भय का भूत हवा-हवाई

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भय का भूत हवा-हवाई

हमारे दुख के कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण है- भय। भय, व्याकुलता, डर यह एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं। जब भी हमारे मन में किसी प्रकार का भय व्याप्त होता है तो उस समय हम सहज नहीं रह पाते और यह असहजता हमें अंदर से कमजोर बनाती है, दुखी बनाता है। ऐसा संसार में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं होगा। भय एक नकारात्मक आवेग है जो हर किसी को प्रभावित करता है और जैसे ही मनुष्य के मन में भय जम जाता है जग जाता है उसके अंदर अनेक प्रकार की विकृतियां उत्पन्न होना शुरू हो जाती है। दुर्बलता उस पर हावी होने लगती है। उसका आत्मविश्वास खंडित होने लगता है। नकारात्मकताएं बढ़ जाती है और कई-कई बार लोग इस भय के कारण डिप्रेशन के भी शिकार हो जाते हैं। कईं प्रकार का भय है। बच्चों से लेकर बड़ों तक, गोद में खेलने वाले बच्चों से लेकर उम्र की सीमा को लांघ लेने वाले व्यक्ति तक, ऊपर से कमजोर और सबल दिखने वाले सभी पर भय का असर दिखता है। कई तरह के भय होते हैं एक वास्तविक भई और एक काल्पनिक भय। वास्तविक भई वास्तव में कोई उत्पादक स्थितियां निर्मित हो वह। और दूसरा काल्पनिक भय जहां जैसी कोई स्थिति नहीं लेकिन मन के वहम मात्र से भय उत्पन्न हो।

आप भयानक जंगल में जा रहे हो अचानक शेर आ जाए तो डरे यह तो फिर भी ठीक है क्योंकि वहां उसकी उपस्थिति का आभास है, एहसास है। यह वास्तविक भय है। लेकिन शेर का नाम सुनते ही आपके मन में भय उत्पन्न हो जाए यह काल्पनिक भय है। यह भय की स्थितियां हर मनुष्य के साथ जुड़ी है। हम भय से अपने आप को कैसे बचाएं? बच्चे हैं परीक्षा में फेल होने का भय। बड़े हैं मेरा व्यापार कहीं से बिगड़ ना जाए इस बात का भय। मुझे कोई बीमारी ना हो जाए इस बात का भय है। मेरी प्रतिष्ठा धूमिल ना हो जाए इस बात का भय। कोई आकस्मिक दुर्घटना ना घट जाए इस बात का भय। कहीं मुझ पर बदनामी का दाग ना लग जाए इस बात का भय या मेरे साथ और कोई अनर्थ ना घट जाए इस बात का भय और कहीं मैं मर ना जाऊं इस बात का भय है। कोई मेरा साथ ना छोड़ दे इस बात का भय है। जाने कितने प्रकार का भय है। आज हम आपसे कुछ बात करेंगे भय के उन कारणों की जिनके कारण हमारे अंदर भय उत्पन्न होता है और फिर चर्चा करेंगे उसके निवारण की जिससे हम भय मुक्त, निर्भय, सहज जीवन जी सकते हैं।

भय के चार कारण है। सबसे पहला कारण है– “आत्मविश्वास की कमी जिनका आत्मविश्वास कमजोर होता है वह बड़े ढीले होते हैं, डरपोक किस्म के लोग होते हैं। उनके मन में हर पल संशय बना रहता है मैं करूंगा तो सक्सेस होगा कि नहीं। अपने मन में ही जब तक संशय है तब तक जीवन में जय नहीं होगी, भय लगेगा क्योंकि डाउट मनुष्य को मनुष्य दुविधा में डालता है और दुविधा से डर लगता है। जिनके मन में आत्मविश्वास की कमी होगी वह डरपोक होंगे। मैं आपसे कहूं जो भी डरपोक है उनका कॉन्फिडेंस लेवल बहुत वीक होगा। कई ऐसे लोग होते हैं जिन्हें घर में अकेले रहने में डर लगता है उन्हें कोई चाहिए। कहीं अकेले भेज दो तो बड़ी दिक्कत है। लेकिन कई ऐसे लोग होते हैं जिनसे कोई भी काम करवा लो वह कर लेंगे। किसी प्रकार का डर नहीं और कहीं भी भेज दो वह रह लेंगे किसी प्रकार का भय नहीं। कॉन्फिडेंस है अपने आप पर कि यह काम हम कर सकते हैं। आत्मविश्वास मनुष्य को साहसी बनाता है और आत्मविश्वास के अभाव में मनुष्य का चित्त कमजोर बन जाता है। आप अपने कॉन्फिडेंस लेवल को चेक करें। मेरा आत्मविश्वास कितना है। आप गाड़ी चला रहे हैं और गाड़ी चलाते समय अगर आपके मन में कॉन्फिडेंस है तो आपकी ड्राइविंग सही होगी और गाड़ी तो चला रहे हैंकहीं एक्सीडेंट ना हो जाए‘ ‘कहीं एक्सीडेंट ना हो जाएयह दुविधा मन में होगी तो बताओ गाड़ी चला पाओगे? एक्सीडेंट ना होना हो तो हो जाएगा। परीक्षा के परिणाम से डर उनको लगता है जिनको अपने लिखे पर भरोसा नहीं। मैंने लिख दिया रिजल्ट अभी डिक्लेअर। जिस समय मैंने अपना पेपर किया उस समय मैंने अपना रिजल्ट डिक्लेयर कर दिया क्योंकि आंसर मुझे पता है। एग्जामिनर तो बाद में उसका वैल्यूएशन देगा लेकिन मैंने लिखा है सही लिखा है तो सही उत्तर होगा ही होगा। उसे कॉन्फिडेंस है कोई डर नहीं।

मेरे संपर्क में एक युवक है 12th का लड़का है। टॉपर है। लेकिन रिजल्ट निकला। मैथ्स में मार्क्स कम आए। उसने कॉन्फिडेंटली बोला मेरी कॉपी को सही से चेक नहीं किया। मेरे 17 नंबर कम आए। उसने कॉपी रिचेक करने के लिए कहा। लोगों ने कहा तेरी रैंक अच्छी है क्यों इन चक्करों में पड़ रहा है? बोला सवाल ही नहीं है मैंने जो लिखा उतना नंबर मुझे मिलना चाहिए। मुझे अपनी लेखनी पर भरोसा है तो नंबर मुझे मिलेगा और जब उसकी कॉपी को रिचेक कराया गया वास्तव में 17 नंबर ही उसको एक्स्ट्रा मिले और वह आदमी टॉपर हो गया। अगर हमारे अंदर  कॉन्फिडेंस, विश्वास है तो सफलता होगी। कहा जाता है– “विश्वासं फलदायकं विश्वास ही सफलता का मूल आधार है और अविश्वास शंका, असफलता का जनक है। जो होना है, होगा, वह होगा लेकिन हो जाए यह एक कीड़ा अपने दिमाग में क्यों भरते हो? आत्मविश्वास से लबरेज रहिए, आत्मविश्वास को कमजोर मत होने दीजिए। जहां आत्मविश्वास कमजोर होगा गड़बड़ी होती रहेगी और आजकल ऐसे ही लोग घबराते हैं। अपने ऊपर कॉन्फिडेंस नहीं और कुछ का कुछ कर देते हैं।

एक बच्चा भगवान के सामने प्रार्थना कर रहा था। हे भगवान! मुंबई को भारत की राजधानी बना दो। बच्चा भगवान से प्रार्थना कर रहा हैहे भगवान मुंबई को भारत की राजधानी बना दो। बहुत देर से यह रट लगा रखा था। एक युवक ने उससे पूछाभारत की राजधानी दिल्ली है, मुंबई बन जाएगी तो तुम्हें क्या मिल जाएगा? बच्चा बोलाबाकी किसी को मिले ना मिले मुझे तो मिल जाएगा। बोलागलती से मैंने पेपर में भारत की राजधानी मुंबई लिख दी। ऐसे लोगों का क्या होगा? पहली बात अपने आत्मविश्वास को जगाए। जहां आत्मविश्वास की कमी होगी वहां डर सदैव बना रहेगा। तो यदि आप डरते हैं तो अपने भीतर झांकिए और अपने कॉन्फिडेंस को डेवलप करने की कोशिश कीजिए। उसकी भी रीत अभी थोड़ी देर बाद बताऊंगा। आपका ये आत्मविश्वास आपको बहुत सारी समस्याओं से मुक्ति दिलाएगा। सेल्फ कॉन्फिडेंस एक बहुत बड़ी ताकत है।

दूसरी बातनकारात्मक सोच जिनकी सोच नकारात्मक है उनके मन में डर तो सदैव बना रहता है। नकारात्मक सोच और भय इन दोनों का चोलीदामन का संबंध है। एक सज्जन थे। उनके मन में एक बहुत बड़ी बीमारी थीघर से बाहर कोई जाए, जब तक लौटकर ना आए तब तक चैन नहीं नींद नहीं आती। उनके बेटे ने मुझे बताया मैंने उनको बुलवाया तो बोलेमहाराज जी कोई जाता है तो एक ही विचार दिमाग में आता है कहीं एक्सीडेंट ना हो जाए। हमने कहाहद हो गई। तुम्हारे बच्चे बाहर जाते हैं दुनिया में और लोग भी आतेजाते हैं, हजारों ट्रेन जाती है, एरोप्लेन उड़ते हैं, गाड़ियां आतीजाती है। सबका काम है रोज थोड़े ही सबका एक्सीडेंट होते होता हैं।  जिनका होना होता है उनका होता है। तुम इस बात को क्यों इतना सोचते हो। बोलामहाराज बच्चे छोटे थे अब बड़े हो गए बहुत आनाजाना करने लग गए हैं तो डर लगता है कहीं एक्सीडेंट ना हो जाए। मैंने कहाबच्चे बड़े हो गए, ज्यादा आनाजाना करने लगे, कहीं एक्सीडेंट ना हो जाए यह सोचने के बजाय यह क्यों नहीं सोचते हो कि मेरे बच्चे अब कितने लायक हो गए साधारण लोग तो कहीं जा नहीं पाते हमारे बच्चे तो रोज दिल्ली मुंबई जाते हैं। नकारात्मक सोच क्यों? क्योंकि हमारा बच्चा कहीं गया है तो कहीं कोई एक्सीडेंट ना हो जाए। यह क्यों नहीं सोचते कि मेरा बच्चा गया है तो कोई अच्छा काम करके लौटेगा। उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है वह आगे बढ़ रहा है ऐसा क्यों नहीं सोचते? जहां नकारात्मकता है वहां डर है और यह नकारात्मकता द्विमुखी होती है। एक औरों के प्रति और एक खुद के प्रति। दूसरों के प्रति जो नकारात्मकता होती है उनसे व्यक्ति अपने आप को एकदम इनसिक्योर फील करता है। उसमें विश्वास नहीं होता, भरोसा नहीं होता और अगर तुम्हारे मन में बेटे के प्रति नकारात्मक सोच है तो कितना भी लायक बच्चा होगा तुम्हें उसके प्रति भरोसा नहीं होगा। तुम्हारे मन में यही आएगा कि अरे बेटे को सब सौंप दे तो कहीं दगा ना दे दे, बेटा व्यापार करने की बात कर रहा है पैसा लगा दे कहीं आगे बढ़े ना बढ़े, बड़ी मुश्किल होगी। ऐसे लोगों की स्थिति भी बड़ी दुविधा पूर्ण हो जाती है। उनके संबंध भी बिगड़ जाते हैं क्योंकि संबंध विश्वास से पनपते हैं और नकारात्मक सोच शंका को जन्म दे देती है। शंका और विश्वास दोनों साथसाथ नहीं चलते। जिसके प्रति हो बापबेटे की बात हो, भाईभाई की बात हो, पतिपत्नी की बात हो, सासबहू की बात हो, दो मित्रों की बात हो, दो रिश्तेदारों की बात हो, दो परिचितों की बात हो, दो व्यापारियों की बात हो किन्ही के मध्य में जिनके प्रति आपकी नकारात्मकता है आप उसके प्रति आश्वस्त नहीं हो सकते। उनसे आप अपने आपको सदैव असुरक्षित अनुभव करोगे। करते हो कि नहीं? बोलो। जिस पर विश्वास होता है चाबी उसे देते हो कि जिस पर शंका होती है चाबी उसे देते हो? बोलो। सेठ ने नौकर को चाबी दी और एक दिन ऐसी कोई बातचीत हुई। नौकर ने कहा सेठ साहब आप मुझ पर विश्वास कीजिए। सेठ ने कहा अगर तुझ पर विश्वास नहीं होता तो तुझे चाबी कैसे पकड़ाता? नौकर ने कहा सेठ साहब चाबी तो आपने पकड़ा दी लेकिन एक भी लगती नहीं है। (नौकर दो कदम आगे था वह पहले ही टेस्ट कर चुका) जिसके प्रति शंका होगी उसके प्रति विश्वास नहीं और जहां विश्वास नहीं होगा, अविश्वास होगा वहां भय होगा ही होगा। Insecurity इनसिक्योरिटी हो गई। व्यक्ति को जांचेपरखे। जिन पर आपको पूरी तरह भरोसा है  उन पर पूरी तरह विश्वास रखें  और जिन पर भरोसा नहीं है उनसे सुरक्षित दूरी मेंटेन करें। लेकिन हर किसी के प्रति नकारात्मक ना बने। इस नकारात्मकता से भी ज्यादा नकारात्मकता है खुद के प्रति मन की हीन भावना, स्वयं के प्रति नकारात्मकता। अगर आप हीन भाव से भरे हैं आपका कॉन्फिडेंस कभी बिल्डअप नहीं होग, आप कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे और आपके मन में अनेक प्रकार का डर उत्पन्न होता रहेगा। आप समझोगे मैं तो कुछ कर ही नहीं सकता, मेरे पास तो कोई क्षमता नहीं है, सफलता तो मेरे पास है ही नहीं, मेरे तो कर्म फूटे हैं, मैं भाग्यहीन हूं, मेरा तो शरीर ही ठीक काम नहीं करता, पत्नी परिवार कोई मेरे साथ नहीं है, मैं बिल्कुल अकेला हूं। यह अनुभूति स्वयं के प्रति नकारात्मकता की अनुभूति है और जो मनुष्य खुद के प्रति नेगेटिव हो जाएगा वह जिंदगी में कभी पॉजिटिव रिजल्ट नहीं दे पाएगा। अपने मन की इस ग्रंथि को तोड़िए हीन भावना से ऊपर उठकर। मैं समझता हूं दूसरों के प्रति नकारात्मकता का इतना भयानक दुष्परिणाम नहीं होता जितना खुद के प्रति नेगेटिव होने का दुष्परिणाम होता है। ऐसे व्यक्ति कई बार अपने आप को एकदम निरुपाय सा अनुभव करने लगते हैं, लाचार अनुभव करने लगते हैं और जब आप अपने आप को एकदम निरुपाय और लाचार महसूस करने लगेंगे तो आपके पांव का बल एकदम टूट जाएगा कमजोर हो जाएगा। आप कुछ कर नहीं सकते मन में यह भावना आएगी। अपने मन की मायूसी को कभी हावी नहीं होने देना चाहिए। कभी मायूस मत होओ। हारो पर हिम्मत मत हारो। दीनता की जगह उत्साहवर्धक परिणाम अपने अंदर होने चाहिए। अगर तुम्हारे मन में उल्लास, उमंग, उत्साह हो तो तुम सब कुछ खो कर के भी पाने में समर्थ हो सकते हो और तुम्हारे मन का उत्साह ही ठंडा पड़ जाए बल्कि तुम्हारा मन हतोत्साहित हो जाए, तुम्हारे चित्त में हताशा के बादल छा जाएं तो सब कुछ पाकर भी तुम सब कुछ खो सकते हो। उस युवती की बात आप सबको याद रखनी चाहिए जिसे बदमाशों ने ट्रेन से नीचे गिरा दिया। 5 साल पुरानी घटना है। संयोगतः दूसरी ट्रेन क्रॉस हुई और उसके दोनों पांव कट गए। पर पांव खोने के बाद भी उसने अपने आत्मविश्वास को जगाए रखा और वही युवती कृत्रिम पांव के बल पर एवरेस्ट चोटी की चढ़ाई कर ली। दोनों पांव खोने के बाद हिमालय की चोटी चढ़ गई और तुम दोनों पांव होने के बाद भी दोनों दो मंजिल नहीं चढ़ पाते तुम्हारे पांव कांपते हैं क्योंकि तुमने खुद के प्रति नकारात्मकता को बहुत तेजी से बढ़ा लिया। अपने अंदर के उत्साह को जगाइए। दीनता और हताशा को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। यह तुम्हें भीतर से कमजोर बनाने वाले कारक हैं। इनसे अपने आप को बचाइए।

जिस मनुष्य के मन में ऐसी नकारात्मकता हावी होती है, 24 घंटे और आर्तध्यान में रहता है। आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में कहूं तो वह व्यक्ति अवसाद ग्रसित होता है और यही अवसाद डिप्रेशन का कारण बन जाता है। एक प्रकार का लक्षण भी है। कुछ नहीं कर पाएगा, बचिए। तो पहला कारणआत्मविश्वास की कमीदूसरा कारणनकारात्मक सोचऔर

तीसरा कारण हैअंधविश्वास अंधविश्वासी लोग सबसे ज्यादा डरपोक होते हैं। आज जितने बाबाओं की दुकानें चल रही हैं वह इन्हीं के कारण चल रही है। उनके पास जाओ वह सबसे पहले आपका मोरल डाउन करेंगे फिर अपनी ग्रिप में लेंगे और अपना उल्लू सीधा करेंगे, द्विअर्थी भाषा का प्रयोग करेंगे और आप उनके चक्कर में पड़ जाएंगे। अंधविश्वास छोटीछोटी बातों में होता है। अरे! कहीं कोई भूतप्रेत ना लग जाए, कहीं कोई जिन्न ना लग जाए, कहीं हमारा कोई नुकसान ना हो जाए, इससे हमको फायदा होगा, इससे हमको नुकसान होगा, इसको पूजेंगे तो लाभ होगा, इसको नहीं पूजेंगे तो तकलीफ होगी, यह कर लो, वह कर लो। तमाम प्रकार का अंधविश्वास और कभीकभी तो ऐसी स्थिति होती है कि क्या कहूं। एक बार एक सज्जन थे। बोलेमहाराज जा रहा हूं। समाज के लोग कह रहे थे कि आज समाज का कार्यक्रम है आज रुक जाओ, कार्यक्रम अटेंड कर लो। बोलानहींनहीं, मुझे जाना है। महाराज, लोगों ने मुझसे कहा आप कहते हैं तो रुक जाएंगे। मैंने बोलादेख लो भाई, समाज का आग्रह है। बोलानहीं महाराज, मुझे जाना है, जरूरी है। मैंने बोला जाओ। चला गया और 10 मिनट बाद वापस गया। हमने कहा क्या हुआ? मन बदल गया क्या? बोलानहीं महाराज, गया था अपशगुन हो गया। मैंने बोलाक्या हुआ? बोलागधा रेक रहा था। नीचे गया गधा रेक रहा था। मैंने कहाधन्य हो भाई! गधे की बात पर तुझे भरोसा है मेरी बात पर तुझे भरोसा नहीं। मैं बोल रहा हूं तुझे कुछ समझ नहीं रहा और गधा रेक रहा है तो तुझे समझ में रहा है। गुरु की बात नहीं मानेंगे गधे की बात मान लेंगे। ध्यान रखना गधे की बात केवल गधा ही मानता है समझदार नहीं। यह अंधविश्वास, थोड़ीथोड़ी बातों में अंधविश्वास। बिल्ली रास्ता काट गई यह अंधविश्वास। यह बहुत बड़ा भ्रम है। अंधविश्वास से मुक्ति पाना चाहिए। तत्व की सही समझ विकसित होगी, वस्तु के स्वरूप की सही समझ विकसित होगी तुम्हारे मन में कभी अंधविश्वास नहीं पनप पाएगा और जब तुम सच्चे विश्वासी बन जाओगे तो तुम कभी नहीं बदलोगे, ना तुम्हें भूत लगेगा, ना जिन्न। कुछ नहीं वस्तुतः यह मन का ही सबसे बड़ा वहम है। कमजोर मन वालों को ही भूत लगता है मजबूत मन वालों को नहीं और मैं कहूं तो मन का भूत ही सबसे बड़ा भूत है। अंधविश्वास से बचिए, अपने आप को बचाइए। यहां तो चाहे जितने लोगों की बस एक धारणा बन जाती है और धर्म के नाम पर तो चाहे जिस का चाहे जैसा दोहन कर दो। कोई भी भय उत्पन्न कर सकते हो कि ऐसा करोगे नहीं तो ऐसा हो जाएगा। आज भी सब करने को तैयार हो जाएंगे। यह अंधविश्वास है। ऐसा करने से कोई लाभ होने वाला नहीं है।

चौथा कारण है– “व्यर्थ का भ्रम मनुष्य बिना मतलब के बहुत सारे भ्रम पाल लेता है जिससे उसके चित्त में चिंताएं हावी हो जाती है और आदमी डर जाता है जिसका ना सिर ना पैर। फिर भी आदमी उसको अपने अंदर स्वीकार करके अपने लिए असहजता प्रकट कर लेता है। अनावश्यक फिजूल की बातों में भ्रम और वहम पालकर मनुष्य दुखी होता है। आप वहां सावधान हो या अपने आप को संभालने की कोशिश कीजिए। बिना मतलब की बातों में अपने जी को मत उलझाइए। कल क्या होगा! कल क्या होगा? कल जो होगा सो होगा। कल आएगा तो कल की व्यवस्था करेंगे। सोचने की बात क्या है। एक आदमी मनोचिकित्सक के पास गया। बड़ा घबराया हुआ था। एकदम थरथर कांप रहा था। पूछाक्या हुआ? आदमी बोलामैंने रात मे बहुत बुरा सपना देखा। डॉक्टर बोलासपना देखा तो देखा, सपना तो सपना होता है। बोलानहीं डॉक्टर साहब, बहुत बुरा सपना देखा। डॉक्टरक्या सपना देखा? बोलासपने में मेरे पेट से चूहा निकल गया। पेट के ऊपर से चूहा निकल गया। डॉक्टर ने बोला चूहा ही तो निकला हाथी थोड़े ही निकला जो तू इतनी चिंता कर रहा है। बोलाडॉक्टर साहब इसीलिए तो आया हूं। डर इस बात का कि आज चूहा निकला कल हाथी ना निकल जाए क्योंकि अब रास्ता जो बन गया। (ऐसे लोगों को भगवान भी सुखी नहीं कर सकेंगे।)

एक युवती डिप्रेशन की शिकारहो गई। उसका भाई मेरे पास लेकर आया। मैंने उनसे पूछा क्या बात है? बोलीउसकी एक फ्रेंड थी उनको वाइट स्पॉट हो गए (आजकल वाइट स्पॉट तो कभी भी किसी को भी हो सकते हैं) और जब डॉक्टर से पूछा तो डॉक्टर ने कहा यह मिलेनिन की कमी से हुआ है, यह किसी को भी हो सकता है। वह लड़की कुछ सुंदर सी थी। जितनी सुंदर थी उससे ज्यादा अपने आप को सुंदर मानती थी। अब यह बात उसके दिमाग में बैठ गई कि डॉक्टर ने कहा है कि यह किसी को भी हो सकता है। मुझे हो जाएगा तो क्या होगा। इस वजह से वह डिप्रेशन की शिकार हो गई। अब बोलो उसका क्या इलाज? एक अनावश्यक भ्रम, फिजूल का भ्रम जो मनुष्य पाल लेता है। तिल को ताड़ बना देता है। राई को पहाड़ बना देता है और दुखी होता है। ऐसा होगा तो क्या होगा। मेरे साथ ऐसा हो गया तो क्या होगा। जो होना होगा सो होगा। जिनको होता है वह भी जिंदा है तुमको हुआ तुम भी जिंदा रहोगे। जैसे वह जी लेता है तुम भी जी लोगे। मैंने उस लड़की को समझाया। अब इस घटना को 17 साल हो गए वह लड़की सलामत है बहुत खुश है। उसको थोड़ा मोटिवेट करने से वह इस भ्रम से बाहर गई। कहने का तात्पर्य यह है कि यह सब हमारे चित्त को उद्वेलित करने वाले कार्य हैं जिनके कारण हमारा मन भयाक्रांत हो जाता है। हमारे अंदर डिप्रेशन जैसी बीमारियां हो जाती है। यह तो हुए कारण। मैं समझता हूं यह आप भी जानते होंगे। आप बोलोगे महाराज कारण गिनाने से क्या फायदा? निवारण बताओ तो फायदा हो। तो बिल्कुल ठीक मैं वैसा डॉक्टर नहीं जो सिर्फ बीमारी का कारण बताऊं मैं तो इलाज भी बताता हूं और इलाज के लिए ज्यादा कुछ नहीं चार ही बातें आपको कहूंगा।

अगर आप अपने भय से बचना चाहते हैं तो चार बातों को ध्यान में रखिए।

सबसे पहली बातआत्मविश्वासी बने आत्मविश्वासी बनने का मतलब सेल्फ कॉन्फिडेंस को बिल्डअप करें यह मतलब तो है ही। अपनी आत्मा का विश्वास करें, आत्मा को पहचाने, भेद विज्ञानी बनें। अगर आपकी दृष्टि आत्मा पर केंद्रित हो गई तो आपको कभी भय नहीं होगा।

शास्त्रकारों ने कहा है कि

मूढात्मा यत्र विश्वस्तः, तत्रो नास्ति भयास्पदम। यत्रभीऽतो ततो  नान्यत, अभयस्थानम आत्मनाम

यह मूढ, अज्ञानी प्राणी जिन बातों से डरता है, जहां विश्वास करता है उससे बड़ा भय का कोई स्थान नहीं। और जिससे डरता है उससे बड़ा अभय का कोई स्थान नहीं। आप डरते किन बातों से हैं? लोक में 7 प्रकार का भय है। इही लोक भय, परलोक भय, मरण भय, अत्राण भय, वेदना भय, आकस्मिक भय और अरक्षा भय है।

जितने भी प्रकार के भय हैं वह सब इन पर केंद्रित हैं। यह सारा भय उनको होता है जिन्हें अपनी आत्मा का पता नहीं। अगर आपके भीतर आत्मा का श्रद्धान है, आत्मा का ज्ञान है, भेद विज्ञान है तो किसी भी प्रकार का भय हावी नहीं होगा। मैं चारों बातें कर लूं फिर इनकी चर्चा करूंगा।

पहली बार– “आत्म श्रद्धानी बने” “भेद विज्ञानी बने दूसरी बात– “कर्म सिद्धांत पर विश्वास रखें तीसरी बात– “सकारात्मक सोच सोचेऔर चौथी बात– “वर्तमान में जीना सीखें यह चारों बातें आप अपना लोगे तो आपके चित्त में कभी डर हावी नहीं होगा। एकएक करके मैं चारों की चर्चा आप से करता हूं।

अगर आपके भीतर आत्मा का ज्ञान है तो डर नहीं। आपको डर किस बात का लगता है? अरे! इस लोक में मुझे कोई नुकसान ना हो जाए, परलोक में जाऊं तो मेरी दुर्गति ना हो जाए, मेरे शरीर में कोई अचानक वेदना ना जाए, कोई बीमारी मुझ पर हावी ना हो जाए, अचानक कोई दुर्घटना ना हो जाए, मेरे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति ना जाए, अरे इस संसार में मेरा कौन ख्याल रखेगा, मुझे बचाने वाला कौन है, मेरी इनसिक्योरिटी की शंका मेरे मन में ना हो जाए यही सब तो भय है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिन बातों में तुम्हें भय होता है उनके विषय में सोचो। What will be worst? (बुरा से बुरा क्या होगा?) मरोगे, उससे ज्यादा तो कुछ नहीं होगा। मरने से ज्यादा कुछ होगा? जिंदगी में तो एक ही बार मरना है। एक ही बार मरोगे बारबार थोडे़ ही मरोगे तो जब मरना होगा मरोगे, जीते जी क्यों मर रहे हो। डर के मत मरो। मैं तो समझता हूं मौत से लोग कम मरते हैं मौत के डर से ज्यादा मरते हैं।

एक आदमी चला जा रहा था। उसे ऐसा लगा जैसे उसके पीछेपीछे कोई परछाई रही है। मुड़कर देखा और पूछाकौन?कहामैं मौत। वह मौत को देखकर घबरा गया। मौत ने कहातुम घबराओ मत, मैं कहीं और जा रही हूं। आदमी ने बोलाकहां जा रही हो? बोलीकुछ नहीं, पास के गांव में सौ आदमियों का  नंबर है उन्हें लेने जा रही हूं। आदमी बोलाठीक है। शाम में मौत वापस लौट रही थी। फिर उस आदमी ने देखा और पूछातुम भी झूठ बोलने लग गई। मौत ने बोलाक्या? आदमी बोलातुमने कहा था सौ आदमीयों का नंबर है, प्लेग फैला हजारों को मार कर गई। यह क्या मामला है? मौत ने कहाभैया मैंने झूठ नहीं बोला, सही बोला। मैंने तो केवल सौ आदमियों को मारा बाकी नौ सौ तो मेरे डर से मर गए। यह डर बड़ा खतरनाक है। संभालिए। आत्मा का ना जन्म है ना मरण है। तो जब मैं मर ही नहीं सकता तो मुझे मारने वाला कौन? आत्मा का ना यश है ना अपयश है तो जब मेरी आत्मा यश और अपयश से परे है तो मुझे यश और अपयश की क्या चिंता? आत्मा की ना जय है ना पराजय है और जब आत्मा जय और पराजय से परे है तो जय और पराजय की क्या फिक्र? मेरा कोई बिगाड़ करने वाला नहीं है, मेरा कोई सुधार करने वाला नहीं है, यह बात यदि तुम्हारे दिल में गहरे बैठ जाए तो मन में डर हावी होगा। मौत का डर हो, बीमारी का डर हो, विपत्ति का डर हो, प्रतिष्ठा के धूमिल होने का डर हो, असफलता का भय हो, जो भी हो उसमें सबसे पहले भेद विज्ञान को याद करो। यह तो सब बाहर की परिणतियां हैं इनका आत्मा से कोई संबंध नहीं। धरती उलटपुलट हो जाए तो भी मेरी आत्मा का बाल बांका नहीं हो सकता। यह श्रद्धान पक्का होना चाहिए। मेरी आत्मा के एक प्रदेश को भी कोई हिला नहीं सकता ऐसी प्रगाढ़ आस्था होनी चाहिए। मन में कभी डर नहीं होगा चाहे कितना भी हो।

सन 2006 में मैं बंगाल में बिहार कर रहा था। कोलकाता से मुर्शिदाबाद डिस्ट्रिक्ट में जा रहा था और बांग्लादेश की सीमा से निकल रहा था। वह कुछ ऐसा इलाका था जिस इलाके में एक भी हिंदू नहीं था और प्रायः बांग्लादेशी मुसलमान परधर्म असहिष्णु थे। एक स्थान पर मुझे डेढ़ से दो हजार लोगों ने घेर लिया और वह भी घातक अस्त्रों से सहित। विहार कर रहा था मेरे पास कोई उपाय नहीं था। पता लगा कि मदरसे के आगे लोग खड़े हैं। मुझसे लोगों ने कहा कि महाराज लोग खड़े हैं। मैंने कहा जो भी है अपन साथ चले। कुछ पुलिस भी थी साथ में प्रोटेक्शन के लिए और मैंने कहा चलो कोई प्रोटेस्ट मत करना। अपने भगवान का नाम ले और चलें जो होगा देखेंगे, अब यहां रहने से भी कोई फायदा नहीं। उन्होंने मुझे घेर लिया, पूरा रास्ता रोक लिया। हमारे साथ 50 से 60 श्रावक श्राविकाएं थी। उन्होंने मुझे घेरे में रख लिया। मौत सामने लेकिन उस घड़ी में ना तो मुझे भय हुआ ना क्षोभ। भय इसलिए नहीं हुआ कि मुझे यह कुछ कर ही नहीं सकते। उस घड़ी में मेरा समयसार मेरे मानस पटल में उभर रहा था।

सिद्ध दुआ भिज्झ दुआ निज्झ दुआ अहो जाद विप्पलयम जम्मा तम्मा गच्छदुत्ताः विनप्परिग्रहो मज्झ

मेरे टुकड़ेटुकड़े भी कर दें तो भी मेरा कुछ बिगाड़ नहीं हो सकता, रंच मात्र भी नहीं। और क्षोभ इस बात का नहीं हुआ कि यह तो केवल निमित्त है। अंतरंग कारण तो मेरा कर्म है। मैं किस पर गुस्सा करूं। यह निमित्त बन कर आए हैं, इनका अज्ञान इन्हें ऐसा कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहा है। जिस दिन ये हमारे स्वरूप को समझ जाएंगे अपने आप इनको समझ जाएगी। उस स्थिति में, उस उपसर्ग में भी स्थिरता आई। किस के बल पर? भेद विज्ञान के बल पर। वह घटना घटी। सिर पर एक पत्थर लगा था। एक बहुत बड़ा उपसर्ग था। आप लोगों के पुण्य से बहुत छोटे में निपट गया। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आपके भीतर भेद विज्ञान है, आत्मश्रद्धान है, आत्मा का भरोसा है तो कभी डर नहीं होगा। और वह नहीं है तो थोड़ीथोड़ी बातों में डर जाओगे और तुम लोग भय के कारण पर में पाला बदल लेते हो।

तुम्हारा सारा सम्यकदर्शन धरा रह जाता है। इधर से उधर नहीं अपने आत्मा के ऊपर भरोसा रखो। अपने आत्मा के स्वरूप को समझो।

नैनं छिंदन्ति सस्तानि नैनं दहति मारुतः

आत्मा को ना शास्त्र छेद सकते हैं, ना अग्नि जला सकती है, ना हवा सुखा सकती है, ना पानी गला सकता है। श्रद्धान रखो। मैं अनूप हूं, अरस हूं, अस्पर्श हूं, अगंध हूं। यह मेरा स्वरूप है। यह गहराई से बैठ जाना चाहिए और जिस मनुष्य के सबकॉन्शियस में आत्मा का ऐसा गाढ़ श्रद्धान बैठ जाता है उसे हर स्थिति में उसकी आत्मा दिखती है और यही आत्मा उसके आत्म बल को जगा देती है और वह बड़ेबड़े तूफान को भी झेलने मे समर्थ हो जाता है।

दूसरी बातकर्म सिद्धांत पर विश्वास रखिए संसार में जो भी होगा मेरे कर्म के अनुसार होगा। अगर मेरे पुण्य का उदय होगा तो मेरे ऊपर वज्रपात भी हो तब भी मैं सुरक्षित रहूंगा और मेरे पाप का उदय होगा तो बैठाबैठा भी चला जाऊंगा। है आपको इस पर विश्वास? देखो संसार की कैसी दशा है? जीवन की कैसी दशा है? सन 2013 में मैं कोलकाता चातुर्मास कर रहा था। तब एक समाचार आया। एक महिला ट्रेन से यात्रा कर रही थी और टॉयलेट लघुशंका करने के लिए गई और वही उसे बच्चा हो गया। बच्चा चलती ट्रेन से जमीन पर गिर गया।  बच्चे का जन्म चलती ट्रेन में टॉयलेट में हुआ। बच्चा नीचे गिर गया। चैन पुल करने के बाद गाड़ी रुकी, ट्रेन ढाई किलोमीटर चल चुकी थी और जब बच्चे के पास पहुंचे तो देखते हैं कि बच्चा मस्ती में खेल रहा है। आज भी वह बच्चा सुरक्षित है। अब क्या बोल सकते हैं? “जाके राखो साइयां मार सके ना कोई तेरे पुण्य का योग होगा कोई तुम्हें हिला नहीं सकता और पाप का प्रकोप होगा कोई तुम्हें झिला नहीं सकता। सिद्धांत पर भरोसा रखो। जिनका कर्म सिद्धांत पर भरोसा होता है वह छोटे कर्मकांडों में नहीं उलझते। वह कभी अंधविश्वास के शिकार नहीं होते। हम सोचते हैं शरीर में बीमारी ना जाए, बीमारी ना जाए ऐसा सोचने से बीमारी ना आनी होगी तो जाएगी। वैज्ञानिक कहते हैं कि हम अपने मन में जब अशुभ तरंगे प्रक्षिप्त करते हैं तो अनहोनी हो जाती है। मैं स्वस्थ रहूं, सब स्वस्थ रहें, जग मस्त रहें यह प्रार्थना करो। यह सकारात्मक प्रार्थना है। मेरा मंगल, तेरा मंगल, सबका मंगल हो। मंगल मंगल मंगल मंगल मंगल मंगल हो। यह प्रार्थना हो। सब के अच्छे की बात सोचो। मैं बीमार ना हूं ऐसी सतर्कता रखो इसमें कोई दोष नहीं पर मुझे कोई बीमारी ना ग्रस ले ऐसी शंका मत रखो। सतर्कता सदैव अनुकरणीय है। सतर्कता समझदारी है। हेल्थ कॉन्शियस होना चाहिए क्योंकि बिना शरीर के तुम धर्म भी नहीं कर सकते स्वस्थ शरीर चाहिए। पहला सुख निरोगी काया इसलिए हेल्थ कॉन्शियस बनो, अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखो। लेकिन बीमार ना हो जाऊं, बीमार ना हो जाऊं, बीमार ना हो जाऊं ऐसी रट मत लगाओ। मैं तो समझता हूं आज के समय में तन की बीमारी से कम लोग परेशान हैं मन की बीमारी से ज्यादा लोग परेशान हैं। तन से अपाहिज व्यक्ति भी शिखर चढ़ जाते हैं पर मन से अपाहिज व्यक्ति तो दो कदम नहीं चल पाते। कर्म का भरोसा रखो। बीमारी आई है मेरे कर्म के उदय से आई है। अब धीरेधीरे जाएगी। आई है तो जाएगी ही। जो आता है वह जाता है। यह प्रकृति का नियम है। जब जाएगी तब जाएगी मेरे हाथ में चिकित्सा आरोग्य नहीं।  दो बातें सोचोपहले तो मेरी आत्मा को बीमारी है ही नहीं वह आरोग्य स्वरुप है। दूसरी तन बीमार हो मन को स्वस्थ रखो। तन की बीमारी को मन पर हावी मत होने दो। बोलोगेमहाराज तन से गठबंधन है बिना तन के काम नहीं चलता तो सोचो मेरे हाथ में चिकित्सा आरोग्य थोड़े ही है बीमारी आई है अब धीरेधीरे जाएगी। चलो मैं तुम्हें एक दवाई देता हूं जो सब बीमारी में काम आती है, सब रोगों की रामबाण औषधि है। एक मंत्र है मेरे पास मैं देता हूं। कोई भी बीमारी हो ऐसी औषधि है कि बस खाते ही आराम। बताऊं? मैं खूब बांटता हूं। आप लोग लेना चाहते हो? उसका नाम हैसंतोषबटी। संतोषबटी खाइए, तत्काल आराम पाइए। बोलो काम की दवाई है कि नहीं? बीमारी आई है कर्म के उदय से आई है अब जाएगी तो धीरेधीरे जाएगी। जब मेरा कर्म अनुकूल होगा तब जाएगी। इस घड़ी में व्याकुल होने से कोई लाभ नहीं। इलाज करवाओ पर आकुलता ना करो। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मेडिकल ऐड मत लो वह अपना काम है उसे अपनी जगह चलने दो। वह सब करो लेकिन अपनी आकुलता को मंद करो। शांत भाव से सहन करो। कर्म का उदय है धीरे धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। कोई विपत्ति आई कर्म का उदय है, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा। कहीं भी कोई भी ऐसा अघट घटे कर्म को याद करो, कर्म सिद्धांत पर विश्वास करो। उससे तुम्हारे मन की आकुलता मंद हो जाएगी, चित्त शांत हो जाएगा और भय दूर भाग जाएगा। तुम पर हावी नहीं हो पाएगा। आप कर सकते हैं ऐसा? जगाइए। यही उपाय है और कोई उपाय नहीं है। तुम्हें कोई ताबीज दे दूं उससे ठीक हो जाए ऐसा नहीं होगा।

एक आदमी घर से दफ्तर आता था। रास्ते में श्मशान पड़ता था। बहुत डर लगता था। एक बाबा से मिला। बाबा ने बोलामैं तुझे एक ताबीज दे देता हूं यह ताबीज बांध ले तुझे कोई डर नहीं लगेगा। उस आदमी ने ताबीज बांध लिया। कुछ दिन बाद उन बाबा से मिला। उन्होंने पूछाअब क्या हाल है? आदमी बोलाशमशान का डर तो भाग गया लेकिन एक दूसरा डर पैदा हो गया। बोलेक्या? बोलाताबीज ना गिर जाए, क्योंकि आपने कहा था जब तक ताबीज बंधा है तब तक तुझे डर नहीं लगेगा। अब डर इस बात का है कि यह ताबीज गिर ना जाए। ध्यान रखना बाहर के कोई भी उपचार होंगे वह तुम्हें ऐसे ही उलझाएंगे और अगर तुमने मन को साध लिया तो जीवन में कभी उलझन नहीं हो पाएगी। अंदर की बीमारी का इलाज अंदर ही होगा। मनोदशा को बदलिए। आत्मश्रद्धानी, भेद विज्ञानी बनिए। कर्म सिद्धांत पर विश्वास रखिए। सकारात्मक सोचिए। मन में चिंता हावी होने लगे, शंका आने लगे, भय आने लगे तो सोचो जो होगा अच्छा होगा। जो होगा सही होगा।

दो लाइनें सब याद रखिएजो होगा सही होगा, जो होना होगा वही होगा मन दुविधा में आए जो होना होगा वही होगा, मन में शंका आने लगे जो होगा सही होगा सोचो। आपको समाधान मिलेगा। जीवन आगे बढ़ेगा। सोच को हमेशा सकारात्मक रखिए जिंदगी में सफलता मिलेगी।

एक राजा के पांव का अंगूठा कट गया। मंत्री बड़ा सकारात्मक सोच का था। अंगूठा अचानक चाकू के गिर जाने से कट गया। मंत्री ने कहा– “जो होता है सही होता है अब क्या, राजा का अंगूठा कट गया और मंत्री कहे जो होता है अच्छे के लिए होता है। तो राजा एकदम गर्मा गया। मंत्री को कैद कर लिया। मंत्री जेल में चला गया। एक दिन राजा जंगल में शिकार के लिए गया और शिकार करतेकरते अचानक भटक गया, अकेला फंस गया और भीलों के एरिया में पहुंच गया। भीलों ने उसे पकड़ लिया और उस दिन भीलों  के द्वारा एक नरबलि की तैयारी थी। अब एक सर्व लक्षण संपन्न व्यक्ति मिला, लोग उसे बलि की वेदी पर चढ़ाने के लिए ले गए। जैसे ही गए वहां भीलो के पुरोहित ने देखा राजा का अंगूठा कटा है और कहा इस आदमी का अंग भंग है यह काम का नहीं इसे छोड़ दो। उसे तुरंत ख्याल आया कि मंत्री ने सही कहा था– “जो होता है सही होता है जब वापस राज्य में आया तो सबसे पहले मंत्री को छुड़ाया, उसे गले लगाया और कहा कि तुमने बिलकुल सही कहा था कि जो होता है सही होता है लेकिन एक शंका है। मेरा अंगूठा कटना मेरे लिए सही हुआ पर तुम्हारा बोलना तुम्हारे लिए बुरा हो गया तुम जेल चले गए। बोलानहीं महाराज, वह भी मेरे अच्छे के लिए हुआ, वह भी मेरे लिए सही हुआ। बोलायदि आपने मुझे जेल नहीं भेजा होता तो मैं आज आपके साथ होता। आप तो बच गए होते मैं बलि का बकरा बन गया होता। जो होता है सही के लिए होता है, जो होना होता है वही होता है यह सूत्र है। इसे आत्मसात कीजिए। अतीत और भविष्य में ज्यादा मत उलझो। अतीत की स्मृतियों को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए और भविष्य की कल्पनाओं में ज्यादा मत उलझो वर्तमान में जीओ। आपको डर किस बात का लगता है अरे मैंने पास्ट में ऐसा किया है कहीं वह रिपीट ना हो जाए और भविष्य के विषय में कुछ गड़बड़ ना हो जाए। पास्ट पास्ट हो चुका है उसे डस्टबिन की तरह मानो और फ्यूचर अभी आया नहीं है उसे नोटिस बोर्ड की तरह देखो और तुम्हारा वर्तमान सामने का टेबल है फाइल पर साइन करो जिंदगी को आगे बढ़ा लो। जीवन भर आनंद आनंद आनंद होगा तो यह आज कुछ टिप्स मैंने आपको भयमुक्त जीवन जीने के लिए दिए हैं। आप अपने जीवन में आत्मसात करने की कोशिश कीजिए। जीवन में सदैव निर्भय और आनंद का रस लीजिए। जीवन का सही लुत्फ उठाइए।

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