दिवाली कैसे मनायें?
धनतेरस का महत्व
जैन परम्परा के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने त्रयोदशी तिथि के दिन अंतिम बार दिव्यध्वनि रूपक उपदेश दिया था। फिर वह समवशरण रूपी वैभव लक्ष्मी को त्यागकर योग-निरोध करके ध्यान में लीन हो गए, इसलिए वह ध्यान तेरस या धन्य तेरस है। जैन धर्म के अनुसार भगवान ने सब कुछ छोड़ा इसलिए वह त्याग का दिन है, जोड़ने का दिन नहीं है। समय और विचारधारा परिवर्तन के कारण ध्यान तेरस या धन्य तेरस का नाम धनतेरस हो गया। धनतेरस के दिन कोई वस्तु खरीदने से घर की धन समृद्धि बढ़ेगी ऐसा नहीं है क्योंकि हमारे जीवन के सभी शुभ-अशुभ संयोग हमारे शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार ही होते हैं।
दीपावली मनाने का मूल प्रयोजन
दीपावली सभी धर्मावलम्बीयों का लोक पर्व है। हिन्दू मतानुसार रामचंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास एवं लंका पर विजय करके अयोध्या लौटे, इस प्रसंग में हर्ष और स्वागत के लिए दीप जलाने की परम्परा है। जैन मतानुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष में प्रात: मंदिर में लाडू चढ़ाते हैं और सांय:काल गौतम स्वामी के केवल ज्ञान की उपलब्धि के उपलक्ष में ज्ञान ज्योति के प्रतीक स्वरूप दीप जलाते हैं।
दीपावली- अंधकार से प्रकाश की यात्रा का अनुभव
धन तेरस और दीपावली को लोक पर्व के साथ-साथ हमे इसका आध्यात्मिक अर्थ में भी लेना चाहिए। जब हम अपने अंदर के अंधकार रूपी अज्ञान को दूर करके ज्ञान के प्रकाश को उद्घाटित करेंगे तभी दीपावली होगी। मिट्टि के दीप को जलाने का मतलब बाहर की दीपावली और अपने ह्रदय में ज्ञान के दीप को जलाने का मतलब अंदर की दीपावली है। हमारे यहाँ वीतरागता की पूजा होती है। उसको माध्यम बनाकर अपने हृदय के भीतर ज्ञान का प्रकाश प्रकट हो जो इस बात को बता सके कि मेरे जीवन की सच्चाई क्या है, मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, मुझे क्या पाना है, मेरा क्या ध्येय है और मेरा प्राप्तव्य क्या है? इन बातों को ध्यान रख करके हम अपने ज्ञान दीप को जलाकर दीपावली का सही लाभ ले।
Edited by Ankita Jain, Michigan
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