णमोकार मन्त्र एक मूल मन्त्र है। वैसे तो हर मन्त्र महत्वपूर्ण होते हैं पर सब मन्त्रों में णमोकार मन्त्र को मंत्राधिराज कहा जाता है । वैसे तो इस मन्त्र की अनेक विशेषताएं हैं पर इसकी कुछ उल्लेखनीय विशेषताएं हैं जो णमोकार महामन्त्र को अन्य मन्त्रों से अलग स्थान प्रदान करती हैं।
णमोकार मन्त्र की विशेषताएं:
१. यह इकलौता ऐसा मन्त्र है जो परिपूर्ण मन्त्र है क्योंकि इसका एक पद भी अपने आप में मन्त्र है और एक अक्षर भी अपने में मन्त्र है-
‘णमो अरिहंताणं’ से लेकर ‘णमो लोए सव्व साहूणं’ तक देखें तब तो ये मन्त्र है ही, परन्तु केवल पदों यानी णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं आदि को बोलें ये तो भी मन्त्र है और तो और अगर हर एक पद के पहले अक्षर(अ, सि,आ, उ, स) को बोलें ये तो भी मन्त्र है ।
२. इस मन्त्र में कोई भी बीजाक्षर(ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं आदि) नहीं है।
३. यह मन्त्र देवतादृष्टित मन्त्र नहीं है क्योंकि इसमें अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को ही सम्बोधित किया जाता है जो कि कोई देवता नहीं है बल्कि हमारी आत्मा की साधना संपन्न अवस्था है।
४. इस मन्त्र का कोई आनुपूर्वी नहीं है क्योंकि इस मन्त्र को आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, बीच एवं किसी भी क्रम में पढ़ा जा सकता है।
५. ये मन्त्र केवल शांति और पौष्टिक कार्यों में काम आता है क्योंकि इसका कुप्रभाव कभी किसी पर नहीं पड़ता।
णमोकार मन्त्र की महिमा:
णमोकार मन्त्र की महिमा अनुपम है,अचिन्तय है और इसे जानने के लिए बस इसे श्रद्धा से बोलना पड़ता है। कई लोगों ने इसे लिखने के माध्यम से प्रयोग किया और परिणाम स्वरुप लोगों के स्वास्थ्य इत्यादि में जबरदस्त प्रभाव पड़ा। णमोकार मन्त्र के मात्र लेखन से त्रियोग यानी मन, वचन और काय कि शुद्धि होती है। क्योंकि लिखने में त्रियोग एकाग्र होते हैं और यदि एकाग्रता पूर्वक शुद्धि के साथ, एक निश्चित स्थान व एक निश्चित समय में इसे लिखा जाए तो इसका चमत्कारी परिणाम देखा एवं भोगा जा सकता है। इसलिए णमोकार मन्त्र को महामन्त्र कहा जाता है और हमें इसे इसी ढंग से देखना चाहिए।
Namaste, Should we write the mantra everyday ? Is that stronger than saying it ? Does it have to be a certain number of times ?