कर दी, आगे ध्यान रखना। और अब तुम आज से जीरो से अपनी नई गिनती करना शुरू करो। हमने जो खोया फिर कमा लेंगे। लेकिन ध्यान रखना खोया हुआ धन कमाया जा सकता है खोया हुआ प्रेम वापस नहीं आता। इस बात को ध्यान रखना और भाई को गले लगा लिया। दोनों पति-पत्नि बड़े भाई के चरणों में गिर गए।
आप सोच सकते हैं कि इस स्तर का भी कोई सहयोग कर सकता है। यह कोई किस्सा नहीं, मैं तो किस्सा बहुत कम सुनाता हूँ, घटनाएँ ज्यादा सुनाता हूँ। यह घटना मैंने पहले भी सुनाई है। जिसके बारे में बता रहा हूँ, वह इस कार्यक्रम को भी सुन भी रहे हो। यह है संयोग, अगर तुम किसी के साथ इस प्रकार का सहयोग करोगे, तो बताओ तुम्हारे संबंध कभी खंडित होंगे। सहयोग का मांजा लगाओ, जब मौका आए जी भर कर सहयोग करो। जैसा मौका है जी भरकर सहयोग करो। तब जीवन में रस आता है।
समादर, सहयोग और तीसरे नंबर पर- आप जिन सबके साथ अपना संबंध रखना चाहते हैं तो उनके प्रति प्रेम बढ़ाना चाहते हो तो अवसर पड़ने पर प्रशंसा करें, प्रेरणा दे और प्रोत्साहन दे। अच्छी प्रेरणा और समय पर प्रशंसा, अगर प्रेरणा, प्रशंसा और प्रोत्साहन की प्रवृत्ति आपके साथ जुड़ गई तो अपने आप आपके संबंधों में माधुर्य आएगा। कुछ भी हो आप प्रेरणा दे, अच्छी प्रेरणा दे। एक दूसरे के लिए सकारात्मक रूप से आगे बढ़ाने की कोशिश करें, हतोत्साहित ना करें। कोई अच्छा काम करें तो उसकी जी भर के प्रशंसा करें। विडंबना यह है कि लोगों को जिनसे प्रशंसा की अपेक्षा होती है, वह प्रशंसा के एक शब्द भी नहीं बोलते। जिसकी भी वह प्रशंसा करे तो लोगों को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं। वह प्रशंसा को तरसता रह जाता है। संबंध आखिर मधुर बनेंगे कैसे? अपने संबंधों में मधुरता लाना चाहते हो तो आप एक दूसरे की प्रशंसा करने की आदत डालिए। आपके अंदर ऐसी आदत होगी तो आपके हृदय का सौहार्द अपने आप बढ़ेगा। आप सब का प्रेम बढ़ेगा। सौहार्द बढ़ाने के लिए आप को चाहिए कि सामने वाले की प्रशंसा करें, ह्रदय में उदारता लाइए। गलतियों को नजरअंदाज करने की शक्ति विकसित करें। छोटी-मोटी गलतियों को नजरअंदाज करें, अनदेखा करने की कोशिश करें, आपके संबंध मधुर होंगे।
चौथी बात- टोका-टाकी और टीका टिप्पणी से बचे। बात-बात में टोका-टाकी, टीका टिप्पणी, मीन-मेंख। ऐसा करने से व्यक्ति कभी अपने संबंधों को अच्छा नहीं बना सकता। कई लोगों की ऐसी आदत होती है कि छोटी-छोटी बातों में सोचते है, ऐसा क्यों नहीं किया, ऐसा क्यों नहीं किया, ऐसा क्यों नहीं किया? ये छोटी-छोटी बातों में टोका-टाकी अच्छी बात नहीं है। खासकर बड़े लोगों के साथ तो एसा होना ही नहीं चाहिए। जरूरत से ज्यादा टीका-टिप्पणी जो करेंगे वह कहीं के नहीं रहेंगे। अगर अपने संबंध मधुर बनाना चाहते हैं तो इन बातों को ध्यान में रखें। अपने संबंधों के धागे को इतना मजबूत बनाएं, इतना मजबूत बनाए, इतना मजबूत बनाएं कि इस धरती पर आकाश में उड़ने वाली कोई भी पतंग आपके संबंधों को काट न सके। आपकी डोर अटूट रहे और आनंद की पतंग आप हर पल उड़ा सके, ऐसा प्रयास करे।
इस तरह संपर्क टूटने की बात, बंधन टूटने की बात, अब विश्वास टूटने की बात। किसी के साथ विश्वास जमाना शायद नहीं होता और जमा हुआ विश्वास एक बार टूट जाए तो वापस विश्वास जमाना बड़ा मुश्किल होता है। मैं आप सबसे कहता हूँ सबसे पहले तो हर किसी पर विश्वास मत करो, जिस किसी पर विश्वास मत करो और अगर किसी पर विश्वास है तो छोटी-मोटी बातों से अपने विश्वास को टूटने मत दो। कुछ लोग कान के कच्चे होते हैं। जिनके प्रति विश्वास है एक छोटा सा कोई भी वाक्या हुआ कि विश्वास टूट गया। ये कच्चे विश्वासी है, दृढ विश्वासी बनो, पक्के विश्वासी बनो। एक बार अगर किसी पर विश्वास करो तो उसे टूटने मत दो, मजबूती के साथ रखो और जिन बातों से विश्वास टूटता है उनसे अपने आप को बचाओ। दोनों जगह अपनी दृष्टि रखो न खुद का विश्वास टूटने दो ना किसी के विश्वास को तोड़ने में कारण बनो। अपना जीवन इतना फेयर रखो कि किसी का विश्वास तुम्हारे प्रति टूटे नहीं और अपने मन को इतना मजबूत रखो कि किसी के प्रति तुम्हारा विश्वास टूटे नहीं। मन में जब शंका का कीड़ा घुस जाता है तो विश्वास टूट जाता है। शंका को अपने अंदर घुसने मत दो। प्रवेश ही मत करने दो, यह बहुत खतरनाक वायरस है। कितने भी अच्छे संबंध हो, कितना भी अपना आत्मीय हो, कितना भी स्नेही हो उसके प्रति मन में शंका और कुशंका का कीड़ा एक बार घुसता है तो विश्वास खंडित हो जाता है। इस वायरस से बचाओ।
आप लोग अपने जितने भी गैजेट्स होते हैं, एप्लीकेशंस होते हैं, उनमें तो एंटीवायरस आप लोग रख लेते हैं। सिक्योरिटी के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएँ आप कर लेते हैं। भैया! तुम्हारे हाथ के गजट को वायरस से बचाने के लिए तुम एंटी वायरस की व्यवस्था करते हो, अपने दिमाग में वायरस ना घुसे, इसके लिए कोई एंटीवायरस क्यों नहीं रखते? एक ही एंटी वायरस कि शंका को हमारे मन में प्रवेश ही नहीं देना है। एंटी शंका दिमाग में रखो। यह चीज साथ में रखो किसी के प्रति शंका नहीं करूंगा, जिज्ञासा रख सकता हूँ। शंका और जिज्ञासा में बहुत अंतर है। हम किसी चीज के बारे में जानकारी लेना चाहे तो वो जिज्ञासा है, पर किसी के वजूद पर ही हम संदेह कर ले, यह मन की शंका है। किसी से महाराज! फिर कुछ पूछा-ताछी ही नहीं करे? पूछा-ताछी करो, मैं मना नहीं कर रहा हूँ, वह भी हिसाब से करो। देखो मैं आप से कहता हूँ सामान्य पूछताछ और शंका में क्या अंतर है। आप भोजन करने के लिए बैठे हैं, पत्नी ने आप को भोजन परोसा है, आप पत्नी से पूछते हो कि दाल में नमक है कि नहीं। यह सामान्य बात है, यह प्रेम की भाषा है। आप पूछ सकते हो, दाल में नमक है या नहीं, यह पूछना बुरा नहीं है। आप अगर ये पूछते हो कि दाल में जहर तो नहीं है। क्या हो गया? पत्नी से कहोगे कि दाल में नमक है या नहीं? पत्नी कहेगी चखकर देख लो कोई बुराई नहीं है। लेकिन अगर पत्नी से यह पूछते हो दाल में जहर तो नहीं तो क्या होगा? क्या होगा समझ गए? आप क्या करते हो? विश्वास क्यों टूटता है? विश्वास केवल इसी वजह से टूटता है और जब हम अपनों से ज्यादा गैरों से विश्वास करना शुरू कर देते हैं तो अपनों का विश्वास खंडित होने लगता है। इसलिए अपनों पर भरोसा करो, अपनों पर विश्वास करो, गैरों को गले लगाने की आदत बंद करो, विश्वास बरकरार रहेगा और जीवन आगे बढ़ेगा।
सबसे महत्वपूर्ण बात मन का टूट जाना। एक बार व्यक्ति का मन टूट जाता है तो व्यक्ति की स्थिति बड़ी भयंकर हो जाती है। देखिए व्यक्ति का टूटा हुआ संपर्क दिखता है, टूटी हुई वस्तु दिखती है टूटे हुए संबंध दिखते हैं, टूटा हुआ विश्वास भी दिखता है लेकिन टुटा हुआ मन दिखता नहीं है। किसी व्यक्ति से बोला यह बड़ा टूटा-टूटा सा लग रहा है। इसका मुँह तो देखो, कोई-कोई व्यक्ति तो मेरा तो मन-सा टूट गया है। अब क्या देखो? ऊपर से नीचे तो साबुत है, फिर इसका मन कहाँ से टूट गया? टुटा कहाँ? बहुत भयानक होता है यह टूटना। एक बार व्यक्ति का मन टूट जाए तो उसे जोड़ना मुश्किल और कठिन सा होता है। सब टूट जाए कोई परवाह नहीं अपने मन को कभी टूटने मत दो। मन टूट गया तो तुम फिर कभी खड़े नहीं हों सकते। शरीर में हाथ पाँव टूट जाए तो जुड़ सकते हैं, शरीर का कोई अंग टूट जाए तो तुम फिर से जोड़ सकते हो, लेकिन मन टूट जाए तो उसे वापस जोड़ना, खड़ा करना बहुत मुश्किल होता है। आजकल देखते हैं, लोगों का थोड़ी-थोड़ी बातों में मन टूट जाता है, वह हिम्मत हार करके बैठ जाते हैं, रोने जैसी शक्ल मिलती है। एकदम चेहरा ऐसा लगता है जैसे कि गुमलाया-सा-फूल, कुछ समझ में नहीं आता कि वह क्या है और क्या नहीं। मैं आपसे पूछता हूँ मन कब टूटता है कभी ऐसी स्थिति हुई कि आपका मन टूटा हो? हाँ महाराज! मन टूटता है, कब टूटता है? अति हो जाती है तो मन टूटता है। दरअसल मन कब टूटता है जब हमारे मन के विरुद्ध कुछ होता है, घटित होता है, जो हम चाहते है वह नहीं मिलता, इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती तो मन टूट जाता है। हिम्मत मनुष्य हार जाता है । अचानक कोई अघट घट जाता है तो हम उसका सामना नहीं कर पाते और मन टूट जाता है।
देखो! विपत्ति में मन टूटता है ,बीमारी में मन टूटता है, कोई विश्वासघात करता है तो मन टूटता है, वियोग होता है तो मन टूटता है। विपत्ति में, बीमारी में, विश्वासघात में, वियोग में मन टूटता है। ठीक है! किस पर विपत्ति नहीं आई मन को तोड़ो नहीं। विपत्ति का कितना भी बड़ा आघात हो, अपने मन को मजबूत बनाओ। मन को टूटने से बचाओ मन को टूटने से कैसे बचाए? देखो! विपत्ति से आप अपने आपको, बीमारी से आप अपने आपको बचा नहीं सकते, वियोग को आप अपने जीवन में रोक नहीं सकते और कोई मुझसे विश्वासघात ना करें इससे आप अपने आपको बचा नहीं सकते। यह तो संयोग है होता है, यह तो संसार की रीत है होता है, दुनिया की यही रीत है। जिससे विश्वास किया जाता है वो ही लोग विश्वासघात करते हैं। आप अपने आपको इनसे नहीं बचा सकते लेकिन इन परिस्थितियों से गुजरने के बाद भी अपने मन को टूटने से बचा सकते हैं। मन को टूटने से कैसे बचा सकते है, कैसे बचाया जाए अपने मन को टूटने से? मैं मन टूटने की बात आपसे नहीं करता। मन टूटता है तो क्या होता है? लेकिन मैं आपको यह बात बताता हूँ, कुछ टिप्स दे रहा हूँ और उस टिप्स के आधार पर आप पाएंगे कि इन सारी स्थितियों से गुजरने वाला व्यक्ति भी किस तरह से अपने मन को टूटने से बचाता? कैसे टूटने से बचा?
सबसे पहली बात आत्मविश्वासी बने, क्या बोला? आत्मविश्वासी- जीवन में कुछ भी हो जाए सब ठीक हो जाएगा, घबराने की बात नहीं है, कोई बात नहीं, ठीक है, जो होगा, सब ठीक होगा। परिस्थितियाँ आई है हम उसका सामना करेंगे और उस से पार भी जाएंगे। यह आत्मविश्वास तुम्हारे मन में होना चाहिए। जिन लोगो का आत्मविश्वास प्रगाढ़ होता है वह जीवन में आई हुई बड़ी से बड़ी विषमता को भी क्षमता से पार कर लेते हैं, उनसे जूझते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। ध्यान रखना! मैं ऐसे अनेक लोगो को जनता हूँ जिनके जीवन में बड़ी-बड़ी विपत्ति आई लेकिन उन्होंने अपनी बड़ी से बड़ी विपत्ति को भी बहुत अच्छे से अपने आत्मविश्वास के हौसले के बल पर पार किया है।
मेरे संपर्क में एक व्यक्ति है जिसे 70 करोड़ का नुकसान हुआ। 70 करोड़ का नुकसान एक झटके में हुआ। आप सोच सकते हैं सामान्य व्यक्ति की स्थिति क्या होगी। औरों की दृष्टि में तो टूट गया लेकिन गजब का वह व्यक्ति था। मुझे मालूम पड़ा उसके मित्र से कि उसके इतना बड़ा नुकसान हुआ। उसके कुछ दिनों बाद वह मेरे पास आया। मैंने देखा तो एकदम सामान्य सा दिखा, परेशानी का चेहरे पर कोई शिकन नहीं जैसे कि कुछ हुआ नहीं। मैं नहीं रह पाया, बातचीत में पूछा- क्यों भाई! सब ठीक है। महाराज! आप के आशीर्वाद से सब ठीक है और जो कुछ है वह भी ठीक हो जाएगा। आपका आशीर्वाद चाहिए। हमने कहा- सुना है बड़ा नुकसान है। महाराज! यह तो चलता ही रहता है। धंधा है होगा। हमने आपसे एक ही बात सीखी है कि व्यापार किया है तो नफा-नुकसान तो लगा ही रहता है। बड़ा नुकसान हो गया सो हो गया। हम खोए हुए नुकसान की तरफ नहीं देखते। अब वापस कैसे कमाए, हमारी दृष्टि उसकी तरफ है। आप तो आशीर्वाद दीजिए हमने नुकसान किया है तो हम कमा भी सकते है। हमने कमाया हमारा नुकसान हुआ। आज हमने नुकसान किया तो हम कल फिर से कमा सकते हैं। हमें इतना विश्वास है आज भी हमारी गुडविल है, रेपोटेशन है, हम फिर से खड़े हो सकते हैं। उसके साथ उसकी धर्मपत्नी थी और उसने धर्मपत्नी की तरफ इशारा करते हुए कहा- महाराज! मेरे लिए सबसे बड़ा संबल इसका है। इस नुकसान में सबसे बड़ा सहारा अगर किसी ने दिया तो इसी ने दिया। इसने पहले ही दिन कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है। व्यापार में तो ऐसा होता रहता है। संयोग-वियोग हमारे हाथ में नहीं है, लाभ-हानि हमारे हाथ में नहीं है। जो नुकसान होना था सो हो गया। अब नुकसान का रोना रोने की जगह इसकी क्षति-पूर्ति कैसे की जाए वह देखें। और आप में इतनी क्षमता है कि आपने एक गलत डिसीजन लिया और ऐसा हो गया। लेकिन आप अगर इसे नसीहत मानोगे और नए तरीके से काम करोगे तो नुकसान की पूर्ति होने में देंर नहीं लगेगी। आदमी ने ठीक तरीके से काम किया, अपना सिस्टम ठीक किया। सही पॉलिसी अपनाएं। यह घटना 2008 की है और आज 2018 है। 10 साल में पहले से कई गुना अच्छी स्थिति में आ गया। ना केवल नुकसान की भरपाई की अपितु आगे भी बढ़ा। एक व्यक्ति जिसने अपने हौसले को बनाए रखा, आत्मविश्वास से लबरेज रहा तो वापस खड़ा हो गया। अगर यह हौसला खो दिया होता तो क्या होता? अपने बचपन को याद कीजिए। साइकिल चलाना शुरु किया तो गिरा कि नहीं गिरा। हाथ पाँव छिले कि नहीं छिले। क्या किया? साइकिल चलाने में हाथ पाँव छिलते हैं हम तो साइकिल नहीं चलाए ऐसा सोचा क्या? जो ऐसा सोचते जिंदगी में साइकिल नहीं चला सकते। मेरे साथ का एक लड़का था आज तक कुछ नहीं चला सकता। हम गिरे, हाथ-पैर टूटे तो भी भैया, टूटे, चलो सीखना है। ये तो ऐसी टूटेंगे, एक बार टूटेगा, दो बार टूटेगा, हम सीख लेंगे तो सीख लेंगे। यह विश्वास होता है। ऐसे विश्वास से भरा व्यक्ति साइकिल तो बहुत साधारण सी बात है, हवाई जहाज भी चला सकता है, उसके अंदर ताकत होनी चाहिए। अपने मन को टूटने मत दीजीए, मन को मजबूत रखिए। आत्म विश्वास आपका प्रगाढ़ होगा मन कभी नहीं टूटेगा।
नंबर दो अपने मन को टूटने से बचाना चाहते है तो हर जगह कर्म सिद्धांत पर भरोसा रखिए। कैसी भी विपत्ति हो, कैसी भी बीमारी हो, कैसा भी भी वियोग हो या कोई विश्वासघात करें, कर्म सिद्धांत पर विश्वास रखो और यह सोचो यह तो केवल एक ही निमित्त है,घटना है, घटनाएं आई है, आती है और जाती है, मुझे उससे प्रभावित नहीं होना। आज अगर ऐसा होता है तो मेरे अशुभ कर्म का उदय है कल शुभ कर्म का उदय आएगा यह विपत्ति भी टल जाएगी टिकाऊ नहीं है। बड़े-बड़े महापुरुषों के जीवन में विपत्ति आई वह विचलित नहीं हुए तो मैं कैसे विचलित होउ। ध्यान रखना विपत्ति एक हथौडे के प्रहार की तरह है जो काँच पर पड़ता है तो चूर-चूर हो जाता है और सोने पर पड़ता है तो सोना चमक उठता है। अपना जीवन सोने जैसा बनाओ जो विपत्ति के प्रहार से, दम के काँच जैसा मत बनाओ जो चकनाचूर हो जाए। टूटना नहीं है अपने आप को मजबूत बनाना है। एकदम जज्बा अपने भीतर जागना चाहिए। ठीक है, अपने कर्म का उदय आया है, बदल जायेगा। राजा रंक होते है और रंक के राजा होते यह तो जीवन का एक क्रम है। गिरकर चढ़ना और चढ़कर गिरना ये हमारे जीवन का एक क्रम है, इसमें घबराने की क्या बात है। कर्म का उदय है, आया है तो चला भी जाएगा। अपने जीवन को हम वापस संभाल लेंगे, अपने जीवन को आगे बढ़ा लेंगे, यह विश्वास तुम्हारे मन में होगा तो तुम कभी भी टूट नहीं पाओगे। वापस कर्म का चाहे कितना भी सघन प्रहार भी क्यों ना हो बाल बांका नहीं होगा।
तीसरे नंबर पर हमेशा सकारात्मक रहे। हर बात को सकारात्मक दृष्टि से देखें। जो होता है अच्छे के लिए होता है। बुराई में अच्छाई देखें, प्रतिकूल में भी अनुकूल की व्याख्या करें, दु:ख में सुख खोजने की कोशिश करें, विपत्ति में संपत्ति देखने का प्रयास करें, मन कभी टूट नहीं सकता, मन अटूट रहेगा। घबराहट नहीं आएगी, कभी आपके मन में व्याकुलता नहीं आएगी। आपकी हिम्मत, आपका हौसला बुलंद रहेगा और आप सब कुछ करने में समर्थ होओगे। ठीक है, मैं अपने जीवन में कुछ भी कर सकता हूँ, मैं कहीं से कमजोर नहीं हूँ, मैं कहीं से पीछे नहीं हूँ, व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।
मेरे संपर्क में एक ऐसा युवक है, जिसके माता पिता उससे किसी बात से नाराज हो गए। छोटे भाई के बहकावे में आकर माँ-बाप नाराज हो गए। एक दिन गुस्से में माता-पिता ने उससे और उसकी धर्मपत्नी से घर से निकल जाने का कह दिया। देखिए! सकारात्मकता मनुष्य को कहाँ तक पहुँचाती है। जैसे ही माँ-बाप ने निकलने के लिए कहा, दोनों ने ब्रीफकेस में अपने दो-दो जोड़ी कपड़े लिए, कोई आरग्युमेंट नहीं, कुछ नहीं, माता-पिता के चरण स्पर्श किए। कहा पिताजी! हम आपकी आज्ञा का पालन करेंगे, माँ से कहा हमें आशीर्वाद दो हम आपकी आज्ञा का पालन कर सके, आपके निर्देशानुसार हम इस घर से जा रहे हैं। लेकिन बस इतना कहकर जा रहे हैं कभी हमारी जरूरत हो तो हमें याद कर लेना। बीएस इतना कहकर चले गए। चार दिन अपने मित्र के यहाँ रहा। जिस दिन अपने यहाँ से निकला उस दिन उसके पास केवल 500 रुपए थे। मित्रों ने बोला, कई लोगों ने उस को सलाह दी कि केस कर दो, यह कर दो, वह कर दो। वह बोला यह सब बातें मैं कभी नहीं करूंगा। मेरे माँ-बाप, माँ-बाप हैं, उन्होने मुझे जन्म दिया, जीवन दिया, संस्कार दिए, इसलिए नहीं कि मैं उन पर मुकदमा करुँ। उन्होने मुझे पढ़ा-लिखा करके इंजीनियर बना दिया यह क्या कम है। मैं उनके इस उपकार को जीवन भर नहीं भुला सकता। उस आदमी में हुनर पूरा था, आत्मविश्वास भी था, पूरी तरह सकारात्मक था। उसके मित्र से उससे बहुत प्रभावित थे, उस घड़ी में उसके मित्र आगे आए। चार-पाँच दिन में उसको एक फ्लैट किराए पर मिल गया। मित्रों ने मिलकर एक कंपनी बनाई। कंपनी बनाई रियल स्टेट की, एक घटना 2002 की है। उसमें उसको भागीदार बना दिया। इसकी पूंजी नहीं थी लेकिन इसके पास हुनर था, इसका गुडविल था और उसने भागीदार बनाया उस कंपनी में। चार मित्रों की एक कंपनी जिसमें 25 परसेंट का शेयर होल्डर बनाया। वर्किंग पार्टनर बन करके उसने काम संभाला और आज एक बहुत बड़ा स्टेट हो गया। 2004 से 2007 में जो रियल स्टेट का बूम था उस समय उस आदमी ने करोड़ों कमा लिया, यह सकारात्मकता की देन है। यदि वह टूट गया होता तो रोता रहता कुछ नहीं कर पाता लेकिन जहाँ सकारात्मकता होती है वहाँ कहीं भी टूटन कभी हो नहीं सकती। अपने आप को टूटने से बचाना चाहते हो तो मैंने कहा आप आत्मविश्वासी बनिए, कर्म सिद्धांत पर भरोसा कीजिए और सकारात्मक सोचिए।
नंबर चार- आशावादी बनिए। अपने मन में हताशा को कभी हावी मत होने दीजिए। यह सोचिए आज नहीं कल होंगे हम सफल, कोई दिक्कत नहीं। कैसी भी विपत्ति हो, कैसी भी समस्या हो, हमें हमेशा एक बात ध्यान रखना- रात के बाद प्रभात होगा, रात लंबी हो सकती है पर शास्वत नहीं हो सकती। कितनी भी गहन रात हो, कितनी भी काली रात हो, रत के बाद तो प्रभात ही होना है। तुम्हारे जीवन में कितने भी बुरे दिन हो हार मत मानना कि अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा। लोग हार जाते हैं जीवन में भयानक भूल कर बैठते हैं, अब क्या होगा, अब क्या होगा, जो होना होगा सो होगा और क्या होगा। एक दिन तो भूरे के भी दिन बदलते हैं। गिर करके ही मनुष्य चलना सिखता है चलिए जो होगा सो होगा हम उसका सामना करेंगे। मनुष्य के मन में हताशा के बादल कभी नहीं चने चाहिए, आशावादी बना रहना चाहिए। जब मनुष्य हताश होता है मन टूट जाता है और जो आशावादी होता है उसके हृदय में उत्साह का हमेशा हर पल संचार होता है। आप उत्साहित रहिए अपने आप को कमजोर मत होने दीजिए। देही जीवन का कितना मजा आएगा और आप फिर कभी टूट नहीं पाओगे, आप अटूट बन जाओगे आपके संबंध टूट होंगे, आपका जीवन अटूट बनेगा और जीवन का एक अलग ही रस होगा। थोड़ी-थोड़ी बातों से टूट जाने के कारण लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं, एंजाइटी के शिकार हो जाते हैं। फिर कई-कई बार तो लोग आत्महत्या जैसा कुकृत्य करने पर भी उतारू हो जाते हैं। इनसे अपने आप को बचाइए, मजबूत बचिए। हमें टूटना नहीं है इस बात को ध्यान रखें तो टूटना, टूटा हुआ महसूस करना और टूट पड़ना। कई कई लोग दूसरों पर टूट पड़ते है। टूट पड़ने की आदत अच्छी नहीं है।
टूटना है तो अच्छे काम के लिए टूट पड़ो बुरे काम के लिए मत टूटो। किसी के पीछे मत टूटो, अच्छाई के लिए टूट पड़ो। जितनी बातें मैंने आपसे बताएं अगर आप उसे अपना लो तो टूटने की बात खत्म, जिंदगी टनाटन, हरपल टनाटन रहिए। हरपल टनाटन रहने का यह फार्मूला है टूटने का रास्ता तुमने आज तक अख्तियार किया है अब तुम टनाटन बनने का मार्ग भी अंगीकार कर लो जिंदगी टनाटन-टनाटन होते रहेगी। हर पल आनंद की घंटी बजती रहेगी और यह बजती रहे रहे, आप सबका जीवन उसी मार्ग पर चलें।